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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 33/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - नद्यः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ओ षु स्व॑सारः का॒रवे॑ शृणोत य॒यौ वो॑ दू॒रादन॑सा॒ रथे॑न। नि षू न॑मध्वं॒ भव॑ता सुपा॒रा अ॑धोअ॒क्षाः सि॑न्धवः स्रो॒त्याभिः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओ इति॑ । सु । स्व॒सा॒रः॒ । का॒रवे॑ । शृ॒णो॒त॒ । य॒यौ । वः॒ । दू॒रात् । अन॑सा । रथे॑न । नि । सु । न॒म॒ध्व॒म् । भव॑त । सु॒ऽपा॒राः । अ॒धः॒ऽअ॒क्षाः । सि॒न्ध॒वः॒ । स्रो॒त्याभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओ षु स्वसारः कारवे शृणोत ययौ वो दूरादनसा रथेन। नि षू नमध्वं भवता सुपारा अधोअक्षाः सिन्धवः स्रोत्याभिः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओ इति। सु। स्वसारः। कारवे। शृणोत। ययौ। वः। दूरात्। अनसा। रथेन। नि। सु। नमध्वम्। भवत। सुऽपाराः। अधःऽअक्षाः। सिन्धवः। स्रोत्याभिः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 33; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    ओ विद्वांसो यूयं कारवे स्वसार इव स्रोत्याभिः सिन्धव इव अधोअक्षाः सुपाराः सुभवत योऽनसा रथेन दूराद्वो ययौ तं सुशृणोत तत्र निनमध्वम् ॥९॥

    पदार्थः

    (ओ) सम्बोधने (सु) (स्वसारः) भगिनीवद्वर्त्तमाना अङ्गुलयः (कारवे) शिल्पिने (शृणोत) (ययौ) प्राप्नोति (वः) युष्मान् (दूरात्) (अनसा) शकटेन (रथेन) (नि) नितराम् (सु) (नमध्वम्) (भवत)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सुपाराः) शोभनः पारः पालनादि कर्म येषान्ते (अधोअक्षाः) अधोऽर्वाचीना अक्षाः इन्द्रियाणि येषान्ते। अक्षा इति पदना०। निघं० ५। ३। (सिन्धवः) नद्यः (स्रोत्याभिः) स्रोतःसु भवाभिर्गतिभिः ॥९॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये परस्मिन्परस्मिन् प्रीता बहुश्रुता अन्यरचितानि शीघ्रगामीनि यानानि दृष्ट्वा तादृशानि निर्माय पाराऽवारौ गच्छन्तो नम्राः स्युस्तान् स्रोतांसि नदीरिवैश्वर्य्यगुणाः प्राप्नुवन्ति ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    (ओ) हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (कारवे) शिल्पीजन के लिये (स्वसारः) भगिनी के तुल्य वर्त्तमान अङ्गुलियों (स्रोत्याभिः) वा स्रोतों में होनेवाली गतियों से (सिन्धवः) नदियों के समान (अधोअक्षाः) नीचे को प्राप्त होती हुईं इन्द्रियों से युक्त (सुपाराः) सुन्दर पालन आदि कर्म करनेवाले (सु) (भवत) उत्तम प्रकार से हूजिये जो (अनसा) शकट और (रथेन) रथ से (दूरात्) दूर (वः) आप लोगों को (ययौ) प्राप्त होता है उसको (सु, शृणोत) उत्तम प्रकार सुनिये उसमें (नि) अत्यन्त (नमध्वम्) नम्र हूजिये ॥९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग दूसरे-दूसरे में प्रसन्न बहुत बातों को सुने हुए पुरुष, औरों से बनाए हुए शीघ्र चलनेवाले वाहनों को देख और वैसे ही बनाय के जलाशयों के आर-पार जाते हुए नम्र होवें, उनको जैसे स्रोता नदियों को, वैसे ऐश्वर्य्य गुण प्राप्त होते हैं ॥९॥

