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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 167 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 167/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रो मरुच्च छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    प्र तं वि॑वक्मि॒ वक्म्यो॒ य ए॑षां म॒रुतां॑ महि॒मा स॒त्यो अस्ति॑। सचा॒ यदीं॒ वृष॑मणा अहं॒युः स्थि॒रा चि॒ज्जनी॒र्वह॑ते सुभा॒गाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । तम् । वि॒व॒क्मि॒ । वक्म्यः॑ । यः । ए॒षा॒म् । म॒रुता॑म् । म॒हि॒मा । स॒त्यः । अस्ति॑ । सचा॑ । यत् । ई॒म् । वृष॑ऽमनाः । अ॒ह॒म्ऽयुः । स्थि॒रा । चि॒त् । जनीः॑ । वह॑ते । सु॒ऽभा॒गाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र तं विवक्मि वक्म्यो य एषां मरुतां महिमा सत्यो अस्ति। सचा यदीं वृषमणा अहंयुः स्थिरा चिज्जनीर्वहते सुभागाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। तम्। विवक्मि। वक्म्यः। यः। एषाम्। मरुताम्। महिमा। सत्यः। अस्ति। सचा। यत्। ईम्। वृषऽमनाः। अहम्ऽयुः। स्थिरा। चित्। जनीः। वहते। सुऽभागाः ॥ १.१६७.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 167; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    य एषां मरुतां वक्म्यः सत्यो महिमास्ति तं यद्योऽहंयुर्वृषमना ईं सचा स्थिरा चित् सुभागा जनीर्वहते तं चाहं प्रविवक्मि ॥ ७ ॥

    पदार्थः

    (प्र) (तम्) (विवक्मि) विशेषेण वदामि। अत्र वाच्छन्दसीति कुत्वम्। (वक्म्यः) वक्तुं योग्यः (यः) (एषाम्) (मरुताम्) वायुनामिव विदुषाम् (महिमा) महतो भावः (सत्यः) सत्सु साधुरव्यभिचारी (अस्ति) (सचा) सम्बन्धेन (यत्) यः (ईम्) सर्वतः (वृषमनाः) वृषे वीर्यसेचने मनो यस्य सः (अहंयुः) अहं विद्यते यस्मिन् सः (स्थिरा) निश्चलाः। अत्राकारादेशः। (चित्) खलु (जनीः) अपत्यानि प्रादुर्भवित्रीः (वहते) प्राप्नोति (सुभागाः) शोभनो भागो भजनं यासान्ताः ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    मनुष्याणामिदमेव महत्त्वं यद्दीर्घेण ब्रह्मचर्येण कुमाराः कुमार्यश्च पूर्णायुशरीरात्मबलाय विद्यासुशिक्षे गृहीत्वा चिरञ्जीवानि दृढकायमनांसि भाग्यशालीन्यपत्यान्युत्पाद्य प्रशंसितकरणमिति ॥ ७ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    (यः) जो (एषाम्) इन (मरुताम्) पवनों के समान विद्वानों का (वक्म्यः) कहने योग्य (सत्यः) सत्य (महिमा) बड़प्पन (अस्ति) है (तम्) उसको और (यत्) जो (अहंयुः) अहङ्कारवाला अभिमानी (वृषमनाः) जिसका वीर्य सींचने में मन वह (ईम्) सब ओर से (सचा) सम्बन्ध के साथ (स्थिरा, चित्) स्थिर ही (सुभागाः) सुन्दर सेवन करने (जनीः) अपत्यों को उत्पन्न करनेवाली स्त्रियों को (वहते) प्राप्त होता उसको भी मैं (प्र, विवक्मि) अच्छे प्रकार विशेषता से कहता हूँ ॥ ७ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों का यही बड़प्पन है जो दीर्घ ब्रह्मचर्य से कुमार और कुमारी शरीर और आत्मा के पूर्ण बल के लिये विद्या और उत्तम शिक्षा को ग्रहण कर चिरञ्जीवी दृढ़ जिनके शरीर और मन ऐसे भाग्यशाली सन्तानों को उत्पन्न कर उनको प्रशंसित करना ॥ ७ ॥

