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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 16
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑मानः सु॒तो नृभि॒: सोमो॒ वाज॑मिवासरत् । च॒मूषु॒ शक्म॑ना॒सद॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मानः । सु॒तह् । नृऽभिः॑ । सोमः॑ । वाज॑म्ऽइव । अ॒स॒र्चत् । च॒मूषु॑ । शक्म॑ना । आ॒ऽसद॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमानः सुतो नृभि: सोमो वाजमिवासरत् । चमूषु शक्मनासदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमानः । सुतह् । नृऽभिः । सोमः । वाजम्ऽइव । असर्चत् । चमूषु । शक्मना । आऽसदम् ॥ ९.६२.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 16
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (नृभिः सुतः) विद्वद्भिः प्रजाभिरभिषिक्तः (सोमः) सौम्यगुणपूर्णः सेनापतिः (पवमानः) समस्तजनान् पवित्रयन् (चमूषु) सेनासु (शक्मना) स्वपराक्रमेण (आसदम्) स्वशत्रोरभिमुखं गन्तुं (वाजम् इव) विद्युदादिशक्तिरिव (असरत्) गच्छति ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (नृभिः सुतः) विदुषी प्रजाओं द्वारा अभिषिक्त (सोमः) सौम्य सेनाधीश (पवमानः) सबको पवित्र करता हुआ (चमूषु) सेनाओं में (शक्मना) अपने पराक्रम से (आसदम्) अपने शत्रु को अभिगमन करने के लिये (वाजम् इव) विद्युदादि अद्भुत शक्ति के समान (असरत्) गमन करता है ॥१६॥

    भावार्थ

    सोम यहाँ सेनाधीश का नाम है, क्योंकि सेनाधीश को भी धीरता के लिये सौम्य स्वभाव की आवश्यकता है, इसलिये उसे सोमरूप से वर्णन किया है ॥१६॥

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    विषय

    चमूषु शक्मनासदम्

    पदार्थ

    [१] (पवमानः सोमः) = जीवनों को पवित्र करनेवाला यह सोम (नृभिः) = उन्नतिपथ पर आगे बढ़नेवालों से (सुतः) = पैदा किया हुआ (वाजं इव) = मानो संग्राम में ही (असरत्) = गतिवाला होता है । शरीर में यह रोगकृमियों के संहार के लिये प्रवृत्त होता है, तो मन में यह वासनाओं के विनष्ट करनेवाला होता है । [२] यह सोम (चमूषु) = इन शरीर रूप पात्रों में (शक्मना) = शक्ति के साथ (आसदम्) = आसीन होने के लिये होता है। सुरक्षित हुए हुए सोम से ही अंग-प्रत्यंग में शक्ति का संचार होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह सोम ही शरीर में रोगकृमियों व वासनाओं को संग्राम में पराजित करता है। सोमरक्षणवाला पुरुष रोगों व वासनाओं से आक्रान्त नहीं होता । यही शरीर रूप पात्र में शक्ति को भरनेवाला होता है।

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    विषय

    राजा के प्रयाण का प्रकार।

    भावार्थ

    (नृभिः सुतः) नायक पुरुषों द्वारा अभिषिक्त (पवमानः) को स्वच्छ करता हुआ (सोमः) तेजस्वी अधिपति, (चमूषु) सेनाओं पर (शक्मना) अपनी शक्ति से (आ-सदम्) स्थिर रहने के लिये (वाजं इव) स्वयं बल की मूर्ति के समान (असरत्) विचरे अथवा (वाजमिव असरत्) जब निकले तब ऐसे द्वार से जैसे मानो युद्ध को जा रहा हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, the spirit and person of peace and joy, pure and purifying, selected and anointed by leading lights of the people, should move and act like power and competence incarnate in places and positions with his powers and obligations for the purpose specified.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सोम येथे सेनाधाशाचे नाव आहे. कारण सेनाधीशालाही धैर्यासाठी सौम्य स्वभावाची आवश्यकता असते. त्यासाठी त्याचे सोमरूपाने वर्णन केलेले आहे. ॥१६॥

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