ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 86/ मन्त्र 9
यू॒यं तत्स॑त्यशवस आ॒विष्क॑र्त महित्व॒ना। विध्य॑ता वि॒द्युता॒ रक्षः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयू॒यम् । तत् । स॒त्य॒ऽश॒व॒सः॒ । आ॒विः । क॒र्त॒ । म॒हि॒ऽत्व॒ना । विध्य॑त । वि॒ऽद्युता॑ । रक्षः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यूयं तत्सत्यशवस आविष्कर्त महित्वना। विध्यता विद्युता रक्षः ॥
स्वर रहित पद पाठयूयम्। तत्। सत्यऽशवसः। आविः। कर्त। महिऽत्वना। विध्यत। विऽद्युता। रक्षः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 86; मन्त्र » 9
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेतरमनुष्यैस्ते सभाध्यक्षादयो मनुष्याः कथं प्रार्थनीया इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
हे सत्यशवसः सभाद्यध्यक्षादयो ! यूयं महित्वना तत्काममाविष्कर्त येन विद्युता रक्षो विध्यता मया सर्वे कामाः प्राप्येरन् ॥ ९ ॥
पदार्थः
(यूयम्) (तत्) (सत्यशवसः) नित्यं बलं येषान्तत्सम्बुद्धौ (आविः) प्रकटीभावे (कर्त्त) कुरुत। विकरणस्यात्र लुक्। (महित्वना) महिम्ना (विध्यता) ताडनकर्त्रा (विद्युता) विद्युन्निष्पन्नेनास्त्रसमूहेन (रक्षः) दुष्टकर्मकारी मनुष्यः ॥ ९ ॥
भावार्थः
मनुष्यैः परस्परं प्रीत्या पुरुषार्थेन विद्याः प्राप्य दुष्टस्वभावगुणं मनुष्यं निवार्य कामसिद्धिर्नित्यं कार्येति ॥ ९ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब और मनुष्यों को उन सभाध्यक्ष आदि मनुष्यों से कैसे प्रार्थना करनी चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
हे (सत्यशवसः) नित्यबलयुक्त सभाद्यध्यक्ष आदि सज्जनो ! (यूयम्) तुम (महित्वना) उत्तम यश से (तत्) उस काम को (आविः) प्रकट (कर्त्त) करो कि जिससे (विद्युता) बिजुली के लोहे से बनाये हुए शस्त्र वा आग्नेयादि अस्त्रों के समूह से (रक्षः) खोटे काम करनेवाले दुष्ट मनुष्यों को (विध्यता) ताड़ना देते हुए मेरी सब कामना सिद्ध हों ॥ ९ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिए कि परस्पर प्रीति और पुरुषार्थ के साथ विद्युत् आदि पदार्थविद्या और अच्छे-अच्छे गुणों को पाकर दुष्ट स्वभावी और दुर्गुणी मनुष्यों को दूर कर नित्य अपनी कामना सिद्ध करें ॥ ९ ॥
विषय
रक्षो = वेधन
पदार्थ
१. हे (सत्यशवसः) = सत्य के बलवाले मरुतो ! (यूयम्) = आप (महित्वना) = अपनी महिमा से (तत्) = उस शक्ति को (आविष्कर्त) = प्रकट करो जिससे कि (विद्युता) = विशिष्ट दीप्ति से (रक्षः) = राक्षसी भावना को (विध्यत) = विद्ध करो । ज्ञान के द्वारा राक्षसी भावनाओं को हमसे दूर करो । २. प्राणसाधक पुरुष की बुद्धि सूक्ष्म होती है, उसका ज्ञान दीप्त होता है और उस दीप्त ज्ञान में सब राक्षसी भावनाएँ जल जाती हैं । प्राणशक्ति शरीर को ही स्वस्थ नहीं बनाती, वह मन व मस्तिष्क को भी निर्मल व दीप्त बनाती है ।
भावार्थ
भावार्थ = प्राणसाधना से एक विशिष्ट ज्ञानदीप्ति उत्पन्न होती है, जिस दीप्ति में सब राक्षसी वृत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं ।
विषय
अध्यात्म में प्राणों का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( सत्यशवसः ) सत्य ज्ञान वाले और नित्य बल वाले, सदा हृष्ट पुष्ट पुरुषो ! हे वीर जनो ! ( महित्वना ) अपने महान् सामर्थ्य से ( यूयम् ) तुम लोग ( तत् ) उस पूर्वोक्त काम अर्थात् अभिलाषा करने योग्य पुरुषार्थ का (आविष्कर्त) प्रकट कर, सब को उस का देश करो । और ( रक्षः ) कामना योग्य पदार्थों की प्राप्ति में विघ्नकारी पुरुषों और पदार्थों को तथा बाधक कारणों को ( विद्युता ) उत्तम प्रकाश युक्त ज्ञान और विशेष दीप्ति वाले आग्नेय शस्त्रास्त्र तथा विद्युत् और ज्ञान, के प्रयोग से ( विध्यत ) विनाश करो। और इष्ट की प्राप्ति करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगण ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः–१, ४, ८, ९ गायत्री । २, ३, ७ पिपीलिका मध्या निचृद्गायत्री । ५, ६, १० निचृद्गायत्री ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
विषय (भाषा)- अब अन्य मनुष्यों के द्वारा उन सभाध्यक्ष आदि मनुष्यों से कैसे प्रार्थना करनी चाहिये, यह विषय इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे सत्यशवसः सभाद्यध्यक्षादयः ! यूयं महित्वना तत् कामम् आवि कर्त्त येन विद्युता रक्षः विध्यता मया सर्वे कामाः प्राप्येरन् ॥९॥
