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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 37/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - स्वराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    वा॒सय॑सीव वे॒धस॒स्त्वं नः॑ क॒दा न॑ इन्द्र॒ वच॑सो बुबोधः। अस्तं॑ ता॒त्या धि॒या र॒यिं सु॒वीरं॑ पृ॒क्षो नो॒ अर्वा॒ न्यु॑हीत वा॒जी ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒सय॑सिऽइव । वे॒धसः॑ । त्वम् । नः॒ । क॒दा । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । वच॑सः । बु॒बो॒धः॒ । अस्त॑म् । ता॒त्या । धि॒या । र॒यिम् । सु॒ऽवीर॑म् । पृ॒क्षः । नः॒ । अर्वा॑ । नि । उ॒ही॒त॒ । वा॒जी ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वासयसीव वेधसस्त्वं नः कदा न इन्द्र वचसो बुबोधः। अस्तं तात्या धिया रयिं सुवीरं पृक्षो नो अर्वा न्युहीत वाजी ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वासयसिऽइव। वेधसः। त्वम्। नः। कदा। नः। इन्द्र। वचसः। बुबोधः। अस्तम्। तात्या। धिया। रयिम्। सुऽवीरम्। पृक्षः। नः। अर्वा। नि। उहीत। वाजी ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 37; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्भिः किं कर्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! त्वं तात्या धिया नोऽस्मान् वेधसो वासयसीव नोऽस्माकं वचसः कदा बुबोधः वाज्यर्वा स नु नोऽस्मान् सुवीरं रयिं कदा न्युहीतास्माकमस्तं प्राप्य पृक्षः कदा सेवयेः ॥६॥

    पदार्थः

    (वासयसीव) (वेधसः) मेधाविनः (त्वम्) (नः) अस्मान् (कदा) (नः) अस्माकम् (इन्द्र) सुखप्रद (वचसः) वचनस्य (बुबोधः) बुद्ध्याः (अस्तम्) गृहम् (तात्या) या तते परमेश्वरे साध्वी तया (धिया) प्रज्ञया (रयिम्) धनम् (सुवीरम्) शोभना वीरा यस्मात्तम् (पृक्षः) सम्पर्चनीयमन्नम् (नः) अस्मान् (अर्वा) अश्व इव (नि) (उहीत) वहेत् (वाजी) विज्ञानवान् ॥६॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । सर्वे मनुष्या विदुषः प्रत्येवं प्रार्थयेयुर्भवन्तोऽस्मान् कदा विदुषः कृत्वा धनधान्यस्थानाद्यैश्वर्यं प्रापयिष्यन्तीति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सुख देनेवाले ! (त्वम्) आप (तात्या) व्याप्त परमेश्वर में उत्तमता से स्थिर होनेवाली (धिया) बुद्धि से (नः) हम (वेधसः) बुद्धिमान् जनों को (वासयसीव) वसाते हुए से (नः) हमारे (वचसः) वचन को (कदा) कब (बुबोधः) जानोगे (वाजी) विज्ञानवान् आप (अर्वा) घोड़े के समान (नः) हम लोगों को (सुवीरम्) जिससे अच्छे-अच्छे वीर जन होते हैं उस (रयिम्) धन को कब (नि, उहीत) प्राप्त करियेगा और हमारे (अस्तम्) घर को प्राप्त होकर (पृक्षः) सम्पर्क करने योग्य अन्न कब सेवोगे ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । सब मनुष्य विद्वानों के प्रति ऐसी प्रार्थना करें, आप लोग हमें कब विद्वान् करके धन-धान्य, स्थान आदि पदार्थ और ऐश्वर्य्य को प्राप्त करावेंगे ॥६॥

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    विषय

    उससे नाना प्रश्न ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! विद्वन् ! ( त्वं ) तू ( नः ) हम ( वेधसः ) विद्वान् पुरुषों को (वासयसि इव) अपने राष्ट्र में बसासा रहा है । तू ( नः ) हमारे ( वचसः ) वचनों को ( कदा ) कब ( बुबोधः ) समझेगा ? ( वाजी अर्वा ) वेगवान् अश्व के समान समर्थ बलवान् और ऐश्वर्यवान् पुरुष ( तात्या धिया ) व्यापक परमेश्वर में निष्ठ बुद्धि और त्याग युक्त कर्म से प्रेरित होकर ( नः अस्तं ) हमारे घर में कब ( सुवीरं-रयिं ) उत्तम पुत्रों और वीरों से युक्त धन और ( पृक्षः ) शान्तिदायक, अन्न को ( नि उहीत ) प्राप्त करावे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – १, ३ त्रिष्टुप् । २, ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ५, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ४ निचृत्पंक्तिः । ६ स्वराट् पंक्तिः॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    हमारी बात सुनो

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (त्वं) = तू (नः) = हम (वेधसः) = विद्वानों को (वासयसि इव) = राष्ट्र में बसा-सा रहा है। तू (नः) = हमारे (वचसः) = वचनों को (कदा) = कब (बुबोधः) = समझेगा? (वाजी अर्वा) = वेगवान् अश्व-तुल्य बलवान् पुरुष (तात्या धिया) = व्यापक बुद्धि और त्याग-युक्त कर्म से प्रेरित होकर (नः अस्तं) = हमारे घर में (सुवीरं रयिं) = उत्तम पुत्रों से युक्त धन और (पृक्षः) = अन्न (नि उहीत) = प्राप्त करावे।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वान् जन राष्ट्र की प्रजा को प्रेरणा करें कि तुम लोग व्यापक परमेश्वर में बुद्धि को स्थिर करके अपने कर्मों को त्याग युक्त बनाओ तथा उस प्रभु से प्रार्थना किया करो कि हमारे घर में उत्तम वीर पुत्रों, धन तथा अन्न प्रदान कर शान्ति की स्थापना करे। उस प्रियतम प्रभु से कातर भाव से बार-बार प्रार्थना कर कहो कि हमारी बात सुनो।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी विद्वानांना अशी प्रार्थना करावी की, तुम्ही आम्हाला कधी विद्वान करून धन, धान्य, स्थान इत्यादी पदार्थ व ऐश्वर्य प्राप्त करून द्याल? ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, giver of settled security and peace, intelligent and dedicated devotees as we are, when would you listen to our voice of prayer as to people settled in peaceful homes? O lord of dynamic forces, commander of speed, power and success, visit our home, bless us with divine vision and wisdom and bring us wealth, honour and excellence, food and energy and a noble progeny.

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