अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा, क्षुद्रः
देवता - स्कन्धः, आत्मा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
20
क्वार्धमा॒साः क्व यन्ति॒ मासाः॑ संवत्स॒रेण॑ स॒ह सं॑विदा॒नाः। यत्र॒ यन्त्यृ॒तवो॒ यत्रा॑र्त॒वाः स्क॒म्भं तं ब्रू॑हि कत॒मः स्वि॑दे॒व सः ॥
स्वर सहित पद पाठक्व᳡ । अ॒र्ध॒ऽमा॒सा: । क्व᳡ । य॒न्ति॒ । मासा॑: । स॒म्ऽव॒त्स॒रेण॑ । स॒ह । स॒म्ऽवि॒दा॒ना: । यत्र॑ । यन्ति॑ । ऋ॒तव॑: । यत्र॑ । आ॒र्त॒वा: । स्क॒म्भम् । तम् । ब्रू॒हि॒ । क॒त॒म: । स्वि॒त् । ए॒व । स: ॥७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
क्वार्धमासाः क्व यन्ति मासाः संवत्सरेण सह संविदानाः। यत्र यन्त्यृतवो यत्रार्तवाः स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥
स्वर रहित पद पाठक्व । अर्धऽमासा: । क्व । यन्ति । मासा: । सम्ऽवत्सरेण । सह । सम्ऽविदाना: । यत्र । यन्ति । ऋतव: । यत्र । आर्तवा: । स्कम्भम् । तम् । ब्रूहि । कतम: । स्वित् । एव । स: ॥७.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
पदार्थ
(क्व) कहाँ (अर्धमासाः) आधे महीने [पखवाड़े] और (क्व) कहाँ (मासाः) महीने (संवत्सरेण सह) वर्ष के साथ (संविदानाः) मिलते हुए (यन्ति) जाते हैं ? (यत्र) जहाँ (ऋतवः) ऋतुएँ और (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयव (यन्ति) जाते हैं, (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥५॥
भावार्थ
परमेश्वर की ही आज्ञा में यह काल अपने अवयवों सहित वर्तमान है ॥५॥
टिप्पणी
५−(क्व) कस्मिन् देवे (अर्धमासाः) पक्षाः (यन्ति) गच्छन्ति (मासाः) (संवत्सरेण) वर्षेण (सह) (संविदानाः) अ० २।२८।२। संगच्छमानाः (ऋतवः) वसन्तादयः कालाः (आर्तवाः) ऋतूनामवयवाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
'अर्धमास, मास, संवत्सर, ऋतुएँ व आर्तव पुष्प' आदि कहाँ ?
पदार्थ
१. ये (अर्धमासा:) = मास के आधे भाग, अर्थात् पक्ष (क्व यन्ति) = किसमें गतिवाले हो रहे है? संवत्सरेण सह (संविदाना:) = वर्ष के साथ संज्ञान-[मेल]-वाले होते हुए (मासा:) = ये मास [महिने] (क्व यन्ति) = किस आधार में गतिवाले हो रहे हैं? २. (यत्र) = जिस आधार में (ऋतव:) = वसन्तादि ऋतुएँ (यन्ति) = गतिवाली हैं, और (यत्र) = जिस आधार में (आर्तवा:) = सब ऋतु-सम्बन्धी पुष्प, फल, मूल गतिवाले हैं, (तम्) = उस आधार को (स्कम्भं ब्रूहि) = 'स्कम्भ'-सर्वाधार कहो। (स:) = वह (स्वित्) = निश्चय से (कतमः एव) = अत्यन्त आनन्दमय ही है।
भावार्थ
'अर्धमास, मास, संवत्सर, ऋतुएँ व आर्तव पुष्प-फल आदि' ये सब जिस आधार में गतिवाले हो रहे हैं, वे सर्बाधार प्रभु ही 'स्कम्भ' नामवाले हैं।
भाषार्थ
(संवत्सरेण सह) संवत्सर के साथ (सं विदानाः) ऐकमत्य को प्राप्त हुए, (अर्धमासाः) आधेमास (क्व) कहां, (मासाः) और मास (क्व) कहां (यन्ति) जा रहे हैं। (यत्र) जहां (ऋतवः) ऋतुएं, (यत्र) जहां (आर्तवाः) ऋतुसमूह (यन्ति) जा रहे हैं (स्कम्भम् तम् ब्रूहि कतमः स्विद् एव सः) देखो (मत्र ४)।
टिप्पणी
[आर्तवाः = ऋतु समूह अर्थात् उत्तरायण तथा दक्षिणायन के दो "मासषट्क" । मासों का वर्णन मन्त्र के पूर्वार्ध में हो चुका है]।
मन्त्रार्थ
