Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 24 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अग्ने॒ विश्वे॑भिर॒ग्निभि॑र्दे॒वेभि॑र्महया॒ गिरः॑। य॒ज्ञेषु॒ य उ॑ चा॒यवः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । विश्वे॑भिः । अ॒ग्निऽभिः॑ । दे॒वेभिः॑ । म॒ह॒य॒ । गिरः॑ । य॒ज्ञेषु॑ । ये । ऊँ॒ इति॑ । चा॒यवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने विश्वेभिरग्निभिर्देवेभिर्महया गिरः। यज्ञेषु य उ चायवः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। विश्वेभिः। अग्निऽभिः। देवेभिः। महय। गिरः। यज्ञेषु। ये। ऊँ इति। चायवः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे अग्ने ! ये यज्ञेषु चायवस्स्युस्तानेवाग्निभिरिव विश्वेभिर्देवेभिस्सह महय उ एषां गिरः सत्कुरु ॥४॥

    पदार्थः

    (अग्ने) विद्वन् (विश्वेभिः) समग्रैः (अग्निभिः) अग्निभिरिव वर्त्तमानैः (देवेभिः) दिव्यगुणकर्मस्वभावैर्विद्वद्भिः (महय) पूजय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (यज्ञेषु) सङ्गन्तव्येषु व्यवहारेषु (ये) (उ) (चायवः) सत्कर्त्तारः ॥४॥

    भावार्थः

    ये राजजना अत्र जगत्युत्तमानि कर्म्माणि कुर्युस्ते सर्वैः सत्कर्त्तव्या ये च दुष्टानि तेऽपमाननीयास्स्युः ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! (ये) जो पुरुष (यज्ञेषु) संगति के योग्य व्यवहारों में (चायवः) सत्कार योग्य हों उनका ही (अग्निभिः) अग्नियों के सदृश तेजयुक्त (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (देवेभिः) श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभावयुक्त विद्वानों के साथ (महय) सत्कार करो (उ) और उन्हीं लोगों की (गिरः) उत्तम प्रकार शिक्षायुक्त वाणियों का प्रमाण मानो ॥४॥

    भावार्थ

    जो राजपुरुष इस संसार में उत्तम कार्य्यों के कर्त्ता हों, उनका सब लोग सत्कार करें और जो दुष्ट कर्म करते हों, उनका अपमान करें ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्तुति व यज्ञ

    पदार्थ

    [१] हे अग्ने परमात्मन् ! (विश्वेभिः) = सब (अग्निभिः) = अग्नियों द्वारा, माता के रूप में दक्षिणाग्नि द्वारा, पिता के रूप में गार्हपत्य अग्नि द्वारा तथा आचार्य के रूप में आहवनीय अग्नि द्वारा तथा (देवेभिः) = विद्वान् अतिथियों द्वारा (गिरः) = [गृणन्ति स्तुवन्ति] स्तुति करनेवाले लोगों को (ये उ) = और=जो निश्चय से (यज्ञेषु चायवः) = [चायृ पूजायाम्] यज्ञों में प्रभु का पूजन करनेवाले हैं, उन्हें महय महिमायुक्त कर । [२] जिन घरों में माता-पिता उत्तम होते हैं, जिन बालकों व युवकों को उत्तम आचार्य प्राप्त होते हैं, जिन गृहस्थों को विद्वान् अतिथियों का सम्पर्क प्राप्त होता रहता है, उनकी वृत्ति सदा उत्तम बनती है। ये प्रभुस्तवन की वृत्तिवाले होते हैं और यज्ञों द्वारा प्रभु का पूजन करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ – 'माता, पिता, आचार्य व अतिथि' जब उत्तम प्रेरणा देनेवाला होते हैं तो स्तुति व यज्ञ की वृत्ति बनी रहती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पक्षान्तर में आत्मा, परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् ! हे प्रतापिन् ! तू (यज्ञेषु) यज्ञों, परस्पर मित्रता और सत्संगयुक्त कार्यों में (ये उ चायवः) जो उत्तम सत्कार करने वाले, एवं सत्कार करने योग्य मनुष्य हैं उनकी (गिरः) उत्तम वाणियों कावा (गिरः) उत्तम उपदेश करने वाले उनको ही (विश्वेभिः) समस्त (अग्निभिः) ज्ञानी वा अग्रणी पुरुषों और (देवेभिः) दिव्य कमनीय गुणों वाले व व्यवहारज्ञ विजयेच्छुक पुरुषों द्वारा (महय) आदर सत्कार करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १ निचृत् त्रिष्टुप्। २ निचृद्गायत्री। ३, ४, ५ गायत्री॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे राजपुरुष या जगात उत्तम कार्य करणारे असतात त्यांचा सर्व लोकांनी सत्कार करावा व दुष्ट कर्म करणाऱ्यांचा अपमान करावा. ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, lover of light and master of knowledge, alongwith all the brilliant saints and sages of the world, love, respect and exalt the voices of Divine Revelation and honour those who abide by these with reverence and faith in yajnic acts of creation and self-sacrifice.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a ruler or of a public servant is stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person! honor those all enlightened persons who shine like the fire and who respect good men in the Yajnas (unifying noble deeds). Also pay due honor for their refined and well-set speech.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those men of the State who perform noble deeds should be honored, and on the other hand the doers of wicked deeds should be dealt otherwise.

    Foot Notes

    (चायव:) सत्कर्त्तार:। = Those who revere or honor. (अग्निभिः) अग्निभिरिव वर्त्तमानैः। = Shining like the fire.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top