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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 17/ मन्त्र 16
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    ग॒व्यन्त॒ इन्द्रं॑ स॒ख्याय॒ विप्रा॑ अश्वा॒यन्तो॒ वृष॑णं वा॒जय॑न्तः। ज॒नी॒यन्तो॑ जनि॒दामक्षि॑तोति॒मा च्या॑वयामोऽव॒ते न कोश॑म् ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग॒व्यन्तः॑ । इन्द्र॑म् । स॒ख्याय॑ । विप्राः॑ । अ॒श्व॒ऽयन्तः । वृष॑णम् । वा॒जय॑न्तः । ज॒नि॒ऽयन्तः॑ । ज॒नि॒ऽदाम् । अक्षि॑तऽऊतिम् । आ । च्य॒व॒या॒मः॒ । अ॒व॒ते । न कोश॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वृषणं वाजयन्तः। जनीयन्तो जनिदामक्षितोतिमा च्यावयामोऽवते न कोशम् ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गव्यन्तः। इन्द्रम्। सख्याय। विप्राः। अश्वऽयन्तः। वृषणम्। वाजयन्तः। जनिऽयन्तः। जनिऽदाम्। अक्षितऽऊतिम्। आ। च्यवयामः। अवते। न। कोशम् ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 16
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्रजाभ्यः कथं सुखमैश्वर्यं चाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथा गव्यन्तोऽश्वायन्तो वाजयन्तो जनीयन्तो विप्रा वयं सख्याय वृषणं जनिदामक्षितोतिमवते कोशं नेन्द्रमाच्यावयामस्तथैतं यूयमप्येनमन्यान् प्रापयत ॥१६॥

    पदार्थः

    (गव्यन्तः) आत्मनो गा इच्छन्तः (इन्द्रम्) सूर्य्य इव प्रकाशमानं राजानम् (सख्याय) मित्रस्य भावाय कर्मणे वा (विप्राः) मेधाविनः (अश्वायन्तः) आत्मनोऽश्वानिच्छन्तः (वृषणम्) सुखवर्षकम् (वाजयन्तः) विज्ञानमन्नं वेच्छन्तः (जनीयन्तः) जायामिच्छन्तः (जनिदाम्) या जनिं जन्म ददाति (अक्षितोतिम्) अक्षीणा ऊती रक्षा यस्य तम् (आ) (च्यावयामः) प्रापयामः (अवते) कूपे। अवत इति कूपनामसु पठितम्। (निघं०३.२३) (न) इव (कोशम्) मेघम् ॥१६॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। येषां सुखैश्वर्येच्छा स्यात्ते मेघ इव धनवर्षकं नित्यरक्षं राजानं मित्रत्वाय सङ्गृह्णीयुः ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब प्रजाजनों को कैसे सुख और ऐश्वर्य हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (गव्यन्तः) अपनी गौओं की इच्छा (अश्वायन्तः) अपने घोड़ों की इच्छा (वाजयन्तः) विज्ञान वा अन्न की इच्छा (जनीयन्तः) तथा स्त्री की इच्छा करते हुए (विप्राः) बुद्धिमान् हम लोग (सख्याय) मित्र होने के वा मित्रकर्म के लिये (वृषणम्) सुख के वर्षानेवाले पिता (जनिदाम्) जन्म देनेवाली माता (अक्षितोतिम्) वा जिसकी रक्षा क्षीण नहीं होती, उस नित्यरक्षक पुरुष को और (अवते) कूप में (कोशम्) मेघ के (न) सदृश (इन्द्रम्) वा सूर्य्य के सदृश प्रकाशमान राजा को (आ, च्यावयामः) प्राप्त करावें, वैसे इस सब को आप लोग भी औरों को प्राप्त कराओ ॥१६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जिनको सुख और ऐश्वर्य्य की इच्छा होवे, वे मेघ के सदृश धन वर्षाने और नित्य रक्षा करनेवाले राजा को मित्रभाव के लिये ग्रहण करें ॥१६॥

