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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 18/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रादिती छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मम॑च्च॒न ते॑ मघव॒न्व्यं॑सो निविवि॒ध्वाँ अप॒ हनू॑ ज॒घान॑। अधा॒ निवि॑द्ध॒ उत्त॑रो बभू॒वाञ्छिरो॑ दा॒सस्य॒ सं पि॑णग्व॒धेन॑ ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मम॑त् । च॒न । ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । विऽअं॑सः । नि॒ऽवि॒वि॒ध्वान् । अप॑ । हनू॒ इति॑ । ज॒घान॑ । अध॑ । निऽवि॑द्धः । उत्ऽत॑रः । ब॒भू॒वान् । शिरः॑ । दा॒सस्य॑ । सम् । पि॒ण॒क् । व॒धेन॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ममच्चन ते मघवन्व्यंसो निविविध्वाँ अप हनू जघान। अधा निविद्ध उत्तरो बभूवाञ्छिरो दासस्य सं पिणग्वधेन ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ममत्। चन। ते। मघऽवन्। विऽअंसः। निऽविविध्वान्। अप। हनू इति। जघान। अध। निऽविद्धः। उत्ऽतरः। बभूवान्। शिरः। दासस्य। सम्। पिणक्। वधेन ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 18; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मघवन् ! यस्त दासस्य वधेन शिरः सम्पिणग् व्यंसो निविविध्वान् हनू अप जघानाधा ममच्चनोत्तरो निविद्धो बभूवांस्तं त्वं दण्डय ॥९॥

    पदार्थः

    (ममत्) हर्षन् (चन) अपि (ते) (मघवन्) बहुधनयुक्त (व्यंसः) विप्रकृष्टा अंसा बलादयो यस्य सः (निविविध्वान्) यो नितरां शत्रून् विध्यति सः (अप) दूरीकरणे (हनू) मुखपार्श्वौ (जघान) (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (निविद्धः) नितरां वाणैर्विच्छिन्नः (उत्तरः) उत्तरकालीनः (बभूवान्) भवति (शिरः) उत्तमाङ्गम् (दासस्य) दातुं योग्यस्य (सम्) (पिणक्) पिनष्टि (वधेन) ताडनेन ॥९॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यो विरुद्धेन कर्मणा प्रजासु विचेष्टते तं सदा निबद्धं शस्त्रैर्व्यथितं कृत्वा सर्वतो निबध्नीहि ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मघवन्) बहुत धन से युक्त पुरुष जो (ते) आपके (दासस्य) देने योग्य के (वधेन) ताड़न से (शिरः) शिर को (सम्, पिणक्) अच्छे पीसता है (व्यंसः) खींच लिये गये हैं बल आदि जिसके ऐसा (निविविध्वान्) अत्यन्त शत्रुओं का नाश करनेवाला (हनू) मुख के आस-पास के भागों को (अप) दूर करने में (जघान) नाश करता है (अधा) इसके (ममत्) प्रसन्न होता हुआ (चन) भी (उत्तरः) आगे के समय में होनेवाला (निविद्धः) अत्यन्त वाणों से छेदा गया (बभूवान्) होता है, उसको आप दण्ड दीजिये ॥९॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जो विरुद्ध कर्म से प्रजाओं में चेष्टा करता है, उस सदा दृढ़ बँधे को शस्त्रों से व्यथित कर सब प्रकार से बाँधो ॥९॥

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    विषय

    व्यंस [अतिप्रबल काम]

    पदार्थ

    [१] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् इन्द्र ! (ममच्चन) = अत्यन्त मदवाला होता हुआ (व्यंसः) = यह अतिप्रबल 'काम' (ते) = तेरे पर (निविविध्वान्) = आक्रमण करता हुआ [प्रविध्यन् सा० ] तुझे बाणों से पीड़ित करता हुआ, (हनू) = तेरे हनुओं को (अपजघान) = आहत करके नष्ट कर डालता है, अर्थात् तुझे खाने के चस्के में डाल देता है। यह जिह्वा का आस्वाद हमारे सब पतनों का कारण बनता है। [२] (अधा) = अब (निविद्धः) = इस विषयानुराग से निश्चयेन विद्ध हुआ हुआ (उत्तरः बभूवान्) = इन विषयों से ऊपर उठने का प्रयत्न करता हुआ तू हे इन्द्र ! (दासस्य) = इस विनष्ट करनेवाले 'काम' नामक असुर के (शिरः) = सिर को (वधेन) = वज्र से (संपिणक्) = पीस डाल। काम के सिर को कुचल करके ही यह उत्तर बनता है- आगे बढ़नेवाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ– अत्यन्त प्रबल इस 'काम' का विध्वंस करके हम 'उत्तर' बनें, उत्कृष्ट मार्ग पर चलनेवाले हों।

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    विषय

    सर्वेश्वर कर्म फलप्रद, परमेश्वर ।

    भावार्थ

    हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! (ममत् चन) मदयुक्त होकर ही (व्यंसः) विविध स्कन्धों नाना सैन्य कंटकों से बलशाली होकर कोई शत्रु (विविधान्) विविध प्रकार से ताड़ता हुआ यदि (ते) तेरे (हनू) हनन करने वाली दायें बायें दोनों ओर की सेनाओं को (अप जघान) विनाश करे तब तू (निविद्धः) खूब ताड़ित होकर उससे (उत्तरः) अधिक बलशाली (बभूवान्) होकर (दासस्य) प्रजा के नाश करने वाले उसके (शिरः) उत्तम अंग मुख्य भाग को (वधेन) शस्त्र बल से (सं पिणक्) अच्छी प्रकार पीस डाल ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः । इन्द्रादिती देवत ॥ छन्द:– १, ८, १२ त्रिष्टुप । ५, ६, ७, ९, १०, ११ निचात्त्रष्टुप् । २ पक्तः । ३, ४ भुरिक् पंक्ति: । १३ स्वराट् पक्तिः। त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! जो प्रजेमध्ये विरोधी कार्य करण्याचा प्रयत्न करतो त्याला सदैव बंधित करून शस्त्रांनी पीडित करून सर्व प्रकारे बंधनात ठेवावे. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Maghavan, lord of might and excellence, when the self-deluded fool, though arms and shoulders broken, in a state of madness, striking right and left attacks your forces, then though attacked, recover, rise later higher and crush the head of the wicked opponent with a deadly strike of the thunderbolt.

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