अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 12
सूक्त - प्रजापति
देवता - आर्ची अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
शि॒वेन॑ मा॒चक्षु॑षा पश्यतापः शि॒वया॑ त॒न्वोप॑ स्पृशत॒ त्वचं॑ मे ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वेन॑ । मा॒ । चक्षु॑षा । प॒श्य॒त॒ । आ॒प॒: । शि॒वया॑ । त॒न्वा᳡ । उप॑ । स्पृ॒श॒त॒ । त्वच॑म् । मे॒ ॥१.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवेन माचक्षुषा पश्यतापः शिवया तन्वोप स्पृशत त्वचं मे ॥
स्वर रहित पद पाठशिवेन । मा । चक्षुषा । पश्यत । आप: । शिवया । तन्वा । उप । स्पृशत । त्वचम् । मे ॥१.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(आपः) जलवत् शान्त हे आप्त महात्माओं ! (शिवेन चक्षुषा) कल्याणकारिणी दृष्टि द्वारा (मा) मुझ पर (पश्यत) कृपादृष्टि कीजिये, तथा (शिवया तन्वा) निज कल्याण कारिणी देह द्वारा (मे) मेरी (त्वचम्) त्वचा अर्थात् शरीर को (स्पृशत) स्पर्श कीजिये।
टिप्पणी -
[मन्त्र ६,१०,११ द्वारा निष्पाप हुआ व्यक्ति, महात्माओं का संग कर, उन से विनय करता है कि आप कृपा पूर्वक मुझ पर अपनी कल्याण कारिणी दृष्टिपात कीजिये या सदा मुझ पर कृपादृष्टि कीजिये, और निज पवित्र और कल्याणकारी हस्त द्वारा मेरे शरीर का स्पर्श कीजिये। महात्माओं की कृपादृष्टि और उन द्वारा किया गया स्पर्श मनुष्य को पवित्र कर देता है। "हस्तस्पर्श चिकित्सा" वेदानुमोदित है। यथा- अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः। अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः ॥ हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिह्वा वाचः पुरोगवी। अनामयित्नुभ्यां हस्ताभ्यां ताभ्यां त्वाभि मृशामसि ।। (अथर्व० ४।१३।६,७)॥ अर्थात् यह मेरा हाथ भाग्यशाली है, और यह मेरा हाथ और अधिक भाग्यशाली है। यह मेरा हाथ विश्वभेषज अर्थात् महौषध रूप है, तथा यह स्पर्श द्वारा कल्याण करता है। दस शाखाओं वाले दो हाथों से पहिले, मेरी जिह्वा, रोगनिवारक वाणी को आगे प्रेरित करती है। रोग निवारक उन दो हाथों द्वारा तेरा हम स्पर्श करते हैं। रोगी के रोग को स्पर्श तथा वाकशक्ति (Suggetion) द्वारा, हटाने का वर्णन मन्त्रों में हुआ है]