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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 52/ मन्त्र 4
    ऋषिः - उचथ्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    नि शुष्म॑मिन्दवेषां॒ पुरु॑हूत॒ जना॑नाम् । यो अ॒स्माँ आ॒दिदे॑शति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि । शुष्म॑म् । इ॒न्दो॒ । एषा॑म् । पुरु॑ऽहूत । जना॑नाम् । यः । अ॒स्मान् । आ॒ऽदिदे॑शति ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नि शुष्ममिन्दवेषां पुरुहूत जनानाम् । यो अस्माँ आदिदेशति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि । शुष्मम् । इन्दो । एषाम् । पुरुऽहूत । जनानाम् । यः । अस्मान् । आऽदिदेशति ॥ ९.५२.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 52; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे सर्वनियन्तः परमेश्वर ! (पुरुहूत) हे बुधगुणस्तुत ! (एषाम् जनानाम् बलम् नि) विदुषामेतेषामोजो वर्धय। (यः अस्मान् आदिदेशति) यो भवान् अस्माकमनुशास्तास्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (पुरुहूत) हे अखिल विद्वानों से स्तुति किये गये ! (एषाम् जनानाम् बलम् नि) इन विद्वानों के बलों को बढ़ाइये (यः अस्मान् आदिदेशति) जो कि आप हम लोगों का अनुशासन करते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा ने इस बात का उपदेश दिया है कि जो पुरुष विद्या तथा बल को उपलब्ध करके सत्कर्म्मी तथा विनीत बनते हैं, उन्ही से संसार शिक्षा का लाभ करता है ॥४॥

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    विषय

    काम आदि की बल का अभिभव

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = सोम ! (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जानेवाला तू जिस सोम की सभी आराधना करते हैं ऐसा तू (एषां जनानाम्) = इन विकसित शक्तिवाले, अति प्रबल शत्रुओं के (शुष्मम्) = शोषक बल को (नि) = [न्यक् कुरु] पराभूत कर । इन हमारे शत्रुभूत काम-क्रोध-लोभ के बल को पराजित करनेवाला है। [२] इन शत्रुओं के उस बल को पराभूत कर (यः) = जो कि (अस्मान्) = हमें (आदिदेशति) =[challange] युद्ध के लिये ललकारता-सा है। काम-क्रोध-लोभ का बल हमें युद्ध के लिये ललकारता हुआ सदा पराजित-सा कर देता है। शरीर में हम सोम का रक्षण कर पाते हैं तो इन सब शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ होते हैं । प्रभु की उपासना इस सोम के द्वारा ही हमें सबल बनाती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हम काम-क्रोध-लोभ के वेग को पराभूत करनेवाले होते हैं ।

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    विषय

    बहुतसों के चुनने पर प्रधान पद की प्राप्ति।

    भावार्थ

    (यः) जो (अस्मान् आदिदेशति) हम पर अपना अधिकार चलाता है, हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! वह तू हे (पुरुहूत) बहुतों से स्वीकृत ! तू (एषां जनानाम् शुष्मम्) इन मनुष्यों के बल को (नि ईखय) अपने अधीन रख।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उचथ्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः– १ भुरिग्गायत्री। २ गायत्री। ३, ५ निचृद गायत्री। ४ विराड् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indu, lord of peace and plenty who rule over us, invoked, adored and worshipped pray increase the power and prosperity of those people who follow the rule of your law of discipline and generosity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराने या गोष्टीचा उपदेश केलेला आहे की जे पुरुष विद्या व बल उपलब्ध करून सत्कर्मी व विनीत बनतात त्यांच्याकडूनच जग उपदेशाचा लाभ घेते. ।।४।।

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