ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 6
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - बृहस्पतिः
छन्दः - त्रिपाद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
वृ॒ष॒भं च॑र्षणी॒नां वि॒श्वरू॑प॒मदा॑भ्यम्। बृह॒स्पतिं॒ वरे॑ण्यम्॥
स्वर सहित पद पाठवृ॒ष॒भम् । च॒र्ष॒णी॒नाम् । वि॒श्वऽरू॑पम् । अदा॑भ्यम् । बृह॒स्पति॑म् । वरे॑ण्यम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषभं चर्षणीनां विश्वरूपमदाभ्यम्। बृहस्पतिं वरेण्यम्॥
स्वर रहित पद पाठवृषभम्। चर्षणीनाम्। विश्वऽरूपम्। अदाभ्यम्। बृहस्पतिम्। वरेण्यम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्याश्चर्षणीनां मध्ये वृषभं विश्वरूपमदाभ्यं वरेण्यं बृहस्पतिं यूयं नमस्यताऽतः पराक्रमं कामयध्वम् ॥६॥
पदार्थः
(वृषभम्) अत्युत्तमम् (चर्षणीनाम्) विद्याप्रकाशवतां मनुष्याणां मध्ये (विश्वरूपम्) विश्वानि कर्माणि वस्तूनि वा रूपयन्तम् (अदाभ्यम्) अहिंसनीयं सत्कर्त्तव्यम् (बृहस्पतिम्) बृहतां पालकं राजानम् (वरेण्यम्) अतिश्रेष्ठम् ॥६॥
भावार्थः
यथा राजानं सत्कृत्य प्रजाजना ऐश्वर्यवन्तो जायन्ते तथैव राजानः प्रजाः सत्कृत्य कीर्त्तिमन्तो भवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (चर्षणीनाम्) विद्याप्रकाश से युक्त मनुष्यों के मध्य में (वृषभम्) अत्यन्त उत्तम (विश्वरूपम्) कर्मों वा वस्तुओं को रूपित करते हुए अर्थात् उनको यथार्थभाव से प्रकट करते हुए (अदाभ्यम्) नहीं हिंसा करने और सत्कार करने योग्य (वरेण्यम्) अत्यन्त श्रेष्ठ (बृहस्पतिम्) बड़ों के पालन करनेवाले राजा का आप लोग आदर करो, इससे पराक्रम की कामना करो ॥६॥
भावार्थ
जैसे राजा का सत्कार करके प्रजाजन ऐश्वर्य्यवान् होते हैं, वैसे ही राजा लोग प्रजाओं का सत्कार करके कीर्त्तियुक्त होते हैं ॥६॥
विषय
'विश्वरूप अदाभ्य' बृहस्पति की उपासना
पदार्थ
[१] हे मनुष्यो ! उस (बृहस्पति) = ज्ञान के पति प्रभु का तुम [नमस्यत] उपासन करो, जो प्रभु (चर्षणीनां बृषभम्) = श्रमशील मनुष्यों के लिए सुखों का वर्षण करनेवाले हैं। (विश्वरूपम्) = इस सम्पूर्ण विश्व को रूप देनेवाले हैं इसके निर्माता हैं। [२] उस प्रभु का स्तवन करो, जो कि (अदाभ्यम्) = किसी से हिंसित होनेवाले नहीं तथा (वरेण्यम्) = वरण करने योग्य हैं। इन प्रभु के वरण में ही सब दुःखों का अन्त है ।
भावार्थ
भावार्थ- ज्ञानरूप- प्रभु की उपासना से हम भी मनुष्यों के सुखों का वर्धन करनेवाले, निर्माण के कार्यों को करनेवाले व किसी भी काम-क्रोध आदि शत्रु से हिंसित होनेवाले न होंगे।
विषय
बृहस्पति परमेश्वर।
भावार्थ
(चर्षणीनां) समस्त मनुष्यों के बीच में (वृषभम्) समस्त सुखों की वर्षा करने वाले, बलवान्, सब पर कृपालु (अदाभ्यम्) किसी से न मारने योग्य, सबसे सत्कार पाने योग्य (वरेण्यम्) अति श्रेष्ठ वा श्रेष्ठ मार्ग में ले जाने वाले (बृहस्पतिं) वेद वाणी के पालक विद्वान् और महान् ब्रह्माण्ड के स्वामी (विश्वरूपं) समस्त पदार्थों के ज्ञाता एवं समस्त पदार्थों के निर्माता विश्वरूप परमेश्वर को (नमस्यत) नमस्कार करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसे राजे लोकांचा सत्कार करून प्रजा ऐश्वर्यवान होते तसेच राजे लोक प्रजेचा सत्कार करून कीर्तिमान होतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
I bow in homage to Brhaspati, master of knowledge and speech, mighty generous and creative, indomitably brave, exponent of all forms and variations of world knowledge and world language, most eminent and brilliant of scholars among men, the one and only one worthy of choice and homage.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of friends are verified.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! make obeisance to that Brihaspati (King or Protector of all the great vows), who showers happiness on the learned men, gives practical shape to all good schemes, and is inviolable, respectable and the best. You also desire to get strength from him, following into his foot-steps.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the subjects become prosperous by respecting their rulers, in the same way the rulers also attain good reputation in return by honoring their subjects,
Foot Notes
(बृहस्पतिम् ) बृहतां पालकं राजानम् । = King who is the protector of all big vows. (विश्वरूपम्) विश्वानि कर्माणि वस्तूनि वा रुपयन्तम् । = Giving good form to all noble actions or objects. (अदाभ्यम्) अहिन्सनीयं सत्कर्तव्यम् = Inviolable and respectable.
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