ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 84/ मन्त्र 5
दाशे॑म॒ कस्य॒ मन॑सा य॒ज्ञस्य॑ सहसो यहो । कदु॑ वोच इ॒दं नम॑: ॥
स्वर सहित पद पाठदाशे॑म । कस्य॑ । मन॑सा । य॒ज्ञस्य॑ । स॒ह॒सः॒ । य॒हो॒ इति॑ । कत् । ऊँ॒ इति॑ । वो॒चे॒ । इ॒दम् । नमः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दाशेम कस्य मनसा यज्ञस्य सहसो यहो । कदु वोच इदं नम: ॥
स्वर रहित पद पाठदाशेम । कस्य । मनसा । यज्ञस्य । सहसः । यहो इति । कत् । ऊँ इति । वोचे । इदम् । नमः ॥ ८.८४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 84; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, to which mighty, potent, adorable power other than you, shall we offer our sincere homage, when and where present these words of prayer?
मराठी (1)
भावार्थ
ज्ञान व कर्मशक्तीचे प्रतीक अग्निदेवच विद्वान इत्यादीच्या रूपात संगती करण्यायोग्य देव आहे. ज्याची सेवा करून, सत्संग करून साधक आपल्या ज्ञानेन्द्रियांना व कर्मेन्द्रियांना बलवान बनवू शकतो. ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (सहसः) विजयी बल के (यहो) पुत्र! बल क्षीण न होने देने वाले! अग्निदेव! तुम्हारे अलावा अन्य (यज्ञस्य) सत्संग करने योग्य (कस्य) किस देव के समक्ष (मनसा) हृदय से (दाशेम) समर्पण करें? और (कद् उ) कहाँ अर्थात् किसे लक्ष्य करके (इदम्) यह (नमः) नमस्कार (वोचे) कहूँ॥५॥
भावार्थ
ज्ञान व कर्मशक्ति का प्रतीक अग्निदेव विद्वान् आदि के रूप में संगति करने योग्य है कि जिसकी सेवा कर, जिसका सत्संग कर साधक अपनी ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों को बलिप्ठ बना सकता है॥५॥
विषय
नायक की दीपक वा अग्निवत् दो प्रकार की स्थिति।
भावार्थ
हे ( सहसः यहो ) शत्रुविजयी बल सामर्थ्य से स्वयं उत्पन्न हम लोग ( कस्य ) किस ( यज्ञस्य ) पूज्य, दानी, सत्संगयोग्य के ( मनसा ) ज्ञान वा मन से युक्त होकर ( दाशेम ) दान करे, अपने को सौंपें। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उशना काव्य ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१ पादनिचृद् गायत्री। २ विराड् गायत्री। ३,६ निचृद् गायत्री। ४, ५, ७—९ गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
यज्ञ+नमन
पदार्थ
[१] हे (सहसो यहो) = बल के पुत्र शक्ति के पुञ्ज प्रभो ! हम (कस्य यज्ञस्य) = आनन्दप्रद यज्ञ के मनसा मन से, अर्थात् यज्ञ की प्रवृत्तिवाले मन से दाशमे आपके प्रति अपने को देनेवाले बनें। यज्ञों के द्वारा आपका उपासन करें। 'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः' । [२] हे प्रभो ! हम (उ) = निश्चय से (कत्) = [कं तनोति] आनन्द का विस्तार करनेवाले (इदं नमः) = इस नमस्कार वचन को वोचे बोलें।
भावार्थ
भावार्थ- हम यज्ञों व नमन के द्वारा प्रभु का उपासन करें।
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