ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 43
इ॒मां सु पू॒र्व्यां धियं॒ मधो॑र्घृ॒तस्य॑ पि॒प्युषी॑म् । कण्वा॑ उ॒क्थेन॑ वावृधुः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माम् । सु । पू॒र्व्याम् । धिय॒म् । मधोः॑ । घृ॒तस्य॑ । पि॒प्युषी॑म् । कण्वाः॑ । उ॒क्थेन॑ । व॒वृ॒धुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमां सु पूर्व्यां धियं मधोर्घृतस्य पिप्युषीम् । कण्वा उक्थेन वावृधुः ॥
स्वर रहित पद पाठइमाम् । सु । पूर्व्याम् । धियम् । मधोः । घृतस्य । पिप्युषीम् । कण्वाः । उक्थेन । ववृधुः ॥ ८.६.४३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 43
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(कण्वाः) विद्वांसः (मधोः, घृतस्य, पिप्युषीम्) मधुराया विषयाकारवृत्तेः वर्धयित्रीम् (पूर्व्याम्) परमात्मसम्बन्धिनीम् (इमाम्, धियम्) इमां बुद्धिम् (उक्थेन) वेदस्तुतिभिः (वावृधुः) वर्धयन्ति ॥४३॥
विषयः
बुद्धिर्वर्धनीयेति शिक्षते ।
पदार्थः
कण्वाः=ग्रन्थविरचयितारो मेधाविनो जनाः । उक्थेन=पवित्रवचनेन । इमाम्=स्वीयाम् । धियम्=बुद्धिम् । सु=सुष्ठु । वावृधुः=वर्धयन्ति=उन्नयन्ति । कीदृशीं धियम् । पूर्व्याम्=पूर्वतरैः पुरुषैः पालिताम् । पुनः । मधोर्मधुरस्य पदार्थस्य । घृतस्य च । पिप्युषीम्=पोषयित्रीम्=प्रदात्रीम् । जना बुद्ध्या सर्वं प्राप्नुवन्तीत्यनया शिक्षते ॥४३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(कण्वाः) विद्वान् पुरुष (मधोः, घृतस्य, पिप्युषीम्) मधुर विषयाकार वृत्ति की बढ़ानेवाली (पूर्व्याम्) परमात्मसम्बन्धी (इमाम्, धियम्) इस बुद्धि को (उक्थेन) वेदस्तुति द्वारा (वावृधुः) बढ़ाते हैं ॥४३॥
भावार्थ
हे परमात्मन् ! विद्वान् पुरुष अपनी मेधा को वेदवाक्यों द्वारा उन्नत करते हैं कि वह आपको प्राप्त करानेवाली हो अर्थात् हमारी बुद्धि सूक्ष्म हो कि जो सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों को अवगत करती हुई आपकी सूक्ष्मता को अनुभव करनेवाली हो ॥४३॥
विषय
बुद्धि बढ़ानी चाहिये, यह शिक्षा इससे देते हैं ।
पदार्थ
(कण्वाः) ग्रन्थप्रणेता विद्वान् जन (इमाम्+धियम्) अपनी-२ बुद्धि को (उक्थेन) पवित्र वचन के मनन से अथवा प्रणयन द्वारा (सु+वावृधुः) अच्छे प्रकार बढ़ाते हैं या बढ़ावें । कैसी बुद्धि है−(पूर्व्याम्) पूर्वजनों से पालित और (म१धोः) मधुर पदार्थ का और (घृत१स्य) घृत दूध, दही आदि का (पिप्युषीम्) पोषण करनेवाली अर्थात् जो बुद्धि पूर्वजों से चली आती है और जिसके द्वारा इस लोक में सुख पा सकते हैं, उसको पुनः-२ मनन, अध्ययन और ग्रन्थप्रणयन आदि व्यापारों से बुद्धिमान् जन बढ़ाते रहते हैं ॥४३ ॥
भावार्थ
बुद्धिवृद्धि के लिये प्राचीन और नवीन ग्रन्थों का अध्ययन, विद्वानों के साथ संवाद, अपने से मननादि व्यापार, विदेशादि गमन, प्राकृत पदार्थों का अभ्यास, इस प्रकार के अनेक उपाय कर्तव्य हैं ॥४३ ॥
