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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 59/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं सो॑म॒ पव॑मानो॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता त॑र । क॒विः सी॑द॒ नि ब॒र्हिषि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । सो॒म॒ । पव॑मानः । विश्वा॑नि । दुः॒ऽइ॒ता । त॒र॒ । क॒विः । सी॒द॒ । नि । ब॒र्हिषि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं सोम पवमानो विश्वानि दुरिता तर । कविः सीद नि बर्हिषि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सोम । पवमानः । विश्वानि । दुःऽइता । तर । कविः । सीद । नि । बर्हिषि ॥ ९.५९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 59; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे भगवन् (त्वम्) भवान् (विश्वानि दुरिता तर) समस्तपापान् दूरीकरोतु (कविः) सम्पूर्णकर्माभिज्ञो भवान् (बर्हिषि) यज्ञस्थलेषु (निषीद) विराजताम् ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे भगवन् ! (त्वम्) आप (विश्वानि दुरिता तर) सम्पूर्ण पापों को दूर कीजिये (कविः) सर्वकर्माभिज्ञ आप (बर्हिषि) यज्ञस्थलों में (निषीद) विराजमान होवें ॥३॥

    भावार्थ

    मलिन वासनाओं के क्षय के लिये परमात्मा से सदैव प्रार्थना करनी चाहिये ॥३॥

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    विषय

    दुरित-तरण

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (त्वम्) = तू (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाला है । (विश्वानि दुरिता) = सब बुराइयों को तू (तर) = तैर जा । सोमरक्षण से सब शरीरस्थ न्यूनतायें दूर हो जाती हैं । [२] (कविः) = क्रान्तकर्मा व क्रान्तप्रज्ञ यह सोम (बर्हिषि) = वासनाशून्य हृदय में (न सीद) = निषण्ण हो । हृदय के वासनाशून्य होने पर ही सोम शरीर में सुरक्षित रहता है । रक्षित होने पर यह [क] हमें पवित्र बनाता है, [ख] सब दुरितों को दूर करता है, [ग] हमारी बुद्धियों को सूक्ष्म बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम 'पवित्रता, भद्रता व बुद्धि' को प्राप्त कराता है।

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    विषय

    प्रजा के चित्त को स्वच्छ रखे, सब बुरे कार्यों से प्रजा को बचावे, सब को अपने वश करे।

    भावार्थ

    हे (सोम) शास्तः ! (त्वं पवमानः) स्वयं पवित्र वा दानशील होकर (विश्वानि दुरिता) समस्त बुरे कार्यों को (तर) पार कर। तू (कविः) कान्तदर्शी, मेधावी, बुद्धिमान् होकर (बर्हिषि) प्रजा पर उत्तमासन पर (नि सीद) विराज।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सार ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १ गायत्री। २ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३, ४ निचृद गायत्री॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, pure and purifying energy and divine inspiration, cross over hurdles, eliminate evil tendencies and, O omniscient vision and creativity, be seated on the holy vedi and in the mind.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मलिन वासनांच्या क्षयासाठी परमेश्वराला सदैव प्रार्थना केली पाहिजे. ॥३॥

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