अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 25
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
15
श॑र॒व्या॒ मुखे॑ऽपिन॒ह्यमा॑न॒ ऋति॑र्ह॒न्यमा॑ना ॥
स्वर सहित पद पाठश॒र॒व्या᳡ । मुखे॑ । अ॒पि॒ऽन॒ह्यमा॑ने । ऋति॑: । ह॒न्यमा॑ना: ॥७.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
शरव्या मुखेऽपिनह्यमान ऋतिर्हन्यमाना ॥
स्वर रहित पद पाठशरव्या । मुखे । अपिऽनह्यमाने । ऋति: । हन्यमाना: ॥७.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(मुखे अपिनह्यमाने) मुख बाँधे जाने पर वह [वेदवाणी] [वेदनिरोधक के लिये] (शरव्या) बाणविद्या में चतुर सेना [के समान] और (हन्यमाना) ताड़ी जाती हुई वह (ऋतिः) आपत्तिरूप होती है ॥२५॥
भावार्थ
विद्वानों को वेदवाणी के प्रचार से रोकनेवाले पुरुष अज्ञान के कारण विपत्तियाँ झेलते हैं ॥२५॥
टिप्पणी
२५−(शरव्या) अ० ३।१९।८। शरु−यत्। शरौ वाणविद्यायां कुशला सेना (मुखे) (अपिनह्यमाने) अपवध्यमाने (ऋतिः) ऋ हिंसायाम्−क्तिन्। निर्ऋतिः। आपत्तिः (हन्यमाना) ताड्यमाना ॥
विषय
अन्धकार व विनाश
पदार्थ
१. यदि एक ब्रह्मज्य राजन्य एक वेदज्ञ ब्राह्मण को नौकर की तरह अपने समीप उपस्थित होने के लिए आदिष्ट करता है, तो (उपतिष्ठन्ती) = उसके समीप उपस्थित होती हुई यह ब्रह्मगवी (सेदिः) = उस अत्यचारी के विनाश का कारण होती है। (परामृष्टा) = और यदि उस अत्याचारी से यह किसी प्रकार परामृष्ट होती है-कठोर स्पर्श को प्राप्त करती है, तो (मिथोयोध:) = यह राष्ट्र की इन प्रकृतियों को परस्पर लड़ानेवाली हो जाती है, अर्थात् ये शासक आपस में ही लड़ मरते हैं। इस ब्रह्मज्न द्वारा (मुखे अपिनाह्यमाने) = मुख के बाँधे जाने पर, अर्थात् प्रचार पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने पर (शरव्या) = यह लक्ष्य पर आघात करनेवाले बाणसमूह के समान हो जाती है। (हन्यमाना) = मारी जाती हुई यह ब्रह्मगवी (ऋति:) = विनाश ही हो जाती है। (निपतन्ती) = नीचे गिरती हुई यह (अघविषा) = भयंकर विष हो जाती है और (निपतिता तम:) = गिरी हुई चारों ओर अन्धकार ही-अन्धकार फैला देती है। संक्षेप में, इसप्रकार पीड़ित हुई-हुई यह (ब्रह्मगवी) = वेदवाणी (ब्रह्मज्यस्य) = ब्रह्म की हानि करनेवाले इस ब्रह्मघाती के (अनुगच्छन्ती) = पीछे चलती हुई (प्राणान् उपदासयति) = उसके प्राणों को विनष्ट कर डालती है।
भावार्थ
ब्रह्मज्य शासक ज्ञानप्रसार का विरोध करता हुआ राष्ट्रको अन्धकार के गर्त में डाल देता है और स्वयं भी उस अन्धकार में ही कहीं विलीन हो जाता है।
भाषार्थ
(मुखे, अपिनह्यमाने) मुख के बान्धे जाते हुए (शरव्या) गौ शरों के समान होती है, (हन्यमाना) वध की जाती हुई (ऋतिः) कष्टरूपा है।
टिप्पणी
[गौ चाहे रुग्ण भी हो तब भी इसे कष्ट न पहुंचाना चाहिये, न इस का वध करना चाहिये- यह मन्त्र में प्रतिपादित किया है। वध के लिये गौ के मुख को बान्ध रखना, ताकि वह आक्रन्दन न कर सके, और मुख बान्धने के पश्चात् हनन करना, इन का निषेध किया है। इन दो कृत्यों के करने वाले को भी, गोरक्षक लोग, शरों द्वारा विनष्ट करते, और विविध प्रकार के कष्ट देते हैं]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
ब्रह्मघ्न द्वारा (मुखे) मुख के (अपिनह्यमाने) बांधे जाने पर (शरव्या) तीक्ष्ण बाण के समान प्रहार करने हारी होती है। (हन्यमाना) जब वह इसे मारता है तो वह (ऋतिः) भारी पीड़ा होकर प्रकट होती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
When her mouth is muzzled, she is like an arrow, and when she is tormented or slain, she becomes a calamity.
Translation
A shaft when her mouth is being fastened up, mishap when being slain.
Translation
She fastened by her mouth becomes like an arrow and when she is beaten she becomes destructive one.
Translation
It wounds like an arrow, him who obstructs its free spread. It brings calamity on him who reviles and abuses it.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२५−(शरव्या) अ० ३।१९।८। शरु−यत्। शरौ वाणविद्यायां कुशला सेना (मुखे) (अपिनह्यमाने) अपवध्यमाने (ऋतिः) ऋ हिंसायाम्−क्तिन्। निर्ऋतिः। आपत्तिः (हन्यमाना) ताड्यमाना ॥
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