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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 1/ मन्त्र 11
    ऋषिः - आङ्गिरसः शौनहोत्रो भार्गवो गृत्समदः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    त्वम॑ग्ने॒ अदि॑तिर्देव दा॒शुषे॒ त्वं होत्रा॒ भार॑ती वर्धसे गि॒रा। त्वमिळा॑ श॒तहि॑मासि॒ दक्ष॑से॒ त्वं वृ॑त्र॒हा व॑सुपते॒ सर॑स्वती॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । अ॒ग्ने॒ । अदि॑तिः । दे॒व॒ । दा॒शुषे॑ । त्वम् । होत्रा॑ । भार॑ती । व॒र्ध॒से॒ । गि॒रा । त्वम् । इळा॑ । श॒तऽहि॑मा । अ॒सि॒ । दक्ष॑से । त्वम् । वृ॒त्र॒ऽहा । व॒सु॒ऽप॒ते॒ । सर॑स्वती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमग्ने अदितिर्देव दाशुषे त्वं होत्रा भारती वर्धसे गिरा। त्वमिळा शतहिमासि दक्षसे त्वं वृत्रहा वसुपते सरस्वती॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। अग्ने। अदितिः। देव। दाशुषे। त्वम्। होत्रा। भारती। वर्धसे। गिरा। त्वम्। इळा। शतऽहिमा। असि। दक्षसे। त्वम्। वृत्रऽहा। वसुऽपते। सरस्वती॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरध्यापकविषयमाह।

    अन्वयः

    हे देवाऽग्ने त्वं दाशुषेऽदितिरसि त्वं होत्रा भारती सन् गिरा वर्द्धसे त्वं दक्षसे शतहिमा इडाऽसि। हे वसुपते त्वं वृत्रहा तथा सरस्वत्यसि ॥११॥

    पदार्थः

    (त्वम्) (अग्ने) विद्याप्रद विद्वन् (अदितिः) द्यौरिव विद्यागुणप्रकाशकः (देव) प्रकाशमान (दाशुषे) दात्रे (त्वम्) (होत्रा) आदातुमर्हे (भारती) या विद्या धर्त्रीव (वर्द्धसे) (गिरा) सुशिक्षाविद्यायुक्तया वाचा (त्वम्) (इळा) स्तोतुमर्हा (शतहिमा) शतं हिमानि यस्या आयुषि सा (असि) (दक्षसे) बलाय विद्याबलदानाय (त्वम्) (वृत्रहा) मेघहन्ता सूर्यइव (वसुपते) धनस्य पालक (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानयुक्तेव ॥११॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सद्विद्याऽध्यापकः शास्त्रपारङ्गतो विद्वान् मातृवत्पालयति सर्वतः सद्गुणान् ददाति ततः शिष्याः शीघ्रं विद्याबलयुक्ता भवन्ति ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर अध्यापकविषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (देव) प्रकाशमान् ! (अग्ने) विद्या देनेवाले विद्वान् ! (त्वम्) आप (दाशुषे) दानशील शिष्य के लिये (अदितिः) अन्तरिक्ष प्रकाश के समान विद्या गुणों का प्रकाश करनेवाले हैं। (त्वम्) आप (होत्रा) ग्रहण करने योग्य (भारती) विद्या धारण करनेवाली बालिका के समान होते हुए (गिरा) सुन्दर शिक्षा और विद्यायुक्त वाणी से (वर्द्धसे) वृद्धि को प्राप्त होते हैं। (त्वम्) आप (दक्षसे) विद्या बल के देने के लिये (शतहिमा) सौ वर्ष जिसकी आयु वह (इळा) स्तुति के योग्य अध्यापिका के समान (असि) हैं। हे (वसुपते) धन के पालनेहारे (त्वम्) आप (वृत्रहा) मेघहन्ता सूर्य के समान तथा (सरस्वती) प्रज्ञान विज्ञानयुक्त वाणी के समान हैं ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। अच्छी विद्या का पढ़ाने हारा शास्त्र का पारगन्ता विद्वान् जन माता के समान पालना करता है और सब विषयों से उत्तमगुणों को देता है। उससे शिष्यजन शीघ्र विद्याबलयुक्त होते हैं ॥११॥