टिप्पणी
१−मधु और घृत । जहाँ बुद्धि की वृद्धि होती है, वहाँ शरीरपोषण के लिये अच्छे पदार्थ मिलते हैं । विद्वान् जनों का लोग अच्छे-२ पदार्थों से सत्कार करते हैं । अतः यहाँ भगवान् उपदेश देते हैं कि बुद्धि प्राप्त करो, उससे तुम्हें सुख मिलेगा ॥४३ ॥
विषय
पिता प्रभु । प्रभु और राजा से अनेक स्तुति-प्रार्थनाएं ।
भावार्थ
( कण्वाः ) विद्वान् पुरुष ( इमां ) इस ( पूर्व्याम् ) पूर्व पुरुषों की, वा 'पूर्व' अर्थात् पूर्ण पुरुष की ( मघो: घृतस्य ) मधुर ज्ञान को बढ़ाने वाली, ( धियं ) बुद्धि और कर्म को ( उक्थेन ) वेदमन्त्र से ( वावृधुः ) बढ़ावें, उसे अधिक समृद्ध करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वत्सः काण्व ऋषिः ॥ १—४५ इन्द्रः। ४६—४८ तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिर्देवताः॥ छन्दः—१—१३, १५—१७, १९, २५—२७, २९, ३०, ३२, ३५, ३८, ४२ गायत्री। १४, १८, २३, ३३, ३४, ३६, ३७, ३९—४१, ४३, ४५, ४८ निचृद् गायत्री। २० आर्ची स्वराड् गायत्री। २४, ४७ पादनिचृद् गायत्री। २१, २२, २८, ३१, ४४, ४६ आर्षी विराड् गायत्री ॥
विषय
प्रभु-स्तवन व ज्ञान प्राप्ति
पदार्थ
[१] प्रभु कहते हैं कि (इमाम्) = इस (पूर्व्याम्) = सृष्टि के प्रारम्भ में हमारे से दी जानेवाली (मधोः) = अत्यन्त मधुर, जीवन को मधुर बनानेवाली (घृतस्य) = ज्ञानदीप्ति को (पिप्युषीम्) = आप्यायित करनेवाली (धियम्) = बुद्धि को, वेदज्ञान को (कण्वः) = मेधावी पुरुष (उक्थेन) = स्तोत्रों के द्वारा (सु वावृधुः) = सम्यक् अपने अन्दर बढ़ानेवाले होते हैं। [२] प्रभु स्तवन से हृदय की शुद्धि होती है और बुद्धि की तीव्रता होती है। इस हृदय शुद्धि व बुद्धि की तीव्रता से ज्ञान का सम्यक् वर्धन होता है। यह ज्ञान ही जीवन को मधुर बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- सृष्टि के प्रारम्भ में प्रभु से दिया जानेवाला ज्ञान जीवन के माधुर्य के लिये अत्यन्त आवश्यक है। इस ज्ञान को मेधावी पुरुष प्रभु-स्तवन से शुद्ध हृदय व तीव्र बुद्धि बनकर प्राप्त करते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Learned sages by chanting hymns and performing yajna exalt the glory and efficacy of this ancient science of yajnic action which augments the honey sweets of water, ghrta and all other delicacies for universal nourishment.
मराठी (1)
भावार्थ
हे परमात्मा! विद्वान पुरुष आपली मेधा-वेदवाक्यांद्वारा उन्नत करतात,जी तुला प्राप्त करविणारी असावी. अर्थात् आमची बुद्धी सूक्ष्म व्हावी की जी सूक्ष्माहून सूक्ष्म विषयांना अवगत करून तुझ्या सूक्ष्मतेचा अनुभव करविणारी असावी. ॥४३॥
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