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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 34
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - गृहपतिर्देवता छन्दः - विराट आर्षी अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
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    यु॒क्ष्वा हि के॒शिना॒ हरी॒ वृष॑णा कक्ष्य॒प्रा। अथा॑ नऽइन्द्र सोमपा गि॒रामुप॑श्रुतिं॑ चर। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतो॒ऽसीन्द्रा॑य त्वा षोड॒शिन॑ऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य त्वा षोड॒शिने॑॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒क्ष्व। हि। के॒शिना॑। हरी॒ऽइति॒ हरी॑। वृष॑णा। क॒क्ष्य॒प्रेति॑ कक्ष्य॒ऽप्रा। अथ॑। नः॒। इ॒न्द्र॒। सो॒मपा॒ इति॑ सोमऽपाः। गि॒राम्। उप॑श्रुति॒मित्युप॑ऽश्रुतिम्। च॒र॒। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। इन्द्रा॑य। त्वा॒। षो॒ड॒शिने॑। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। इन्द्रा॑य। त्वा॒। षो॒ड॒शिने॑ ॥३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युक्ष्वा हि केशिना हरी वृषणा कक्ष्यप्रा । अथा न इन्द्र सोमपा गिरामुपश्रुतिञ्चर । उपयामगृहीतोसीन्द्राय त्वा षोडशिने ऽएष ते योनिरिन्द्राय त्वा षोडशिने ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युक्ष्व। हि। केशिना। हरीऽइति हरी। वृषणा। कक्ष्यप्रेति कक्ष्यऽप्रा। अथ। नः। इन्द्र। सोमपा इति सोमऽपाः। गिराम्। उपश्रुतिमित्युपऽश्रुतिम्। चर। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। इन्द्राय। त्वा। षोडशिने। एषः। ते। योनिः। इन्द्राय। त्वा। षोडशिने॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 34
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    भावार्थ - या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्रातील ‘रथं’ या शब्दाचा अर्थ अभिप्रेत आहे. प्रजा, सेना, सभा यांनी राजाला अशी सूचना केली पाहिजे की, शत्रूंचा नाश करण्यासाठी व राज्यात न्याय टिकण्यासाठी घोडे इत्यादी सेनेच्या विभागाला प्रशिक्षण द्यावे व आनंदी ठेवावे तसेच बलवानही बनवावे. वरील सर्व लोकांच्या विनंतीपत्राचा विचार करून राजाने राज्य व ऐश्वर्य यांचे रक्षण केले पाहिजे.

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