Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 21
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    6

    अ॒भि य॒ज्ञं गृ॑णीहि नो॒ ग्नावो॒ नेष्टः॒ पिब॑ऽऋ॒तुना॑। त्वहि र॑त्न॒धा ऽअसि॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि। य॒ज्ञम्। गृ॒णी॒हि॒। नः॒। ग्नावः॑। नेष्ट॒रिति॒ नेष्टः॑। पिब॑। ऋ॒तुना॑। त्वम्। हि। र॒त्न॒धा इति॑ रत्न॒ऽधाः। असि॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि यज्ञङ्गृणीहि नो ग्नावो नेष्टः पिबऽऋतुना । त्वँ हि रत्नधाऽअसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। यज्ञम्। गृणीहि। नः। ग्नावः। नेष्टरिति नेष्टः। पिब। ऋतुना। त्वम्। हि। रत्नधा इति रत्नऽधाः। असि॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे (ग्नावः) प्रशस्त वाणी वाले (नेष्टः) नायक जन आप (ऋतुना) वसन्त आदि ऋतु के साथ (नः) हमारे (यज्ञम्) उत्तम व्यवहार की (अभि, गृणीहि) सन्मुख स्तुति कीजिये, जिस कारण (त्वं,हि) तुम ही (रत्नधाः) प्रसन्नता के हेतु वस्तु के धारणकर्त्ता (असि) हो इससे उत्तम ओषधियों के रसों को (पिब) पी॥२१॥

    भावार्थ - जो अच्छी शिक्षा को प्राप्त वाणी के संगत व्यवहार को जानने की इच्छा करें, वे विद्वान् होवें॥२१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top