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    विषय

    प्राणसाधना के तीन लाभ

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (एषां मरुताम्) = इन प्राणों की व प्राणसाधक पुरुषों की (वक्म्यः) = कथन करने योग्य [प्रशंसनीय] (सत्यः महिमा अस्ति) = सत्य महिमा है (तम्) = उस महिमा को (प्रविवक्मि) = मैं प्रकर्षेण प्रतिपादित करता हूँ। २. (यत्) = क्योंकि यह (ईम्) = निश्चय से (सचा) = [सच समवाये] उस प्रभु से मेलवाला होता है, अतः यह (वृषमणा:) = धर्मयुक्त मनवाला होता है- प्रभुस्मरण के कारण अशुभ वृत्तियों के आक्रमण से बच जाता है। (अहंयुः) = [अह व्याप्तौ] सर्वव्यापक प्रभु को प्राप्त करने की कामनावाला होता है अथवा उचित आत्मगौरव की भावनावाला होता है तथा (सुभागा:) = सदा उत्तम भजनीय [सेवनीय] धनोंवाला होता हुआ (चित्) = निश्चय से (स्थिरा जनीः) = स्थिर शक्तिविकासों को [जन्- प्रादुर्भावे] वहते धारण करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से [क] हमारा प्रभु से मेल होता है, [ख] हमारी वृत्ति धार्मिक बनती है, [ग] शक्तियों का विकास होता है।

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    विषय

    नव गृहस्थों को सत्य प्रतिज्ञा से गृहस्थ निर्वाह का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो ( एषां ) इन ( मरुतां ) विद्वान् पुरुषों का ( सत्यः ) सत्य, ( वक्म्यः ) वर्णन करने योग्य, ( महिमा ) महान् सामर्थ्य है मैं ( तं ) उसका ( प्र वक्मि ) उपदेश करता हूं । वह यह कि ( यत् ) जो ( एषां ) उनमें से ( वृषमनाः ) वीर्य सेचन अर्थात् पुत्रोत्पादन करने में चित्त देने वाला, गृहस्थ का अभिलाषी, पुत्रैषणावान् ( अहंयुः ) अहं भाव से युक्त, आत्मवान्, जितेन्द्रिय है वह ही ( स्थिराः ) धर्म और लोक यात्रा में स्थिर चित्त ( सुभागाः ) सुख सौभाग्य से युक्त, सुख से सेवने योग्य (जनीः) पुत्र जनन में समर्थ दाराओं को ( वहते ) विवाहे । बिना पुत्रैषणा के कोई विवाह नहीं करता । जो करे वह उसको सत्यता पूर्वक निबाहे । वायु पक्ष में—( मरुतां ) वायु गण की यह सत्य महिमा है कि इनमें बरसने वाला आत्मवान् पर्जन्य है, वह उत्तम भाग्यवान् ( जनीः ) प्रजाओं को धारण करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्तय ऋषिः ॥ इन्द्रो मरुच्च देवता । छन्दः - १, ४, ५, भुरिक् पङ्क्तिः । ७, स्वराट् पङ्क्तिः । १० निचृत् पङ्क्तिः ११ पङ्क्तिः । २, ३, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसासाठी हे महत्त्वाचे आहे की, दीर्घ ब्रह्मचर्य पाळून कुमार व कुमारी यांनी शरीर व आत्म्याच्या पूर्ण बलासाठी विद्या व उत्तम शिक्षण ग्रहण करून ज्यांचे शरीर व मन दृढ व दीर्घजीवी असेल अशा भाग्यवान संतानांना उत्पन्न करावे, ज्यामुळे त्यांची प्रशंसा होईल. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    That greatness and glory of the Maruts which is worthy of celebration, I celebrate. It is real and true, since he that is virile and proud of himself, Indra, in unison with this firm earth, sustains the many happy mothers and children of the world.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Building a generation on ideal lines is the greatness of learned man.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    I admire the greatness of the Maruts - The learned men who are active and mighty like the winds. Their greatness is true and worthy of the celebration. I also admire the persons who have proper sense of self-respect, are full of virility and are discharging properly their domestic duties. Such persons duly support great, ever enduring, auspicious and faithful wives begetting noble children.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The greatness of men lies when they acquire wisdom and good education for the physical and spiritual strength and long life. The object is to get children who are strong in body and mind and are long-living. Thus they become worthy of admiration everywhere.

    Foot Notes

    (मरुताम्) वायूनाम् इब विदुषाम् = Of learned men who are active and mighty like the winds. (जनी:) अपत्यानि प्रादुर्भवित्रीः = Women begetting good progeny.

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