(क्व-अर्धमासा:-क मासाः संवत्सरेण सह संविदाना: यन्ति) किसी देव में अर्धमास-पक्ष-शुक्ल-कृष्ण पक्ष तथा किसी देव में मास-चैत्र-वैशाख आदि मास संवत्सर के साथसमभाव को प्राप्त हुये पहुंचते हैं (यत्र-ऋतवः -यत्र आर्त्तवा:यन्ति) जिस देव में वसन्त आदि ऋतुयें जिलही देव में ऋतु के भाग रूप धर्म-चिन्ह लक्षण जाते हैं (स्कम्भं तं-ब्रूहि-कतमः स्थित्-एव सः) बहुतों में कौन सा या अत्यन्त सुखस्वरूप वह है यह बता-विचार ॥५॥
टिप्पणी
इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥
विशेष
ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )
विषय
ज्येष्ठ ब्रह्म या स्कम्भ का स्वरूप वर्णन।
भावार्थ
(अर्ध-मासाः) आधे मास, पक्ष और (मासाः) मास (सं-वत्सरेण) संवत्सर के (सह) साथ (संविदानाः) सहमति या संगलाभ करके (क्व यन्ति) कहां जा रहे हैं ? ये (ऋतवः) ऋतु और (आर्त्तवाः) ऋतु के भाग (यत्र यन्ति) जहां जाते हैं, हे विद्वन् ! (तं) उस सर्वाश्रय (स्कम्भम्) स्कम्भ का (ब्रूहि) उपदेश कर (सः कतमः-स्वित् एव) वह कौन सा पदार्थ है ?
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा क्षुद्र ऋषिः। मन्त्रोक्तः स्कम्भ अध्यात्मं वा देवता। स्कम्भ सूक्तम्॥ १ विराट् जगती, २, ८ भुरिजौ, ७, १३ परोष्णिक्, ११, १५, २०, २२, ३७, ३९ उपरिष्टात् ज्योतिर्जगत्यः, १०, १४, १६, १८ उपरिष्टानुबृहत्यः, १७ त्र्यवसानाषटपदा जगती, २१ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, २३, ३०, ३७, ४० अनुष्टुभः, ३१ मध्येज्योतिर्जगती, ३२, ३४, ३६ उपरिष्टाद् विराड् बृहत्यः, ३३ परा विराड् अनुष्टुप्, ३५ चतुष्पदा जगती, ३८, ३-६, ९, १२, १९, ४०, ४२-४३ त्रिष्टुभः, ४१ आर्षी त्रिपाद् गायत्री, ४४ द्विपदा वा पञ्चपदां निवृत् पदपंक्तिः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Skambha Sukta
Meaning
Whither do fortnights move, whither the months, integrated with the year? Whither do the seasons proceed, with all that happens therein? Where and whither? Speak to me of that Skambha, that centre-hold controller, which one is that? Say it is Skambha, only that of all, ultimate centre and the circumference.
Translation
Whither go the half-months, whereto the months and also the year; whither go the seasons and the supplementary seasons; tell me of that Skambha; which of so many indeed, is He ?
Translation
Whither-ward go the half-months and months standing inconformity with the full Year? Who out of many powers, tell me O learned! is that, Supporting Divine Power in whom go the seasons and the parts of the seasons?
Translation
Whitherward go the half-months and the months, accordant with the full year? Who out of many tell me, O learned person, is the All-pervading God, to Whom go seasons and parts of seasons?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(क्व) कस्मिन् देवे (अर्धमासाः) पक्षाः (यन्ति) गच्छन्ति (मासाः) (संवत्सरेण) वर्षेण (सह) (संविदानाः) अ० २।२८।२। संगच्छमानाः (ऋतवः) वसन्तादयः कालाः (आर्तवाः) ऋतूनामवयवाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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