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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 19
    ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः देवता - जातवेदाः देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    क्र॒व्याद॑म॒ग्निं प्र हि॑णोमि दू॒रं य॑म॒राज्यं॑ गच्छतु रिप्रवा॒हः।इ॒हैवायमित॑रो जा॒तवे॑दा दे॒वेभ्यो॑ ह॒व्यं व॑हतु प्रजा॒नन्॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्र॒व्याद॒मिति॑ क्रव्या॒ऽअद॑म्। अ॒ग्निम्। प्र। हि॒नो॒मि॒। दू॒रम्। यम॒राज्य॒मिति॑ यम॒ऽराज्य॑म्। ग॒च्छ॒तु। रि॒प्र॒वा॒ह इति॑ रिप्रऽवा॒हः ॥ इ॒ह। ए॒व। अ॒यम्। इत॑रः। जा॒तवे॑दा॒ इति॑ जा॒तऽवे॑दाः। दे॒वेभ्यः॑। ह॒व्यम्। व॒ह॒तु॒। प्र॒जा॒नन्निति॑ प्रऽजा॒नन् ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्रव्यादमग्निम्प्र हिणोमि दूरँयमराज्यङ्गच्छतु रिप्रवाहः । इहैवायमितरो जातवेदा देवेभ्यो हव्यँवहतु प्रजानन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    क्रव्यादमिति क्रव्याऽअदम्। अग्निम्। प्र। हिनोमि। दूरम्। यमराज्यमिति यमऽराज्यम्। गच्छतु। रिप्रवाह इति रिप्रऽवाहः॥ इह। एव। अयम्। इतरः। जातवेदा इति जातऽवेदाः। देवेभ्यः। हव्यम्। वहतु। प्रजानन्निति प्रऽजानन्॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- (প্রজানন্) উত্তম প্রকার জানিয়া আমি (ক্রব্যাদম্) কাঁচা মাংস ভক্ষণকারী এবং (অগ্রিম্) অগ্নির তুল্য অপরকে দুঃখ দ্বারা তপ্তকারী যে দুষ্টকে (দূরম্) দূরে (প্র) (হিণোমি) লইয়া যাই এবং (রিপ্রবাহঃ) পাপ বহনকারী দুষ্টদিগকে দূরে লইয়া যাই এবং এই সব পাপী (য়মরাজ্যম্) ন্যায়াধীশ রাজার ন্যায়ালয়ে (গচ্ছতু) যাউক এবং (ইহ) এই জগতে (ইতর) অন্য (অয়ম্) এই (জাতবেদাঃ) ধর্মাত্মা বিদ্বান্ ব্যক্তি (দেবেভ্যঃ) ধার্মিক বিদ্বান্দিগের দ্বারা (হব্যম্) গ্রহণীয় বিজ্ঞানকে (এব)(বহতু) প্রাপ্ত হইবে ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে ন্যায়াধীশ রাজপুরুষগণ ! তোমরা দুষ্টাচারীগণকে সম্যক্ তাড়না দিয়া প্রাণসকল হইতেও মুক্ত করাইয়া এবং শ্রেষ্ঠদের সৎকার করিয়া এই সৃষ্টিতে সাম্রাজ্য অর্থাৎ চক্রবর্ত্তী রাজ্য কর ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ক্র॒ব্যাদ॑ম॒গ্নিং প্র হি॑ণোমি দূ॒রং য়॑ম॒রাজ্যং॑ গচ্ছতু রিপ্রবা॒হঃ ।
    ই॒হৈবায়মিত॑রো জা॒তবে॑দা দে॒বেভ্যো॑ হ॒ব্যং ব॑হতু প্রজা॒নন্ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ক্রব্যাদমিত্যস্য দমন ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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