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    विषय

    वृत्रहा सरस्वती

    पदार्थ

    १. हे (देव) = सब कुछ देनेवाले (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (त्वम्) = आप (दाशुषे) = दाश्वान् के लिएहवि देनेवाले के लिए (अदितिः) = [अविद्यमाना दितिः यस्मात्] न खण्डन होने देनेवाले हो । इस दाश्वान् के स्वास्थ्य को आप ठीक रखते हो। २. (त्वम्) = आप ही (होत्रा) = होमनिष्पादिका-यज्ञादि सिद्ध करनेवाली (भारती) = आदित्य-रश्मिरूप वाणी हैं। (गिरा) = इस वाणी के द्वारा आप (वर्धसे) = बढ़ते हैं-इस वाणी से आपका ही स्तवन होता है। ३. (त्वम्) = आप ही (शतहिमा) = शत हिम ऋतुओं तक चलनेवाली (इडा) = यह पृथिवी (असि) = हैं और (दक्षसे) = सब प्रकार उन्नतियों का कारण होते हैं [दक्ष् to grow] । अध्यात्म में पृथिवी 'शरीर' है । यह सामान्यतः सौ वर्ष तक चलता है, अतः 'शतहिमा' कहा गया है। ४. हे (वसुपते) = सब वसुओं-ऐश्वर्यों के स्वामिन् ! (त्वम्) = आप ही (वृत्रहा) = सब वासनाओं को नष्ट करनेवाली (सरस्वती) = ज्ञान की । अधिष्ठात्री देवी हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमारे स्वास्थ्य को नष्ट नहीं होने देनेवाले हैं [अदिति] । ज्ञान की वाणियों से यज्ञों का उपदेश देते हैं [होत्रा भारती] । शतवर्ष पर्यन्त चलनेवाले इस शरीर को देकर हमारा वर्धन करते हैं [शतहिमा इडा] । वासनाओं के विनाशक ज्ञान को प्राप्त कराते हैं [वृत्रहा सरस्वती] ।

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    विषय

    उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) ज्ञानवन् ! प्रकाशस्वरूप ! हे ( देव ) सब सुखों के दातः । हे तेजस्विन् ! कान्तिमन् ! ( दाशुषे ) दानशील पुरुष के लिये ( त्वम् ) तू ( अदितिः ) सूर्य के समान अक्षय शक्ति, जीवन और ऐश्वर्य का भण्डार है । ( त्वं ) तू ही ( होत्रा ) सब सुखों और ज्ञानों को देनेवाली वाणी, (भारती) मनुष्यों की या सूर्य की दीप्ति के समान सब तत्व को प्रकाशित करने वाली वाणी होकर ( गिरा ) वेद वाणी से (वर्द्धसे) उसे बढ़ाता है । (त्वम्) तू (दक्षसे) बल और क्रिया शक्ति को बढ़ाने के लिये ( शतहिमा इडा असि) सौ बरसों की आयु तक प्राप्त होने वाली, भूमि, या स्तुति योग्य, अक्षय अन्नसम्पदा के समान जीवनप्रद है । ( त्वं ) तू हे ( वसुपते ) ऐश्वर्य के पालक ! हे बसे प्रजाजन के पालक ! अन्तेवासि के पति, आचार्य विद्वन् ! तू (वृत्रहा), शत्रु, विघ्नकारी तथा अज्ञान के नाश करने हारा और ( सरस्वती ) नदी के समान उत्तम ज्ञान जल से सब को पवित्र करने हारा, स्त्री के समान हृदय को आश्वासन देनेवाला है !

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आङ्गिरसः शौनहोत्रो भार्गवो गृत्समद ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः—१ पङ्क्तिः । ९ भुरिक् पक्तिः । १३ स्वराट् पङ्क्तिः । २, १५ विराड् जगती । १६ निचृज्जगती । ३, ५, ८, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ६, ११, १२, १४ भुरिक् त्रिष्टुप् । ७ विराट् त्रिष्टुप् । षोडशर्चं सूक्तम ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. चांगली विद्या देणारा अध्यापक, शास्त्रात पारंगत विद्वान मातेप्रमाणे पालन करतो व सर्व प्रकारे उत्तम गुण देतो, त्यामुळे शिष्यगण लवकर विद्याबल प्राप्त करतात. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, light of life and inspiration for the world, you are the light of heaven for the generous giver of knowledge and wisdom. You are Bharati, speech of communication, a clarion call to action and invitation to knowledge, which grows with inspiration from the voice of Divinity. You are Ila, omniscient vision of Divinity which reflects in the hundred years of the scholar’s awareness. O lord of the world’s wealth of knowledge and vision and wisdom, you are the everflowing stream of knowledge, mother Sarasvati, who dispels all darkness and destroys ignorance.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a teacher are underlined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O shining teacher ! you expand the light of learning among your donor pupils. The factor of your good education and nice speech is your deep studies which are like a beautiful girl. You are adorable like a hundred-year-old teacherless, owner of wealth, thrasher of darkness like sun and are endowed with science coated in sweet speech.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A good and highly skilled teacher looks after the pupils like a mother. He imparts good virtues, and hence his pupils soon become strong and learned.

    Foot Notes

    ( शतं हिमा ) शतहिमानि वस्यायुषि सा = One whose ages are hundred years. (दक्षसे) बलाय, विद्याबलदानाय = For giving strength of learning.

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