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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 7
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - वर्द्धमाना गायत्री स्वरः - षड्जः
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    कया॒ त्वं न॑ऽ ऊ॒त्याभि प्र म॑न्दसे वृषन्।कया॑ स्तो॒तृभ्य॒ऽ आ भ॑र॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कया॑। त्वम्। नः॒। ऊ॒त्या। अ॒भि। प्र। म॒न्द॒से॒। वृ॒ष॒न् ॥ कया॑। स्तो॒तृभ्य॒ इति॑ स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कया त्वम्नऽऊत्याभि प्र मन्दसे वृषन् । कया स्तोतृभ्य आ भर ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कया। त्वम्। नः। ऊत्या। अभि। प्र। मन्दसे। वृषन्॥ कया। स्तोतृभ्य इति स्तोतृऽभ्यः। आ। भर॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 7
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    पदार्थ -

    पदार्थ = हे  (वृषन् ) = सब सुख और ऐश्वर्य के वर्षक परमात्मन् ! ( त्वम् ) = आप  ( कया ) = किस अचिन्तनीय सुखदायक  ( ऊत्या ) = रक्षण आदि क्रिया से  ( न: ) = हमको  ( अभि प्र मन्दसे ) = सब ओर से आनन्दित करते और  ( कया ) = किस रीति से  ( स्तोतृभ्यः ) = आपकी प्रशंसा करनेवाले मनुष्यों के लिए सुख को  ( आभर ) = सब प्रकार से प्राप्त कराते हो ?
     

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे परम दयालु परमात्मन्! जिस बुद्धि और युक्ति से आप धर्मात्मा ज्ञानी पुरुषों को सुखी करते और उनकी सब और से रक्षा करते हैं, उस बुद्धि और युक्ति को हमको भी जताइये।

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