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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 179 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 179/ मन्त्र 6
    ऋषिः - लोपमुद्राऽगस्त्यौ देवता - दम्पती छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒गस्त्य॒: खन॑मानः ख॒नित्रै॑: प्र॒जामप॑त्यं॒ बल॑मि॒च्छमा॑नः। उ॒भौ वर्णा॒वृषि॑रु॒ग्रः पु॑पोष स॒त्या दे॒वेष्वा॒शिषो॑ जगाम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒गस्त्यः॑ । खन॑मानः । ख॒नित्रैः॑ । प्र॒ऽजाम् । अप॑त्यम् । बल॑म् । इ॒च्छमा॑नः । उ॒भौ । वर्णौ॑ । ऋषिः॑ । उ॒ग्रः । पु॒पो॒ष॒ । स॒त्याः । दे॒वेषु । आ॒ऽशिषः॑ । ज॒गा॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अगस्त्य: खनमानः खनित्रै: प्रजामपत्यं बलमिच्छमानः। उभौ वर्णावृषिरुग्रः पुपोष सत्या देवेष्वाशिषो जगाम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अगस्त्यः। खनमानः। खनित्रैः। प्रऽजाम्। अपत्यम्। बलम्। इच्छमानः। उभौ। वर्णौ। ऋषिः। उग्रः। पुपोष। सत्याः। देवेषु। आऽशिषः। जगाम ॥ १.१७९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 179; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सन्तानोत्पत्तिविषयमाह ।

    अन्वयः

    यथा खनित्रैर्भूमिं खनमानः कृषीवलो धान्यादिकं प्राप्य सुखी जायते तथा ब्रह्मचर्येण विद्यया प्रजामपत्यं बलमिच्छमानोऽगस्त्यः ऋषिरुग्रो विद्वान् पुपोष देवेषु सत्या आशिषो जगाम तथोभौ वर्णौ स्त्रीपुरुषौ भवेताम् ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (अगस्त्यः) ये धर्मादन्यत्र न गच्छन्ति तेऽगस्तयस्तेषु साधुः (खनमानः) खनमानो भूमिमवदारयन् (खनित्रैः) खननसाधनैः (प्रजाम्) राज्यम् (अपत्यम्) सन्तानम् (बलम्) (इच्छमानः) (उभौ) (वर्णौ) परस्परेण व्रियमाणौ सुन्दरस्वरूपौ (ऋषिः) वेदार्थवेत्ता (उग्रः) तेजस्वी (पुपोष) पुष्णाति (सत्याः) सत्सु कर्मसु साधवः (देवेषु) विद्वत्सु कामेषु वा (आशिषः) सिद्धा इच्छाः (जगाम) गच्छति ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा कृषीवलाः सुक्षेत्रेषु सुबीजानि उप्त्वा फलवन्तो जायन्ते। यथा च धार्मिका विद्वांसो सत्यान् कामान् प्राप्नुवन्ति तथा ब्रह्मचर्य्येण यौवनं प्राप्य स्वेच्छया विवाहं कुर्युस्ते सुक्षेत्रोत्तमबीजसम्बन्धवत्फलवन्तो भवन्ति ॥ ६ ॥अत्र विद्वत्स्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥इत्येकोनाशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गस्त्रयोविंशोऽनुवाकश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब सन्तानोत्पत्तिविषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जैसे (खनित्रैः) कुद्दाल, फाँवड़ा, कसी आदि खोदने के साधनों से भूमि को (खनमानः) खोदता हुआ खेती करनेवाला धान्य आदि अनाज पाके सुखी होता है वैसे ब्रह्मचर्य और विद्या से (प्रजाम्) राज्य (अपत्यम्) सन्तान और (बलम्) बल की (इच्छमानः) इच्छा करता हुआ (अगस्त्यः) निरपराधियों में उत्तम (ऋषिः) वेदार्थवेत्ता (उग्रः) तेजस्वी विद्वान् (पुपोष) पुष्ट होता है (देवेषु) और विद्वानों में वा कामों में (सत्याः) अच्छे कर्मों में उत्तम सत्य और (आशिषः) सिद्ध इच्छाओं को (जगाम) प्राप्त होता है वैसे (उभौ) दोनों (वर्णौ) परस्पर एक दूसरे का स्वीकार करते हुए स्त्री-पुरुष होवें ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे कृषि करनेवाले अच्छे खेतों में उत्तम बीजों को बोय कर फलवान् होते हैं और जैसे धार्मिक विद्वान् जन सत्य कामों को प्राप्त होते हैं वैसे ब्रह्मचर्य से युवावस्था को प्राप्त होकर अपनी इच्छा से विवाह करें वे अच्छे खेत में उत्तम बीज सम्बन्धी के समान फलवान् होते हैं ॥ ६ ॥इस सूक्त में विदुषी स्त्री और विद्वान् पुरुषों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ उनासीवाँ सूक्त बाईसवाँ वर्ग और तेईसवाँ अनुवाक समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    दोनों वर्णों [ ब्रह्म+क्षत्र ] का पोषण

