Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 3
    ऋषिः - आथर्वण ऋषिः देवता - पूषा देवता छन्दः - भुरिक् साम्नी बृहती स्वरः - मध्यमः
    0

    अदि॑त्यै॒ रास्ना॑सीन्द्रा॒ण्याऽउ॒ष्णीषः॑।पू॒षासि॑ घ॒र्माय॑ दीष्व॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अदि॑त्यै। रास्ना॑। अ॒सि॒। इ॒न्द्रा॒ण्यै। उ॒ष्णीषः॑ ॥ पू॒षा। अ॒सि॒। घ॒र्माय। दी॒ष्व॒ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदित्यै रास्नासीन्द्राण्याऽउष्णीषः । पूषासि घर्माय दीष्व ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अदित्यै। रास्ना। असि। इन्द्राण्यै। उष्णीषः॥ पूषा। असि। घर्माय। दीष्व॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे स्रिये ! पगडी वगैरे जशी सुख देणारी वस्रे असतात तशी पतीसाठी तू सुख देणारी आहेस.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top