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    विषय

    नाड़ियों का वशीकरण

    पदार्थ

    [१] यहाँ इडा आदि नाड़ियों को 'स्व-सार:' कहा है। ये जीव को आत्मतत्त्व की ओर ले चलती हैं। इनमें प्राणनिरोध होने पर वह विवेकख्याति उत्पन्न होती है, जिसमें कि शरीर व आत्मा को हम विवित्यरूप में देख रहे होते हैं। हे (स्वसार:) = आत्मतत्त्व की ओर गतिवाली नाड़ियो ! (कारवे) = मुझ स्तोता के लिए [सु] = अच्छी प्रकार (अशृणोत उ) = तुम सुननेवाली होओ-तुम मेरी बात को भली प्रकार सुनो। मैं (अनसा) = इस प्राणशक्ति सम्पन्न (रथेन) = रथ के साथ (वः) = तुम्हें (दूरात् ययौ) = दूर से प्राप्त हुआ हूँ। संसार के विषयों का परित्याग करके मैं तुम्हारी साधना में प्रवृत्त हुआ हूँ। [२] तुम मेरे प्रति (सु) = अच्छी प्रकार (निनमध्वम्) = झुकनेवाली होओ, अर्थात् मेरे वश में होओ। मैं जिस भी नाड़ी में प्राणों का संयम करना चाहूँ, वहीं प्राणों का संयम कर पाऊँ। तुम मुझे (सुपारा: भवता) = विषय-समुद्र से अच्छी प्रकार पार ले जानेवाली होओ। हे (सिन्धवः) = रुधिर के प्रवाहवाली नाड़ियो! तुम (स्त्रोत्याभिः) = अपने प्रवाहों से (अधो अक्षा:) = इन्द्रियों को मेरे नीचे (अधीन) करनेवाली होओ। प्राणसाधना करता हुआ मैं तुम्हारे में प्राणनिरोध द्वारा इन्द्रियों को अपने वश में करनेवाला बनूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ – प्राणसाधना द्वारा मैं नाड़ियों पर पूर्ण प्रभुत्ववाला बनूँ । इनको वश में करके मैं इन्द्रियों को वश में करनेवाला बनूँ ।

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    विषय

    नदियोंवत् विनीत महिलाओं को उपदेश।

    भावार्थ

    (ओ) हे (स्वसारः) अपने पति, पालक को स्वयं अपनी इच्छा से प्राप्त करने हारी, स्वयं वरणशील उत्तम स्त्री जनो ! आप लोग (कारवे) उत्तम क्रियाकुशल पुरुष के वचन (शृणोत) सुनो। वह (रथेन) वेग से चलने वाले (अनसा) शकट से (वः) तुमको (दूरात्) दूर देश से भी आकर (ययौ) प्राप्त होवे। आप लोग (सु नमध्वम्) उत्तम रीति से विनयपूर्वक झुक कर रहो। आप लोग (सुपाराः भवत) सुख से पालन और पूर्ण करने योग्य होकर रहो। और आप लोग विनय से (अधो-अक्षाः) नीचे आंख किये हुए (स्रोत्याभिः) प्रवाहों से (सिन्धवः) बहने वाली नदियों के समान विनय से जाने वाली होकर रहो । अथवा (स्रोत्याभिः) बहने वाली धाराओं से नदियों के समान रज:-स्रावों से सदा शुद्ध, नीरोग निर्मल शरीर होकर रहो। (२) प्रजाएं और सेनाएं ‘स्व’ अर्थात् धन प्राप्तयर्थ शत्रु पर चढ़ाई करने से ‘स्वसृ’ हैं। वे अपने नेता कर्त्ता के वचन सुनें। वह दूर देशों को रथादि से प्राप्त करें। वे उसके आगे विनय से रहें। वे सुख से शास्य हों। वे नीचे ही उसके अधीन व्यापार करती हुई चालों से (सिन्धवः) नदियों या जलों के समान स्थिर रूप से परम्परा द्वारा चलती चली जावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ नद्यो देवता॥ छन्द:- १ भुरिक् पङ्क्तिः। स्वराट् पङ्क्तिः। ७ पङ्क्तिः। २, १० विराट् त्रिष्टुप्। ३, ८, ११, १२ त्रिष्टुप्। ४, ६, ९ निचृत्त्रिष्टुप्। १३ उष्णिक्॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. एकमेकांशी प्रीती करणारे, बहुश्रुत, इतरांनी तयार केलेल्या शीघ्र वाहनांना पाहून त्याप्रमाणे निर्मिती करून जलाशयाच्या आरपार जाताना जे नम्र असतात, जसे स्रोत नद्यांना मिळतात तसे त्यांना ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O sister streams of existence in cosmic flow, powers of dynamic action, listen to the prayer and exhortations of the artist maker and poet. He has come to you from afar by a fast moving chariot. Lower your depth and turbulence, flow below the axle of his chariot wheels, bow to him, and help him to cross the flood.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Further the duties of men are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! you should put a check on your senses and should incessantly do noble deeds, as the fingers of the artists and the rivers with their movements perform. You must listen to a person who has come from a distant place with his wagon and chariot. Be humble and bow down before him.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who love one another, they have heard much about different branches of science on seeing the quick-going vehicles. They manufacture them on the similar pattern devised by others and go from one end to the other. Even with this achievement, they are humble, attain noble virtues and prosperity like the springs joining the rivers.

    Foot Notes

    (स्वसारः) भगिनीवद्वर्त्तमाना अङ्गुलयः । स्वसार इत्यंगुलिनाम (NG 2, 5 ) = Fingers who are like sisters. (अनसा) शकटेन = With a wagon. (सुपारा:) शोभनः पारः पालनादि कर्म येषान्ते = Who are engaged in the noble deed of protecting others. (अधो अक्षाः ) अधोऽर्वाचीना अक्षा: इन्द्रियाणि येषान्ते । अक्षा इति पदनाम ( N. G 5,3 ) = Of excellent senses.

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