ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 30
पव॑मान ऋ॒तः क॒विः सोम॑: प॒वित्र॒मास॑दत् । दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानः । ऋ॒तः । क॒विः । सोमः॑ । प॒वित्र॑म् । आ । अ॒स॒द॒त् । दध॑त् । स्तो॒त्रे । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान ऋतः कविः सोम: पवित्रमासदत् । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानः । ऋतः । कविः । सोमः । पवित्रम् । आ । असदत् । दधत् । स्तोत्रे । सुऽवीर्यम् ॥ ९.६२.३०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 30
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे जगद्रक्षक ! भवान् (ऋतः) सत्यशीलः (कविः) पण्डितः (सोमः) उदारचित्तोऽस्ति। अथ च (स्तोत्रे सुवीर्यं दधत्) स्वीयस्तोतॄन् अनुयायिवर्गांश्च पराक्रमशीलान् कुर्वन् (पवित्रे आसदत्) सत्कर्मी करोति सुरक्षति च ॥३०॥ इति द्विषष्टितमं सूक्तमेकोनत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः।
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे सबके रक्षक ! आप (ऋतः) सत्यता को धारण करनेवाले (कविः) विद्वान् (सोमः) उदार हैं और (स्तोत्रे सुवीर्यम् दधत्) अपने स्तोताओं तथा अनुयायियों के लिये सुन्दर पराक्रम को धारण करते हुए (पवित्रम् आसदत्) सत्कर्मी तथा सुरक्षित करते हैं ॥३०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में राजधर्म की रक्षार्थ परिश्रमी बनने के लिये ईश्वर से प्रार्थना की गई है ॥३०॥ यह ६२ वाँ सूक्त और २९ वाँ वर्ग समाप्त हुआ।
विषय
'पवमानः ऋतः कविः '
पदार्थ
[१] (सोमः) = सोम (पवित्रं आसदत्) = पवित्र हृदय पुरुष में आसीन होता है। हृदय की पवित्रता के होने पर यह शरीर में सुरक्षित होता है। शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ यह (पवमानः) = हमारे जीवन को पवित्र करता है । (ऋतः) = यह हमारे जीवन को सत्यमय बनाता है। (कविः) = यह हमें क्रान्तप्रज्ञ बनाता है। [२] शरीर में सुरक्षित होने पर यह सोम (स्तोत्रे) = स्तोता के लिये (सुवीर्यं दधत्) = उत्कृष्ट वीर्य को धारण करता है। इस वीर्य के द्वारा ही यह सोम का स्तवन करनेवाला पुरुष शक्तिशाली बनता हुआ रोगों को भी जीतनेवाला बनता है और वासनाओं से भी ऊपर उठ पाता है।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम हमें 'पवित्र, सत्यमय व क्रान्तप्रज्ञ' बनाता है। हमारे लिये उत्कृष्ट शक्ति को धारण करता है । इस प्रकार सोमरक्षण से यह व्यक्ति 'निध्रुवि' = नितरां ध्रुव स्थितप्रज्ञ बनता है, 'काश्यप' - ज्ञानी होता है। इस 'निध्रुवि काश्यप' का ही अगला सूक्त है-
विषय
विद्वान् कैसे वीर्यवान् ऐश्वर्यवान् को इन्द्रपद के लिये अभिषेक करें। राज्यासन पर अभिषिक्त पुरुष प्रजाजन के लाभार्थ ही बल धारण करे।
भावार्थ
(पवमानः) अभिषिक्त होता हुआ (ऋतः) तेजस्वी (कविः) ज्ञानवान्, सर्वोत्तम (सोमः) शासक (स्तोत्रे) स्तुतिकर्त्ता वा उपदेष्टा विद्वान् प्रजाजन के लिये, उनके लाभार्थ, अपने (सु-वीर्यम्) उत्तम बल या अधिकार को (दधत्) धारण करता हुआ (पवित्रम् आ असदत्) राज्य के पवित्र पद पर विराजे। इत्येकोनत्रिंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Soma, pure, purifying and energising, eternal Truth, omniscient creator, peaceful and blissful, come and bless the pure heart and soul of the devotee vesting the song and spirit with strength and holy passion.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात ईश्वराला ही प्रार्थना केलेली आहे की राजधर्माचे रक्षण होण्यासाठी परिश्रमी बनावे ॥३०॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal