ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 179/ मन्त्र 4
न॒दस्य॑ मा रुध॒तः काम॒ आग॑न्नि॒त आजा॑तो अ॒मुत॒: कुत॑श्चित्। लोपा॑मुद्रा॒ वृष॑णं॒ नी रि॑णाति॒ धीर॒मधी॑रा धयति श्व॒सन्त॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठन॒दस्य॑ । मा॒ । रु॒ध॒तः । कामः॑ । आ । अ॒ग॒न् । इ॒तः । आऽजा॑तः । अ॒मुतः॑ । कुतः॑ । चि॒त् । लोपा॑मुद्रा । वृष॑णम् । निः । रि॒णा॒ति॒ । धीर॑म् । अधी॑रा । ध॒य॒ति॒ । श्व॒सन्त॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नदस्य मा रुधतः काम आगन्नित आजातो अमुत: कुतश्चित्। लोपामुद्रा वृषणं नी रिणाति धीरमधीरा धयति श्वसन्तम् ॥
स्वर रहित पद पाठनदस्य। मा। रुधतः। कामः। आ। अगन्। इतः। आऽजातः। अमुतः। कुतः। चित्। लोपामुद्रा। वृषणम्। निः। रिणाति। धीरम्। अधीरा। धयति। श्वसन्तम् ॥ १.१७९.४
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 179; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
इतोऽमुतः कुतश्चिदाजातो रुधतो नदस्य कामो मागन्नधीरा लोपामुद्रेयं वृषणं धीरं श्वसन्तं पतिं नीरिणाति धयति च ॥ ४ ॥
पदार्थः
(नदस्य) अव्यक्तशब्दं कुर्वतो वृषभादेः (मा) माम् (रुधतः) रेतो निरोद्धुः (कामः) (आगन्) आगच्छति प्राप्नोति (इतः) अस्मात् (आजातः) सर्वतः प्रसिद्धः (अमुतः) अमुष्मात् (कुतः) कस्मात् (चित्) अपि (लोपामुद्रा) लोपएव आमुद्रा समन्तात् प्रत्ययकारिणी यस्याः सा (वृषणम्) वीर्यवन्तम् (निः) नितराम् (रिणाति) (धीरम्) धैर्ययुक्तम् (अधीरा) धैर्यरहिता (धयति) आधरति (श्वसन्तम्) प्राणयन्तम् ॥ ४ ॥
भावार्थः
ये विद्याधैर्य्यादिरहिता स्त्रिय उद्वहन्ति ते सुखन्नाप्नुवन्ति। योऽकामां कन्यां यमकामं कुमारी चोद्वाहयेत्तत्र किमपि सुखं न जायते। तस्मात् परस्परं प्रीतौ सदृशौ विवाहं कुर्यातां तत्रैव मङ्गलम् ॥ ४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
(इतः) इधर से वा (अमुतः) उधर से वा (कुतश्चित्) कहीं से (आजातः) सब ओर से प्रसिद्ध (रुधतः) वीर्य रोकने वा (नदस्य) अव्यक्त शब्द करनेवाले वृषभ आदि का (कामः) काम (मा) मुझको (आगन्) प्राप्त होता अर्थात् उनके सदृश कामदेव उत्पन्न होता है। और (अधीरा) धीरज से रहित वा (लोपामुद्रा) लोप होजाना लुकि जाना ही प्रतीत का चिह्न है जिसका सो यह स्त्री (वृषणम्) वीर्यवान् (धीरम्) धीरजयुक्त (श्वसन्तम्) श्वासें लेते हुए अर्थात् शयनादि दशा में निमग्न पुरुष को (नीरिणति) निरन्तर प्राप्त होती और (धयति) उससे गमन भी करती है ॥ ४ ॥
भावार्थ
जो विद्या धैर्य आदि रहित स्त्रियों को विवाहते हैं वे सुख नहीं पाते हैं। जो पुरुष कामरहित कन्या को वा कामरहित पुरुष को कुमारी विवाहे वहाँ कुछ भी सुख नहीं होता, इससे परस्पर प्रीतिवाले गुणों में समान स्त्री-पुरुष विवाह करें, वहाँ ही मङ्गल समाचार है ॥ ४ ॥
विषय
वाञ्छनीय 'काम'
पदार्थ
१. अगस्त्य कहते हैं कि इस गृहस्थ का मूल 'काम' है। यही काम मनुष्य को अपने में फँसाकर विनष्ट कर डालता है, अतः (मा) = मुझे तो वही (कामः) = काम (आगन्) = प्राप्त हो जो कि (नदस्य) = एक स्तोता का है। प्रभु-स्तवन करनेवाले का काम पवित्र बना रहता है। मुझे (रुधतः) = अपना संयम करनेवाले का काम प्राप्त हो । संयमी पुरुष सन्तानोत्पत्ति के लिए ही इस काम को अपनाता है। यह काम धर्म के विरुद्ध नहीं है। २. यह 'काम' (इतः) = इस लोक के दृष्टिकोण से (आजातः) = उत्पन्न हुआ है, परन्तु केवल लौकिक दृष्टिकोण से न होकर यह (कुतश्चित्) = आँखों से न दीखनेवाले किसी (अमुतः) = परलोक के दृष्टिकोण से भी हुआ है। इस काम का उद्देश्य इस लोक का अभ्युदय ही नहीं है, अपितु परलोक के निःश्रेयस को भी दृष्टि में रखकर यह मुझे प्राप्त हुआ है । ३. इस प्रकार कामात्मा न बने हुए मुझ (वृषणम्) = शक्तिशाली पुरुष को (लोपामुद्रा) = वासनाओं को लुप्त करनेवाली – प्रसन्न मनोवृत्तिवाली पत्नी (निरिणाति) = निश्चय से प्राप्त होती है । यह मेरे अनुकूल है। मैं कामात्मा नहीं तो यह भी कामासक्ति से ऊपर उठी हुई है। मैं धीर हूँ तो यह भी धीर है। ४. परन्तु कदाचित् पति धीर हो और पत्नी धीर न हो इस प्रकार परस्पर समन्वय न होने पर (धीरम्) = ज्ञान में रमण करनेवाले धीर पति को (अधीरा) = ज्ञान में रुचि न रखनेवाली, भोगप्रधान वृत्तिवाली पत्नी (श्वसन्तम्) = आहें भरते हुए व अपने भाग्य का ही रोना रोते हुए पति को (धयति) = पी-सा जाती है, उसे शीघ्र ही अशक्त बना देती है । एवं गृहस्थ में पति-पत्नी दोनों का धीर होना आवश्यक है। दोनों धीर हों तो गृहस्थ स्वर्ग बन जाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारा 'काम' स्तोता व संयमी पुरुष का काम हो । यह अभ्युदय व निःश्रेयस दोनों के दृष्टिकोण से प्रवृत्त हो । पति-पत्नी दोनों ही धीर हों, ज्ञान की रुचिवाले हों, अन्यथा जीवन एकदम भोगप्रधान बनकर गृहस्थ को नरक-सा बना देता है ।
