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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 92
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - यज्ञपुरुषो देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    त्रिधा॑ हि॒तं प॒णिभि॑र्गु॒ह्यमा॑नं॒ गवि॑ दे॒वासो॑ घृ॒तमन्व॑विन्दन्। इन्द्र॒ऽएक॒ꣳ सूर्य॒ऽएक॑ञ्जजान वे॒नादेक॑ꣳस्व॒धया॒ निष्ट॑तक्षुः॥९२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रिधा॑। हि॒तम्। प॒णिभि॒रिति॑ प॒णिऽभिः॑। गु॒ह्यमा॑नम्। गवि॑। दे॒वासः॑। घृ॒तम्। अनु॑। अ॒वि॒न्द॒न्। इन्द्रः॑। एक॑म्। सूर्यः॑। एक॑म्। ज॒जा॒न॒। वे॒नात्। एक॑म्। स्व॒धया॑। निः। त॒त॒क्षुः॒ ॥९२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिधा हितम्पणिभिर्गुह्यमानङ्गवि देवासो घृतमन्वविन्दन् । इन्द्रऽएकँ सूर्यऽएकञ्जजान वेनादेकँ स्वधया निष्टतक्षुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिधा। हितम्। पणिभिरिति पणिऽभिः। गुह्यमानम्। गवि। देवासः। घृतम्। अनु। अविन्दन्। इन्द्रः। एकम्। सूर्यः। एकम्। जजान। वेनात्। एकम्। स्वधया। निः। ततक्षुः॥९२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 92
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे (देवासः) विद्वान् जन (पणिभिः) व्यवहार के ज्ञाता स्तुति करने वालों ने (त्रिधा) तीन प्रकार से (हितम्) स्थित किये और (गवि) वाणी में (गुह्यमानम्) छिपे हुए (घृतम्) प्रकाशित ज्ञान को (अनु, अविन्दन्) खोजने के पीछे पाते हैं, (इन्द्रः) बिजुली जिस (एकम्) एक विज्ञान और (सूर्यः) सूर्य (एकम्) एक विज्ञान को (जजान) उत्पन्न करते तथा (वेनात्) अति सुन्दर मनोहर बुद्धिमान् से तथा (स्वधया) आप धारण की हुई क्रिया से (एकम्) अद्वितीय विज्ञान को (निः) निरन्तर (ततक्षुः) अतितीक्ष्ण सूक्ष्म करते हैं, वैसे तुम लोग भी आचरण करो॥९२॥

    भावार्थ - तीन प्रकार के स्थूल, सूक्ष्म और कारण के ज्ञान करानेहारे बिजुली तथा सूर्य के प्रकार के तुल्य प्रकाशित बोध को आप्त अर्थात् उत्तम शास्त्रज्ञ विद्वानों से जो मनुष्य प्राप्त हों, वे अपने ज्ञान को व्याप्त करें॥९२॥

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