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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 97/ मन्त्र 12
    ऋषिः - रेभः काश्यपः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    ने॒मिं न॑मन्ति॒ चक्ष॑सा मे॒षं विप्रा॑ अभि॒स्वरा॑ । सु॒दी॒तयो॑ वो अ॒द्रुहोऽपि॒ कर्णे॑ तर॒स्विन॒: समृक्व॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ने॒मिम् । न॒म॒न्ति॒ । चक्ष॑सा । मे॒षम् । विप्राः॑ । अ॒भि॒ऽस्वरा॑ । सु॒ऽदी॒तयः॑ । वः॒ । अ॒द्रुहः॑ । अपि॑ । कर्णे॑ । त॒र॒स्विनः॑ । सम् । ऋक्व॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नेमिं नमन्ति चक्षसा मेषं विप्रा अभिस्वरा । सुदीतयो वो अद्रुहोऽपि कर्णे तरस्विन: समृक्वभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नेमिम् । नमन्ति । चक्षसा । मेषम् । विप्राः । अभिऽस्वरा । सुऽदीतयः । वः । अद्रुहः । अपि । कर्णे । तरस्विनः । सम् । ऋक्वऽभिः ॥ ८.९७.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 97; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 38; मन्त्र » 2
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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Wise and vibrant sages greet the heroic ruler, Indra, giver of showers of peace and joy, and with vision of the future bow to him as the central power and force of the nation’s wheel. O brilliant and inspired people free from jealousy and calumny, smart and bold in action, do him honour with laudable performance.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राष्ट्राची परिधि बनलेला राजा सगळीकडून राष्ट्राचे रक्षण करतो. यामुळे बुद्धिमान प्रजा त्याचा आदर करते व इतर प्रजाजनांनाही आग्रह करते, की त्यानी सत्कर्म करूनच त्यांच्याविषयी आदर प्रकट करावा. ॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विप्राः) बुद्धिमान् प्रजागण (नेमिम्) परिधि के तुल्य प्रजा के रक्षक (मेषम्) सुखवर्षक शासक को (अभिस्वराः) उसकी उपस्थिति में पुकारते हुए (चक्षसा नमन्ति) आदर की दृष्टि से देखते हैं। (सुदीतयः) शुभ विद्या प्रकाश से दीप्त, (अद्रुहः) द्रोहरहित (वः अपि) शेष आप भी जो (कर्णे) कर्तव्य कर्म में (तरस्विनः) बलशाली तथा आलस्यरहित हैं, (ऋक्वभिः) प्रशंसनीय सत्कर्मों से (सम्) उसका समादर करते हैं॥१२॥

    भावार्थ

    राष्ट्र की परिधि बना शासक उसकी सभी ओर से रक्षा करता है। इसीलिए बुद्धिमान् प्रजाजन उसकी उपस्थिति में ही उसका आदर करते हैं तथा दूसरे प्रजाजनों से भी आग्रह करते हैं कि वे सत्कर्म कर उसके प्रति आदर भावना प्रदर्शित करें॥१२॥

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य के साथ साथ परमेश्वर के गुणों का वर्णन।

    भावार्थ

    ( विप्राः ) विद्वान् पुरुष ( नेमिम् ) शत्रुओं के नमाने वाले बलवान् ( मेषं ) समस्त सुखों के दाता, राजा को ( चक्षसा ) दर्शन कर ( अभि-स्वरा ) उत्तम स्वर से ( नमन्ति ) उस का आदर करते हैं। हे विद्वान् लोगो ! आप लोग भी ( सु-दीतयः ) उत्तम दीप्ति युक्त ( अद्रुहः ) द्रोह, परस्पर द्वेष, कलह से रहित और ( कर्णे तरस्विनः ) करने योग्य कर्त्तव्य कर्म में शीघ्रता करने वाले, अनालसी होकर (ऋक्वभिः) उत्तम ऋचाओं से उस स्वामी की (सं) मिलकर स्तुति करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    रेभः काश्यप ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ११ विराड् बृहती। २, ६, ९, १२ निचृद् बृहती। ४, ५, बृहती। ३ भुरिगनुष्टुप्। ७ अनुष्टुप्। १० भुरिग्जगती। १३ अतिजगती। १५ ककुम्मती जगती। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    नेमिम्

    पदार्थ

    [१] स्तोता लोग (नेमिम्) = इस ब्रह्माण्ड की परिधिरूप उस प्रभु को, सर्वत्र व्याप्त उस प्रभु को नमस्कार करते हैं। (विप्राः) = ज्ञानी लोग (चक्षसा) = प्रभु की महिमा को सर्वत्र देखने के द्वारा तथा (अभिस्वरा) = स्तोत्र के द्वारा (मेषम्) = [मेषति = sprinkle] = सर्वसुखों के सेचक प्रभु को नमस्कार करते हैं । [२] (सुदीतयः) = उत्तम ज्ञान की दीप्तिवाले, (अद्रुहः) = द्रोह की भावना से रहित (वः) = तुम सब (अपि) = भी (कर्णे) = प्रभु महिमा के श्रवण में (तरस्विनः) = वेगवाले होते हुए (ऋक्वभिः) = ऋचाओं के द्वारा अर्चन - साधन मन्त्रों के द्वारा (सम्) = उस प्रभु के साथ संगत होवो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ज्ञानी लोग सर्वत्र प्रभु की महिमा का दर्शन करते हुए उस व्यापक प्रभु को स्तोत्रों द्वारा प्रणाम करते हैं। हम भी ज्ञानदीप्ति व अद्रोह को धारण करते हुए इन स्तोत्रों का श्रवण करें और अर्चन - साधन मन्त्रों के द्वारा प्रभु का स्तवन करें।

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