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    विषय

    गव्यन्ताः अश्वायन्तः

    पदार्थ

    [१] (विप्राः) = विशेषरूप से अपना पूरण करनेवाले, (गव्यन्तः) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियों की कामनावाले, (अश्वायन्तः) = उत्तम कर्मेन्द्रियरूप अश्वों की कामनावाले हम उस (इन्द्रम्) = सब इन्द्रियों के अधिष्ठाता प्रभु को (सख्याय) मित्रता के लिए (आच्यावयामः) = अपने में प्राप्त कराते हैं । (वाजयन्तः) = शक्ति की कामना करते हुए हम उस (वृषणम्) = शक्तिशाली प्रभु को अपने में प्राप्त करानेवाले होते हैं। [२] (जनीयन्तः) = सब प्रकार के विकासों की कामनावाले हम (जनिदाम्) = विकास को देनेवाले (अक्षित ऊतिम्) = अक्षीण रक्षणवाले उस प्रभु को अपने में आगत करते हैं। उसी प्रकार प्रभु को हम अपने में उतारते हैं, (न) = जैसे कि (अवते) = कूप में (कोशम्) = जलोद्धरण पात्र को। दिव्यता को अपने अन्दर अवतीर्ण करके हम भी प्रभु जैसा बनने के लिए यत्नशील होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु को अपने में धारण करके हम उत्तम ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, शक्तियों व विकासों को प्राप्त करते हैं। कूएँ में पात्र की तरह हम अपने में दिव्यता के अवतरण के लिए यत्नशील होते हैं ।

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    विषय

    गृहस्थों का रक्षक राजा हो ।

    भावार्थ

    (अवते न कोशम्) कूप में से जल प्राप्त करने के लिये जिस प्रकार कोश अर्थात् जल निकालने वाले डोल को प्राप्त किया जाता है उसी प्रकार (गव्यन्तः) गौओं, वाणियों, ज्ञानरश्मियों की इच्छा करते हुए, (अश्वायन्तः) अश्वों की कामना करते हुए और (वाजयन्तः) अन्न, बल, ऐश्वर्य और ज्ञान की कामना करते हुए (जनीयन्तः) अपना उत्तम जन्म और सन्तानजनक स्त्री का कामना करते हुए हम (विप्राः) बुद्धिमान् लोग (इन्द्रं) ऐश्वर्ययुक्त, (वृषणं) बलवान्, मेघवत् सुखों के वर्षक, (जनिदाम) जन्मदाता एवं अपत्योत्पादक वधू के देने वाले और (अक्षितोतिम्) अक्षय रक्षा करने वाले रक्षक पुरुष को (सख्याय) मित्रभाव के लिये (आच्यावयामः) प्राप्त करें और अन्यों को प्राप्त करावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ पंक्तिः । ७,९ भुरिक पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः। १५ याजुषी पंक्तिः । निचृत्पंक्तिः । २, १२, १३, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ८, १०, ११ त्रिष्टुप् । ४, २० , । विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. ज्यांना सुख व ऐश्वर्याची इच्छा असेल त्यांनी मेघाप्रमाणे धनाचा वर्षाव करणाऱ्या व नित्य रक्षण करणाऱ्या राजाचा मित्राप्रमाणे स्वीकार करावा. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Desirous of cows, horses, speed and energy, science and progress, and the love of our mates, we, scholars, sages and intelligent people exhort and move Indra for friendship, hero brave and generous, giver of birth and progeny and unfailing provider of protection and well-being. We move and exhort him as we lower a bucket into a well, shake it, fill it up with water and draw it up for our benefit.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The way to attain happiness and prosperity by the person is stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! being wisemen we invoke Indra (the king, shining like the sun on account of his virtues) for friendship. We desire the cow, horses, knowledge or food and good wives, because she showers happiness, like a mother and gives protection. We invoke him (Indra) like a person, who draws water from a well.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who desire to attain happiness and prosperity should elect a good king who showers wealth like a cloud and whose protection never ceases for his friend.

    Foot Notes

    (वाजयन्तः ) विज्ञानमन्नं वेच्छन्तः । = Desiring knowledge or food. (जनिदाम् ) या जनि जन्म ददाति । Mother. (अवते) कूपे । अवत इति कूपनाम (NG 3, 23 ) = In the well. ( कोशम्) मेघम् । कोश इति मेघनाम (NG 1, 10) Cloud. A good king should be like a mother and friend to all good people and should try to fulfil their noble desires.

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    हिंगलिश (1)

    Word Meaning

    ऐसे राज्य में प्रजा को इच्छानुसार सुख के सब साधन उत्तम गोवंश , आवागमन के रथ वाहनादि साधन स्वस्थ सुखी परिवार, ज्ञानवान मित्र ऐसे उपलब्ध रहते हैं जैसे उत्तम ज्ञान और धन धान्य की निर्बाधित वर्षा हो रही हो.

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