अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 4
सूक्त - प्रजापति
देवता - आसुरी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
इ॒दं तमति॑सृजामि॒ तं माभ्यव॑निक्षि ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । तम् । अति॑ । सृ॒जा॒मि॒ । तम् । मा । अ॒भि॒ऽअव॑निक्षि ॥१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं तमतिसृजामि तं माभ्यवनिक्षि ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । तम् । अति । सृजामि । तम् । मा । अभिऽअवनिक्षि ॥१.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(तम्) उस मादक-अग्नि को (इदम्) अभी ही (अति सृजामि) मैं परित्यक्त कर देता हूँ, (तम्) उस मुझ को, हे मादक अग्नि! (मा, अभ्यवनिक्षि) तू चुम्बन या आलिङ्गन से रहित कर, अर्थात् तू मेरा स्पर्श न कर।
टिप्पणी -
[इदम् = इदानीम् अर्थ में। अभ्यवनिक्षि=अभि+अव (Away off, Away from, down; आप्टे)+निक्ष (णिक्ष् चुम्बने)]