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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 13
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒स्मभ्यं॒ ताँ अपा॑ वृधि व्र॒जाँ अस्ते॑व॒ गोम॑तः। नवा॑भिरिन्द्रो॒तिभिः॑ ॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्मभ्य॑म् । तान् । अप॑ । वृ॒धि॒ । व्र॒जान् । अस्ता॑ऽइव । गोऽम॑तः । नवा॑भिः । इ॒न्द्र॒ । ऊ॒तिऽभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मभ्यं ताँ अपा वृधि व्रजाँ अस्तेव गोमतः। नवाभिरिन्द्रोतिभिः ॥१३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मभ्यम्। तान्। अप। वृधि। व्रजान्। अस्ताऽइव। गोऽमतः। नवाभिः। इन्द्र। ऊतिऽभिः ॥१३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 13
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः प्रजावर्द्धनप्रकारेण राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! त्वं नवाभिरूतिभिरस्मभ्यं गोमतो व्रजाँस्तानस्तेव वृधि दुःखान्यपावृधि ॥१३॥

    पदार्थः

    (अस्मभ्यम्) (तान्) (अपा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (वृधि) वर्धय (व्रजान्) व्रजन्ति गावो येषु तान् (अस्तेव) गृहाणीव (गोमतः) बह्व्यो गावो विद्यन्ते येषु तान् (नवाभिः) नूतनाभिः (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद राजन् (ऊतिभिः) रक्षादिभिः ॥१३॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यथा गोपाला गा वर्धयित्वा दुग्धादिभिराढ्या भूत्वाऽऽनन्दन्ति तथैवाऽऽस्मान् वर्धयित्वाऽढ्यो भूत्वा सदैवानन्द ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर प्रजावृद्धिप्रकार से राजप्रजाधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) परम ऐश्वर्य्य के देनेवाले राजन् ! आप (नवाभिः) नवीन (ऊतिभिः) रक्षादिकों से (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (गोमतः) जिनमें बहुत गौएँ विद्यमान और (व्रजान्) बहुत गौएँ जातीं (तान्) उन गोड़ों (अस्तेव) गृहों के समान बढ़ाइये और दुःखों को (अपा, वृधि) न्यून कीजिये, नष्ट कीजिये ॥१३॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जैसे गोपाल गौओं को बढ़ा के दुग्धादिकों से आढ्य होते हैं, वैसे ही हम लोगों की वृद्धि करो और आढ्य होकर सदैव आनन्द कीजिये ॥१३॥

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    विषय

    विषयव्रज से मुक्ति

    पदार्थ

    [१] 'गो' शब्द इन्द्रियों के लिए प्रयुक्त होता है। ये इन्द्रियाँ विषयों के बाड़े में कैद ही हो जाती हैं। मन्त्र में प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! आप (अस्ता इव) = अस्त्रों को शत्रु- सैन्य पर फेंकनेवाले एक योद्धा के समान (नवाभिः ऊतिभिः) = अपने अत्यन्त प्रशंसनीय रक्षणों द्वारा अथवा नौ संख्यावाले रक्षणों द्वारा (तान्) = उन (गोमतः व्रजान्) = इन्द्रियरूप गौवों से युक्त बाड़ों को (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (अपावृधि) = खोल डालिए। हमारी इन्द्रियों को विषयों के बाड़े से मुक्त करने की कृपा कीजिए। [२] इन्द्रियाँ सामान्यत: 'पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व पाँच कर्मेन्द्रियाँ' मिलकर दस हैं। इनमें 'जिह्वा' बोलने का काम करती हुई कर्मेन्द्रियों में हैं, तो रस को चखती हुई ज्ञानेन्द्रियों में इस प्रकार वस्तुतः इन्द्रियाँ नौ ही हो जाती हैं। इनके रक्षण भी इसी कारण यहाँ नव-नौ कह गये हैं। प्रभु ही इन इन्द्रियों को विषयों के बाड़े से मुक्त करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु का स्मरण करें, ताकि इन्द्रियाँ विषयव्रज में अवरुद्ध न हो जाएँ।

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    विषय

    परमेश्वर और राजा से प्रार्थना । और राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन्! हे विद्वन् ! तू (नवाभिः ऊतिभिः) नये २ रक्षा साधनों और नई २ आविष्कृत विद्याओं से (अस्मभ्यं) हमारे उपकार के लिये (तान्) उन (गोमतः) गौओं के (व्रजान्) बाड़ों के तुल्य रश्मियों, ज्ञान-वाणियों और भूमियों के समूहों को (अस्ताइव) गृहों के समान (अप वृधि) खोल दे, प्रकट कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, ९, १०, १४ गायत्री। २, ६, १२, १३, १५ निचृद्गायत्री । ३ त्रिपाद्गायत्री । ४, ५ विराड्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा! जसे गोपाल गाईंची वाढ करून दूध इत्यादींनी धनवान होतात तशी आमची वृद्धी कर व आम्हाला धनवान करून आनंदित हो. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord ruler of the wealth of the world, open for us the gates of the cow stalls like the cow herd, open the secrets of the Divine Word like the Omniscient, open the treasures of the earth like the earth’s ruler and protector, open the doors for us with the latest safeguards and methods of protection.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The ruler's duty towards his subjects is highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O ruler! you give enormous prosperity. Under your latest protective devices, get us a large stock of cow progeny, so that they can roam and graze freely in the vast areas. This way our homes get large expansion and our miseries are eradicated or diminished.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The masters of the cow progeny get more wealth from them like increase in the production of milk etc. O ruler ! let you take us to the large quantum of prosperity, so that we can ever become delightful.

    Foot Notes

    (व्रजान्) व्रजन्ति गावो येषु तान्। = Cow-farms or sheds. (अस्तेव) गृहाणीव । = Like the homes. (गोमतः ) वहभ्यो गावो विद्यन्ते येषु तान् । = Cow sheds.

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