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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 42
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    सोऽअ॒ग्निर्यो वसु॑र्गृ॒णे सं यमा॒य॑न्ति धे॒नवः॑। समर्व॑न्तो रघु॒द्रुवः॒ सꣳसु॑जा॒तासः॑ सू॒रय॒ऽइष॑ꣳ स्तो॒तृभ्य॒ऽआ भ॑र॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। अ॒ग्निः। यः। वसुः॑। गृ॒णे। सम्। यम्। आ॒यन्तीत्या॒ऽयन्ति॑। धे॒नवः॑। सम्। अर्व॑न्तः। र॒घु॒द्रुव॒ इति॑ रघु॒ऽद्रुवः॑। सम्। सु॒जा॒तास॒ इति॑ सुऽजा॒तासः॑। सू॒रयः॑। इष॑म्। स्तो॒तृभ्य॒ इति॑ स्तो॒तृभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोऽअग्निर्या वसुर्गृणे सँयमायन्ति धेनवः । समर्वन्तो रघुद्रुवः सँ सुजातासः सूरयऽइषँ स्तोतृभ्यऽआ भर ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। अग्निः। यः। वसुः। गृणे। सम्। यम्। आयन्तीत्याऽयन्ित। धेनवः। सम्। अर्वन्तः। रघुद्रुव इति रघुऽद्रुवः। सम्। सुजातास इति सुऽजातासः। सूरयः। इषम्। स्तोतृभ्य इति स्तोतृभ्यः। आ। भर॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 42
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    पदार्थ -
    हे विद्यार्थी विद्वान् पुरुष! जैसे मैं (यः) जो (वसुः) निवास का हेतु (अग्निः) अग्नि है, उस की (गृणे) अच्छे प्रकार स्तुति करता हूं, (यम्) जिस को (धेनवः) वाणी (समायन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होती हैं और (रघुद्रुवः) धीरज से चलने वाले (अर्वन्तः) प्रशंसित ज्ञानी (सुजातासः) अच्छे प्रकार विद्याओं में प्रसिद्ध (सूरयः) विद्वान् लोग (स्तोतृभ्यः) स्तुति करने हारे विद्यार्थियों के लिये (इषम्) ज्ञान को (सम्) अच्छे प्रकार धारण करते हैं और जैसे (सः) वह पढ़ाने हारा ईश्वरादि पदार्थों के गुण-वर्णन करता है, वैसे तू भी इन पूर्वोक्तों को (समाभर) ज्ञान से धारण कर॥४२॥

    भावार्थ - अध्यापकों को चाहिये कि जैसे गौएँ अपने बछरों को तृप्त करती हैं, वैसे विद्यार्थियों को प्रसन्न करें और जैसे घोड़े शीघ्र चल के पहुँचाते हैं, वैसे विद्यार्थियों को सब विद्याओं के पार शीघ्र पहुँचावें॥४२॥

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