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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 21
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - मनुष्या देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    ई॒र्मान्ता॑सः॒ सिलि॑कमध्यमासः॒ सꣳशूर॑णासो दि॒व्यासो॒ऽअत्याः॑।ह॒ꣳसाऽइ॑व श्रेणि॒शो य॑तन्ते॒ यदाक्षि॑षुर्दि॒व्यम॒ज्ममश्वाः॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒र्मान्ता॑स॒ इती॒र्मऽअ॑न्तासः। सिलि॑कमध्यमास॒ इति॒ सिलि॑कऽमध्यमासः। सम्। शूर॑णासः। दि॒व्यासः॑। अत्याः॑। ह॒ꣳसाऽइ॒वेति॑ ह॒ꣳसाःऽइ॑व। श्रे॒णि॒श इति॑ श्रेणि॒ऽशः। य॒त॒न्ते॒। यत्। आक्षि॑षुः। दि॒व्यम्। अज्म॑म्। अश्वाः॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईर्मान्तासः सिलिकमध्यमासः सँ शूरणासो दिव्यासोऽअत्याः । हँसाऽइव श्रेणिशो यतन्ते यदाक्षिषुर्दिव्यमज्ममश्वाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ईर्मान्तास इतीर्मऽअन्तासः। सिलिकमध्यमास इति सिलिकऽमध्यमासः। सम्। शूरणासः। दिव्यासः। अत्याः। हꣳसाऽइवेति हꣳसाःऽइव। श्रेणिश इति श्रेणिऽशः। यतन्ते। यत्। आक्षिषुः। दिव्यम्। अज्मम्। अश्वाः॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! (यत्) जो अग्नि आदि पदार्थों के तुल्य (ईर्मान्तासः) जिनका बैठने का स्थान प्रेरणा किया गया (सिलिकमध्यमासः) गदा आदि से लगा हुआ है मध्यप्रदेश जिनका ऐसे (शूरणासः) शीघ्र युद्ध में विजय के हेतु (दिव्यासः) उत्तम शिक्षित (अत्याः) निरन्तर चलने वाले (अश्वाः) शीघ्रगामी घोड़े (श्रेणिशः) पङ्क्ति बांधे हुए (हंसा इव) हंस पक्षियों के तुल्य (यतन्ते) प्रयत्न करते हैं और (दिव्यम्) शुद्ध (अज्मम्) मार्ग को (सम्, आक्षिषुः) व्याप्त होवें, उनको तुम लोग प्राप्त होओ॥२१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिन राजपुरुषों के सुशिक्षित उत्तम गति वाले घोड़े अग्न्यादि पदार्थों के समान कार्यसाधक होते हैं, वे सर्वत्र विजय पाते हैं॥२१॥

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