Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 36

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - पादनिचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
    6

    अ॒भी षु णः॒ सखी॑नामवि॒ता ज॑रितॄ॒णाम्।श॒तं भ॑वास्यू॒तिभिः॑॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भी। सु। नः॒। सखी॑नाम्। अ॒वि॒ता। ज॒रि॒तॄ॒णाम् ॥ श॒तम्। भ॒वा॒सि॒। ऊ॒तिभिः॑६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभी षु णः सखीनामविता जरितऋृणाम् । शतम्भवास्यूतये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभी। सु। नः। सखीनाम्। अविता। जरितॄणाम्॥ शतम्। भवासि। ऊतिभिः६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    पदार्थ -

    पदार्थ = हे परमेश्वर ! ( नः सखीनाम् ) = हम सब आपके प्रेमी मित्रों के और  ( जरितॄणाम् ) = उपासकों के  ( शतम् ऊतिभिः ) = सैकड़ों रक्षणों से  ( अभि सु अविता ) = चारों ओर से उत्तम रक्षक  ( भवासि ) = आप होते हैं ।

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे सबके रक्षक परम प्यारे जगदीश्वर! आप अपने मित्रों उपासकों का अनेक प्रकार से अत्युत्तम रक्षण करते हैं। भगवन् ! न्यूनता हमारी ही है, जो हम संसार के भोगों में लम्पट होकर संसारी पुरुषों को अपना मित्र जानते और उनके ही सेवक और उपासक बने रहते हैं। इसमें अपराध हमारा ही है, जो हम आपके प्यारे मित्र और उपासक नहीं बनते ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top