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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - वैश्वनरोऽग्निर्देवता छन्दः - विराडत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः
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    वै॒श्वा॒न॒रस्य॑ सुम॒तौ स्या॑म॒ राजा॒ हि कं॒ भुव॑नानामभि॒श्रीः। इ॒तो जा॒तो विश्व॑मि॒दं वि च॑ष्टे वैश्वान॒रो य॑तते॒ सूर्ये॑ण। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि वैश्वान॒राय॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑र्वैश्वान॒राय॑ त्वा॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वै॒श्वा॒न॒रस्य॑। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। स्या॒म॒। राजा॑। हि। क॒म्। भुव॑नानाम्। अ॒भि॒श्रीरित्य॑भि॒ऽश्रीः। इ॒तः। जा॒तः। विश्व॑म्। इ॒दम्। वि। च॒ष्टे॒। वै॒श्वा॒न॒रः। य॒त॒ते॒। सूर्ये॑ण। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒। एषः। ते॒। योनिः॑। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम राजा हि कम्भुवनानामभिश्रीः । इतो जातो विश्वमिदँविचष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण । उपयामगृहीतोसि वैश्वानराय त्वैष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वैश्वानरस्य। सुमताविति सुऽमतौ। स्याम। राजा। हि। कम्। भुवनानाम्। अभिश्रीरित्यभिऽश्रीः। इतः। जातः। विश्वम्। इदम्। वि। चष्टे। वैश्वानरः। यतते। सूर्येण। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। वैश्वानराय। त्वा। एषः। ते। योनिः। वैश्वानराय। त्वा॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 7
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    पदार्थ -
    हम लोग जैसे (राजा) प्रकाशमान (भुवनानाम्) लोकों के बीच (अभिश्रीः) सब ओर से ऐश्वर्य की शोभा से युक्त सूर्य (कम्) सुख को (हि) ही सिद्ध करता है और (इतः) इस कारण (जातः) प्रसिद्ध हुआ (इदम्) इस (विश्वम्) विश्व को (वि, चष्टे) प्रकाशित करता है वा जैसे (सूर्येण) सूर्य के साथ (वैश्वानरः) बिजुली रूप अग्नि (यतते) यत्नवान् है, वैसे हम लोग (वैश्वानरस्य) संसार के नायक परमेश्वर वा उत्तम सभापति की (सुमतौ) अति उत्तम देश काल को जानने हारी कपट-छलादि दोष रहित बुद्धि में (स्याम) होवें। हे विद्वान्! जिससे आप (उपयामगृहीतः) सुन्दर नियमों से स्वीकृत (असि) हैं, इससे (वैश्वानराय) अग्नि के लिये (त्वा) आपको तथा जिस (ते) आप का (एषः) यह (योनिः) घर है उन (त्वा) आप को भी (वैश्वानराय) अग्निसाध्य कार्य साधने के लिये सत्कार करता हूँ॥७॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य के साथ चन्द्रमा रात्रि को सुशोभित करता है, वैसे उत्तम राजा से प्रजा प्रकाशित होती है और विद्वान् शिल्पी जन अग्नि से सर्वोपयोगी कार्यों को सिद्ध करता है॥७॥

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