ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 90/ मन्त्र 4
उ॒च्छन्नु॒षस॑: सु॒दिना॑ अरि॒प्रा उ॒रु ज्योति॑र्विविदु॒र्दीध्या॑नाः । गव्यं॑ चिदू॒र्वमु॒शिजो॒ वि व॑व्रु॒स्तेषा॒मनु॑ प्र॒दिव॑: सस्रु॒राप॑: ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒च्छन् । उ॒षसः॑ । सु॒ऽदिनाः॑ । अ॒रि॒प्राः । उ॒रु । ज्योतिः॑ । वि॒वि॒दुः॒ । दीध्या॑नाः । गव्य॑म् । चि॒त् । ऊ॒र्वम् । उ॒शिजः॑ । वि । व॒व्रुः॒ । तेषा॑म् । अनु॑ । प्र॒ऽदिवः॑ । सस्रुः॑ । आपः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उच्छन्नुषस: सुदिना अरिप्रा उरु ज्योतिर्विविदुर्दीध्यानाः । गव्यं चिदूर्वमुशिजो वि वव्रुस्तेषामनु प्रदिव: सस्रुराप: ॥
स्वर रहित पद पाठउच्छन् । उषसः । सुऽदिनाः । अरिप्राः । उरु । ज्योतिः । विविदुः । दीध्यानाः । गव्यम् । चित् । ऊर्वम् । उशिजः । वि । वव्रुः । तेषाम् । अनु । प्रऽदिवः । सस्रुः । आपः ॥ ७.९०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 90; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उषसः) वायुविद्यावेतृसङ्गतानां जनानां प्रभातकालेन सह (सुदिनाः) शोभनदिनानि (अरिप्राः) निष्पापानि (उच्छन्) वियन्ति, तथा च ते (दीध्यानाः) ध्यायन्तः (उरु) सर्वातिशायि (ज्योतिः) ज्योतिःस्वरूपं ब्रह्म जानन्ति, तथा (प्रदिवः) द्युलोकः (आपः) जलं (सस्रुः) वर्षति तथा (अनु) विद्वांसः (तेषाम्) तेभ्यः (अणुः वव्रुः) उपदिशन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
जो लोग उक्त वायुविद्यावेत्ता विद्वान् की संगति में रहते हैं, उनके (उषसः) प्रभातवेलाओं सहित (सुदिनाः) सुन्दर दिन (अरिप्राः) निष्पाप (उच्छन्) व्यतीत होते हैं और वे (दीध्यानाः) ध्यान करते हुए (उरु) सर्वोपरि (ज्योतिः) ज्योतिःस्वरूप ब्रह्म को जान लेते हैं और (प्रदिवः) द्युलोक (आपः) जलों की (सस्रुः) वृष्टि करते हैं तथा विद्वान् लोग (तेषाम्) उनको (अनुः, वव्रुः) सुन्दर उपदेश करते हैं ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे पुरुषो ! जो लोग वायुवत् सर्वत्र गतिशील विद्वानों की संगति में रहते हैं, उनके लिये सूर्योदयकाल सुन्दर प्रतीत होते हैं और उनके लिये सृवृष्टि और सम्पूर्ण ऐश्वर्य उपलब्ध होते हैं। बहुत क्या, योगी जनों की संगति करनेवाले पुरुष ध्यानावस्थित होकर उस परम ज्योति को उपलब्ध करते हैं, जिसका नाम परब्रह्म है ॥ तात्पर्य यह है कि विद्वानों की संगति के बिना उस पूर्णपुरुष का बोध कदापि नहीं हो सकता, इसलिये पुरुष को उचित है कि सदैव विद्वानों की संगति में रहे ॥४॥
विषय
विद्वानों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( उषसः ) उषाएं, प्रभात वेलाएं वा सूर्य की दाहक कान्तियें ( सु-दिनाः उच्छन् ) उत्तम दिन वाली होकर प्रकट होती हैं, (अरि-प्राः ) पाप रहित ( दीध्यानाः ) देदीप्यमान, ( उरु ज्योतिः विविदुः ) बहुत बड़े विशाल प्रकाशवान् सूर्य को प्राप्त करती ( उशिजः ) कान्तियुक्त होकर ( गव्यम् ऊर्वम् विवव्रुः ) रश्मियों के बड़े धन को फैलाती है ( अनु प्रदिवः आपः सस्त्रुः ) अनन्तर आकाश से मेघ जल बरसते हैं इसी प्रकार ( उषस: ) उषावत् जीवन के प्रारम्भ भाग में वर्त्तमान नर नारीगण ( सु - दिना ) शुभ दिन युक्त होकर ( उच्छन् ) अपने गुण प्रकट करें । और वे ( दीध्यानाः ) ईश्वर का ध्यान करते हुए ( उरु ज्योतिः ) बड़ी भारी ज्ञानमय ज्योति को ( विविदुः ) प्राप्त करें । वे ( उशिजः ) कामनावान् वा प्रीतियुक्त होकर ( गव्यम् ऊर्वम् ) वेदवाणी के धन को ( विवव्रुः ) विविध प्रकार से विवरण करें, उसकी व्याख्या और रहस्योद्-घाटन करें । ( तेषाम् अनु ) उनके पीछे २ ही ( प्र-दिवः ) उत्तम फल की कामना करने वाली ( आपः ) आप्त प्रजाएं ( सस्रुः ) चलें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—४ वायुः। ५—७ इन्द्रवायू देवते । छन्दः—१, २, ७ विराट् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् । ४, ५, ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
छोटी उम्र में ईश्वर का ध्यान
पदार्थ
पदार्थ- जैसे (उषसः) = प्रभात वेलाएँ वा सूर्य की दाहक कान्तियें (सु-दिनाः उच्छन्) = उत्तम दिनवाली होकर प्रकट होती हैं, (अरि-प्राः) = पाप-रहित (दीध्यानाः) = देदीप्यमान, (उरु ज्योतिः विविदुः) = बहुत बड़े विशाल प्रकाशवान् सूर्य को प्राप्त करती (उशिजः) = कान्तियुक्त होकर (गव्यम् ऊर्वम् विवव्रुः) = रश्मियों के बड़े धन को फैलाती है (अनु प्रदिवः आपः सस्नुः) = अनन्तर आकाश से मेघ जल बरसते हैं वैसे ही (उषसः) = उषावत् जीवन के प्रारम्भ भाग में वर्त्तमान नर-नारीगण (सु-दिना) = शुभ दिन युक्त होकर (उच्छन्) = अपने गुण प्रकट करें और वे (दीध्यानाः) = ईश्वर ध्यान करते हुए (उरु ज्योतिः) = बड़ी भारी ज्ञान- ज्योति को (विविदुः) = प्राप्त करें। वे (उशिजः) = प्रीतियुक्त होकर (गव्यम् ऊर्वम्) = वेदवाणी के धन को (विवव्रुः) = विविध प्रकार से वितरण करें, उसकी व्याख्या करें। (तेषाम् अनु) = उनके पीछे-पीछे ही (प्र-दिवः) = उत्तम फल की कामनावाली (आपः) = आप्त प्रजाएँ (सत्रुः) = चलें।
भावार्थ
भावार्थ- स्त्री-पुरुष जीवन के प्रारम्भ काल अर्थात् छोटी उम्र से ही ईश्वर का ध्यान किया करें। इससे उनमें ईश्वर का दिव्य तेज चमकने लगेगा तथा वे ब्रह्मचारी होकर वेदवाणी का स्वाध्याय प्रीतिपूर्वक करते हुए अन्यों के सामने वेद की विविध व्याख्याएँ प्रकट करके प्रजाओं को आप्त प्रजा बना सकेंगे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Pure and immaculate lights of dawn arise and shine to bring in the happy day. Shining they collect and radiate vast light for the world, and, brilliant with beauty and living energy, they uncover and reveal the wealth of the earth and vast sky. Consequently the lights of dawn lead to radiations of light from the sun and the day’s activities follow and proceed.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे पुरुषांनो! जे लोक वायुप्रमाणे सर्वत्र गतिशील असून, विद्वानांच्या संगतीत राहतात त्यांना सूर्योदयाचा काल सुंदर वाटतो व त्यांच्यावर सुवृष्टी होऊन संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त होते. ज्याचे नाव परब्रह्म आहे त्या परमज्योतीला योगी जनांची संगती करणारे पुरुष ध्यानावस्थित होऊन उपलब्ध करतात.
टिप्पणी
तात्पर्य हे, की विद्वानांच्या संगतीशिवाय त्या पूर्ण पुरुषाचा बोध कधीही होऊ शकत नाही. त्यासाठी पुरुषांनी सदैव विद्वानांच्या संगतीत राहावे. ॥४॥
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