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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 5
    ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव्य ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    ए॒ताऽउ॑ वः सु॒भगा॑ वि॒श्वरू॑पा॒ वि पक्षो॑भिः॒ श्रय॑माणा॒ऽउदातैः॑।ऋ॒ष्वाः स॒तीः क॒वषः॒ शुम्भ॑माना॒ द्वारो॑ दे॒वीः सुप्राय॒णा भ॑वन्तु॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ताः। उँ॒ऽइत्यूँ॑। वः॒। सु॒भगा॒ इति॑ सु॒ऽभगाः॑। वि॒श्वरू॑पा॒ इति॑ वि॒श्वऽरू॑पाः। वि। पक्षो॑भि॒रिति॒ पक्षः॑ऽभिः। श्रय॑माणाः। उत्। आतैः॑। ऋ॒ष्वाः। स॒तीः। क॒वषाः॑। शुम्भ॑मानाः। द्वारः॑। दे॒वीः। सु॒प्रा॒य॒णाः। सु॒प्रा॒य॒ना इति॑ सुऽप्राय॒नाः। भ॒व॒न्तु॒ ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एताऽउ वः सुभगा विश्वरूपा वि पक्षोभिः श्रयमाणाऽउदातैः । ऋष्वाः सतीः कवषः शुम्भमाना द्वारो देवीः सुप्रायणा भवन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एताः। उँऽइत्यूँ। वः। सुभगा इति सुऽभगाः। विश्वरूपा इति विश्वऽरूपाः। वि। पक्षोभिरिति पक्षःऽभिः। श्रयमाणाः। उत्। आतैः। ऋष्वाः। सतीः। कवषाः। शुम्भमानाः। द्वारः। देवीः। सुप्रायणाः। सुप्रायना इति सुऽप्रायनाः। भवन्तु॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे (वः) तुम्हारी (एताः) ये दीप्ति (सुभगाः) सुन्दर ऐश्वर्यदायक (विश्वरूपाः) विविध प्रकार के रूपों वाले (ऋष्वाः) बड़े ऊंचे चौड़े (कवषाः) जिन में बोलने से शब्द की प्रतिध्वनि हो (शुम्भमानाः) सुन्दर शोभायुक्त (सती) हुए (देवीः) रङ्गों से चिलचिलाते हुए (उत्, आतैः) उत्तम रीति से निरन्तर जाने के हेतु (पक्षोभिः) बायें दाहिने भागों से (श्रयमाणाः) सेवित पक्षियों की पङ्क्तियों के तुल्य (सुप्रायणाः) सुख से जाने के आधार (द्वारः) द्वार (वि, भवन्तु) सर्वत्र घरों में हों, वैसे (उ) ही आप लोग भी बनावें॥५॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिए कि ऐसे द्वारों वाले घर बनावें कि जिनसे वायु न रुके। जैसे आकाश में बिना रुकावट के पक्षी सुखपूर्वक उड़ते हैं, वैसे उन द्वारों में जावें-आवें॥५॥

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