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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 59/ मन्त्र 2
ऋषिः - अवत्सारः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - स्वराडार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
पव॑स्वा॒द्भ्यो अदा॑भ्य॒: पव॒स्वौष॑धीभ्यः । पव॑स्व धि॒षणा॑भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑स्व । अ॒त्ऽभ्यः । अदा॑भ्यः । पव॑स्व । ओष॑धीभ्यः । पव॑स्व । धि॒षणा॑भ्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्वाद्भ्यो अदाभ्य: पवस्वौषधीभ्यः । पवस्व धिषणाभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठपवस्व । अत्ऽभ्यः । अदाभ्यः । पवस्व । ओषधीभ्यः । पवस्व । धिषणाभ्यः ॥ ९.५९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 59; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! त्वम् (अदाभ्यः) अदम्भनीयोऽसि (अद्भ्यः) जलैः (ओषधिभ्यः) औषधैः (धिषणाभ्यः) तथा बुद्धिभिः (पवस्व) मां सुरक्षय ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! आप (अदाभ्यः) अदम्भनीय हैं (अद्भ्यः) जलों से (औषधिभ्यः) औषधियों से (धिषणाभ्यः) तथा बुद्धियों से (पवस्व) हमको सुरक्षित कीजिये ॥२॥
भावार्थ
तात्पर्य यह है कि परमात्मा सब शक्तियों के ऊपर विराजमान है। उसका शासन करनेवाली कोई अन्य शक्ति नहीं ॥२॥
विषय
धिषणा की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (अदाभ्यः) = हिंसित होनेवाला नहीं । (अद्भ्यः) = जलों से तू हमें पवस्व प्राप्त हो। इसी प्रकार (ओषधीभ्यः पवस्व) = ओषधियों से तू हमें प्राप्त हो। शरीर में सोम के रक्षण के लिये आवश्यक है कि हम ओषधियों व जलों का ही प्रयोग करें। ये ही 'सोम्य' है, सोमरक्षण के लिये अनुकूल है। मांस आदि मानव के भोजन नहीं हैं। ये हमें राक्षसी वृत्ति का बनाते हैं। शरीर में सुरक्षित सोम रोगकृमियों को विनष्ट करके हमें नीरोग बनाता है। [२] हे सोम ! तू (धिषणाभ्यः) = प्रशस्त बुद्धियों के लिये (पवस्व) = हमें प्राप्त हो । सुरक्षित सोम बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के लिये हम जल व ओषधियों का ही प्रयोग करें। मांस भोजन से बचें। सुरक्षित सोम हमारी बुद्धि को सूक्ष्म बनायेगा ।
विषय
प्रजा के चित्त को स्वच्छ रखे, सब बुरे कार्यों से प्रजा को बचावे, सब को अपने वश करे।
भावार्थ
हे ऐश्वर्यवन् ! शासनकर्त्ता ! तू (अदाभ्यः) किसी से पीड़ित न होकर (अद्भयः) जलों से, (ओषधीभ्यः) औषधियों से और (धिषणाभ्यः) बुद्धियों से हमें (पवस्व) पवित्र कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सार ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १ गायत्री। २ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३, ४ निचृद गायत्री॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O vitality of Soma, divine energy, flow on and energise us with fluent systemic energy of body and mind, redoubtable and undaunted power, flow in and on with herbs and sanatives, energise, purify and sanctify with self-controlled will and invincible will divine.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सर्व शक्तींमध्ये विराजमान आहे. त्याच्यावर शासन करणारी दुसरी कोणती शक्ती नाही. ॥२॥
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