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र के अनुसार कामना को जीकर सोम का पान करनेवाला अगस्त्यः कुटिलता का संहार करनेवाला मनुष्य (खनित्रैः) = कुदालों से (खनमान:) = खोदता है अर्थात् श्रमशील बनता है। इस श्रमशीलता के कारण ही तो वस्तुतः वासनाओं का शिकार नहीं होता। यह अगस्त्य (प्रजाम्) = अपने प्रकृष्ट विकास को, (अपत्यम्) = सन्तान को तथा (बलम्) = बल को (इच्छमानः) = चाहता हुआ होता है। विकास, उत्तम सन्तान व बल-सभी का आधार सोम-रक्षण ही है। २. यह अगस्त्य (ऋषिः) = मन्त्रद्रष्टा, तत्त्वज्ञानी व (उग्राः) = तेजस्वी होता हुआ अपने जीवन में (उभौ वर्णौ) = ब्राह्मण व क्षत्रिय इन दोनों ही वर्णों का (पुपोष) = पोषण करता है- 'इदं मे ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्नुताम्'। मस्तिष्क के दृष्टिकोण से यह 'ऋषि' बनता है तो शरीर के दृष्टिकोण से 'उग्र' । ३. यह अगस्त्य (देवेषु) = देवों के विषय में (सत्याः आशिष:) = उत्तम इच्छाओं को (जगाम) = प्राप्त होता है । यह दिव्य गुणों को प्राप्त करने की ही कामना करता है। इस प्रकार इसकी इच्छाएँ सत्य ही होती हैं, असत्य नहीं । -

    भावार्थ

    भावार्थ- कामात्मा ही न बन जाएँ तो हमारे जीवन का उत्तम विकास होता है, हम तत्त्वद्रष्टा व तेजस्वी बनते हैं ।

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    विषय

    गृहस्थ पुरुर्ष के परस्पर कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( खनित्रैः खनमानः ) खोदने के साधन कुद्दाल, हल आदि से खेत को खोदता हुआ किसान या माली जिस प्रकार क्षेत्र से उत्तम फल प्राप्त करता है उसी प्रकार ( अगस्त्यः ) सैकड़ों दुर्गम अविचल संकटों को दूर फेंक देने में समर्थ, अथवा अप्रिय, कुवचनादि अपराधों को दूर करने वाला, क्षमाशील पुरुष, ( खनित्रैः ) अवदारण अर्थात् भेदन करने वाले, संकटों को तोड़ने वाले उपायों से ( खनमानः ) खनन करता हुआ, विघ्नों को दूर करता हुआ पुरुष ( प्रजाम् ) उत्तम प्रजा ( अपत्यम् ) उत्तम पुत्र, और ( बलम् इच्छमानः ) बल को प्राप्त करना चाहता हुआ ( ऋषिः ) विद्वान् ( उभौ वर्णो ) एक दूसरे के वरण करने वाले सुन्दर वर वधू दोनों को ( पुपोष) पुष्ट करता है और वह (देवेषु) ज्ञान धन के देने वाले उत्तम और विद्वानों के आश्रय पर ही ( सत्या ) सच्ची २ आशा और कामनाओं को ( जगाम ) प्राप्त करता है । इति द्वाविंशो वर्गः ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लोपामुद्राऽगस्त्यौ ऋषिः ॥ दम्पती देवता ॥ छन्दः– १, ४ त्रिष्टुप् । २, ३ निचृत त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ५ निचृदबृहती ॥ षडर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. असे शेतकरी शेतात उत्तम बीज पेरून धान्य प्राप्त करतात व जसे धार्मिक विद्वान सत्य कर्म करतात तसेच स्त्री-पुरुषांनी ब्रह्मचर्याने युवावस्था प्राप्त करून आपल्या इच्छेने विवाह केल्यास चांगल्या शेतात उत्तम बीज प्राप्त झाल्याप्रमाणे फलीभूत होतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agastya, the sagely man of vision, brilliance and resolution never goes astray. Digging into the mysteries of life with the instruments of intelligence and insight he longs for strength and children and a controlled family and community. He marries by choice and looks after and promotes the duad, both sexes in the community, and thus attains complete self-fulfilment among noble people dedicated to truth and Divinity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Something about the prociation is told here.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    A farmer digging the earth with proper implements becomes happy on having high yields of the crops. Likewise an Agastya-the best man among those who do not go astray from the path of righteousness, and desire good State, progeny and strength, by the observance of Brahmacharya (continence) and acquisition of knowledge like a venerable and splendorous sage, becomes quite strong. Such a person fulfils his genuine desires among the enlightened truthful persons. Both husbands and wives who choose each other for marriage union should be like them (Agastya and Lopamudra).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Here a simile is portrayed. The farmers get crops by sowing seeds in good field. Likewise righteous and learned persons obtain the fulfilment of their noble desires. The persons having attained youth after the observance af Brahmacharya marry matches of their choice, succeeded in getting good progeny like the combination of good soil and seeds.

    Foot Notes

    (अगस्त्यः) ये धर्मात् अन्यत्र न गच्छन्ति, ते अगस्तयः, तेषु साधु = The best among those who do not go astray from the path of righteousness. परस्परेण व्रियमाणौ सुन्दरस्वरूपौ = Beautiful husbands and wives who choose each other for marriage. Prof. Wilson a Griffith and other translators take the words Agastya and Lopamudra as the names of particular persons. I fact, it denotes certain attributes as interpreted by Rishi Dayananda above.

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