विषय
गृहस्थ पुरुर्ष के परस्पर कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( रुघतः नदस्य ) रुके हुए नद अर्थात् नाले का जिस प्रकार जल का वेग बड़ा अदम्य होता है उसी प्रकार ( रुघतः ) वीर्य का निरोध करने हारे ( नदस्य) वेदाध्ययन करने वाले, विद्याध्ययनशील ब्रह्मचारी का ( कामः ) काम, गृहस्थ करने की इच्छा, या संकल्प ( मा ) मुझ स्त्री वा पुरुष को भी (आगन्) प्राप्त होता है। वह ( इतः ) इस शरीर के स्वाभाविक कारण से और ( अमुतः ) अन्य बाह्य कारणों से ( कुतः चित् ) और अन्य भी किसी अवर्णनीय परस्पर प्रेम आदि कारण से भी (आजातः) और अधिक प्रकट हो जाता है। ऐसी दशा में स्त्री स्वभावतः (लोपामुद्रा) इच्छा के कारण अपने को छुपाने की चेष्टा में ही सब प्रकार के सुख प्रतीत करने, वा हर्षित होने वाली अथवा ( लोपे आ-मुद्-रा ) छुपे स्थान पर प्रियतम से अति प्रमोद पूर्वक रमण करने की उत्सुक होकर ( वृषणं ) वीर्य सेचन में समर्थ युवा पुरुष को ( निर् रिणाति ) सब प्रकार से प्राप्त होती है । और वह (अधीरा ) धैर्य रहित या ( अधि-इरा ) अति कामना युक्त या ( अधि-इरा = इला ) अति उत्तम भूमि या क्षेत्र होकर [जिस प्रकार भूमि (धीरम् = अधि-इरम् श्वसन्तम् धयति ) अति जल युक्त वायुवेग से चलने वाले मेघ के जल का पान करती है उसी प्रकार ] ( धीरम् ) धैर्यवान् (श्वसन्तम् ) अपने प्राण देने वाले, अति प्रिय या ( श्वसन्तम् = विश्वसन्तं ) आश्वासन देने और विश्वास दिलाने वाले प्रेमवश गंभीर श्वास लेने वाले पुरुष को ( वयति ) धारण करे, पान करे, उसका उपभोग करे। उससे संगति कर पुत्र लाभ करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
लोपामुद्राऽगस्त्यौ ऋषिः ॥ दम्पती देवता ॥ छन्दः– १, ४ त्रिष्टुप् । २, ३ निचृत त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ५ निचृदबृहती ॥ षडर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे धैर्यहीन व विद्यारहित स्त्रियांशी विवाह करतात त्यांना सुख मिळत नाही. जो पुरुष कामरहित स्त्रीबरोबर किंवा जी स्त्री कामरहित पुरुषाबरोबर विवाह करते तेथेही सुख मिळत नाही. त्यामुळे परस्पर प्रेमयुक्त असणाऱ्या समान स्त्री-पुरुषांनी विवाह करावा. तेथेच मंगल होते. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Passion and desire arises in me like the waters of a river held up but rising in flood from here, there, anywhere, who knows? Hiding but not suppressing the passion, the amorous wife betakes to the husband breathing deep and calm and smothers him in embrace.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The matching couple should be put into wedlock.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Agarstya is the best man among those who do not go astray from the path of righteousness. He says strong passions from whatever cause comes upon me like a bull making noise, whilst engaged in prayer, would suppress passion (like a controlled canal of a river). Lopaamudra is the woman who conceals herself from the public gaze and then expresses her love. She approaches her husband; the impatient female thus upholds or pleases the firm and and resolute man.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who marry the women who are devoid of knowledge, patience and other virtues, do not enjoy happiness. If a man marries a girl without her consent or a girl marries a man, without his consent there can not be any happiness in such a co-habitation. Therefore, those who love each other and are of matching merits and temperament only should marry. Then only they can enjoy happiness and pleasures.
Foot Notes
(नदस्य) अव्यक्तशब्दं कुर्वतो वृषभादेः = Of the buIl etc. making indistinct sound or bellowing. (लोपामुद्रा ) लोप एव आमुद्रा समन्तात् प्रत्ययकारिणी यस्याः सा = A woman who take delight when away from the public gaze or privately. ( धयति ) आधरति — Upholds or pleases.
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