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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 20
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    अग्ने॒ पत्नी॑रि॒हा व॑ह दे॒वाना॑मुश॒तीरुप॑। त्वष्टा॑र॒ꣳ सोम॑पीतये॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। पत्नीः॑। इ॒ह। आ। व॒ह॒। दे॒वाना॑म्। उ॒श॒तीः। उप॑। त्वष्टा॑रम्। सोम॑पीतय॒ इति॒ सोम॑ऽपीतये ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप । त्वष्टारँ सोमपीतये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। पत्नीः। इह। आ। वह। देवानाम्। उशतीः। उप। त्वष्टारम्। सोमपीतय इति सोमऽपीतये॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 20
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    पदार्थ -
    हे (अग्ने) अध्यापक वा अध्यापिके! तू (इह) इस गृहाश्रम में अपने तुल्य गुणवाले पतियों वा (उशतीः) कामनायुक्त (देवानाम्) विद्वानों की (पत्नीः) स्त्रियों को और (सोमपीतये) उत्तम ओषधियों के रस को पीने के लिये (त्वष्टारम्) तेजस्वी पुरुष को (उप, आ, वह) अच्छे प्रकार समीप प्राप्त कर वा करें॥२०॥

    भावार्थ - जो मनुष्य कन्याओं को अच्छी शिक्षा दे, विदुषी बना और स्वयंवर से प्रिय पतियों को प्राप्त करा के प्रेम से सन्तानों को उत्पन्न करावें तो वे सन्तान अत्यन्त प्रशंसित होते हैं॥२०॥

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