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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 55
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रष्टा देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    काऽईम॑रे पिशङ्गि॒ला काऽर्इं॑ कुरुपिशङ्गि॒ला।कऽर्इ॑मा॒स्कन्द॑मर्षति॒ कऽर्इं॒ पन्थां॒ विस॑र्पति॥५५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का। ई॒म्। अ॒रे॒। पि॒श॒ङ्गि॒ला। का। ई॒म्। कु॒रु॒पि॒श॒ङ्गि॒लेति॑ कुरुऽपिशङ्गि॒ला। कः। ई॒म्। आ॒स्कन्द॒मित्या॒ऽस्कन्द॑म्। अ॒र्ष॒ति॒। कः। ई॒म्। पन्था॑म्। वि। स॒र्प॒ति॒ ॥५५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कऽईमरे पिशङ्गिला काऽईङ्कुरुपिशङ्गिला । कऽईमास्कन्दमर्षति कऽईम्पन्थाँविसर्पति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    का। ईम्। अरे। पिशङ्गिला। का। ईम्। कुरुपिशङ्गिलेति कुरुऽपिशङ्गिला। कः। ईम्। आस्कन्दमित्याऽस्कन्दम्। अर्षति। कः। ईम्। पन्थाम्। वि। सर्पति॥५५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 55
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    अन्वयः - अरे स्त्रि! का र्इं पिशङ्गिला का र्इं कुरुपिशङ्गिला क ईमास्कन्दमर्षति क र्इं पन्थां विसर्पतीति समाधेहि॥५५॥

    पदार्थः -
    (का) (ईम्) समुच्चये (अरे) नीचसंबोधने (पिशङ्गिला) रूपावरणकारिणी (का) (ईम्) (कुरुपिशङ्गिला) (कः) (ईम्) (आस्कन्दम्) (अर्षति) प्राप्नोति (कः) (ईम्) उदकस्य (पन्थाम्) मार्गम् (वि) (सर्पति)॥५५॥

    भावार्थः - केन रूपमाव्रियते? केन कृष्यादिर्नश्यते? कः शीघ्रं धावति? कश्च मार्गे प्रसरति? इति चत्वारः प्रश्नास्तेषामुत्तराणि परस्मिन् मन्त्रे वेदितव्यानि॥५५॥

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