पदार्थ
पदार्थः- हे (सत्यशवसः) नित्यं बलं येषान्तत्सम्बुद्धौ=नित्य बलवाले, (सभाद्यध्यक्षादयः)=सभा आदि के अध्यक्ष आदि ! (यूयम्)=तुम सब, (महित्वना) महिम्ना=महिमा से, (तत्)=उस, (कामम्)= कामना को, (आविः) प्रकटीभावे=प्रकट, (कर्त्त) कुरुत=करते हो, (येन)=जिससे, (विद्युता) विद्युन्निष्पन्नेनास्त्रसमूहेन=विद्युत् के द्वारा कार्य करनेवाले अस्त्रों के समूह से, (विध्यता) ताडनकर्त्रा= ताडन करनेवाले और, (रक्षः) दुष्टकर्मकारी मनुष्यः= दुष्ट कर्मों को करनेवाले मनुष्य, (मया)=मेरी, (सर्वे)=समस्त, (कामाः)=कामनाओं को, (प्राप्येरन्)=प्राप्त करायें, अर्थात् पूर्ण करें ॥९॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा परस्पर प्रीति और पुरुषार्थ से साथ विद्या प्राप्त करके, दुष्ट स्वभाव और दुर्गुणी मनुष्यों को दूर करके, नित्य अपनी कामनाओं की सिद्ध करनी चाहिए ॥९॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (सत्यशवसः) नित्य बलवाले (सभाद्यध्यक्षादयः) सभा आदि के अध्यक्ष आदि ! (यूयम्) तुम सब (महित्वना) [अपनी] महिमा से (तत्) उस (कामम्) कामना को (आविः) प्रकट (कर्त्त) करते हो, (येन) जिस (विद्युता) विद्युत् के द्वारा कार्य करनेवाले अस्त्रों के समूह से (विध्यता) ताडन करनेवाले और (रक्षः) दुष्ट कर्मों को करनेवाले मनुष्य, (मया) मेरी (सर्वे) समस्त (कामाः) कामनाओं को (प्राप्येरन्) प्राप्त करायें, अर्थात् पूर्ण करें ॥९॥
संस्कृत भाग
यू॒यम् । तत् । स॒त्य॒ऽश॒व॒सः॒ । आ॒विः । क॒र्त॒ । म॒हि॒ऽत्व॒ना । विध्य॑त । वि॒ऽद्युता॑ । रक्षः॑ ॥ विषयः- अथेतरमनुष्यैस्ते सभाध्यक्षादयो मनुष्याः कथं प्रार्थनीया इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैः परस्परं प्रीत्या पुरुषार्थेन विद्याः प्राप्य दुष्टस्वभावगुणं मनुष्यं निवार्य कामसिद्धिर्नित्यं कार्येति ॥९॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी परस्पर प्रेम व पुरुषार्थाने विद्युत इत्यादी पदार्थविद्या व उत्तम गुणांचा स्वीकार करून दुष्ट व दुर्गुणी माणसांना दूर करून नित्य आपली कामना सिद्ध करावी. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Maruts, men of real courage and power, with your honour and reputation and technological weapons, let that power and force come into play which would fix and break down the forces of crime and evil from the social scene.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the Maruts (Presidents of the assemblies etc.) be requested by other men is taught in the ninth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O ye men of true strength, the Presidents of the assemblies etc. with your might and glory manifest that noble desire in us, so that striking Rakshah (wicked people) with weapons made of electricity etc. we may fulfil all our noble desires.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(विद्युता) विद्युनिष्पन्नेनास्त्रसमू हेन = with the band of weapons made of electricity.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should acquire all knowledge with mutual love and labour, should drive away all wicked people and fulfil their noble desires.
Subject of the mantra
Now, how other human beings should pray to those Presidents of the Assembly et cetera? This matter is mentioned in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O!(satyaśavasaḥ)=ever-powerful, (sabhādyadhyakṣādayaḥ)= President of the Assembly etc., (yūyam) =all of you, (mahitvanā)=by glory, [apanī] =own, (tat) =that, (kāmam) =to desire, (āviḥ)=express, (kartta)=do, (yena) =by which, (vidyutā) =from a group of missiles that work by yhunder, (vidhyatā) =punishers and, (rakṣaḥ)=people who commit evil deeds, (mayā) =my, (sarve) =all, (kāmāḥ) =to desires, (prāpyeran) get attained, i.e. fulfill them.
English Translation (K.K.V.)
O ever-powerful President of the Assembly etc.! All of you, with your glory, express that desire that the people who punish with the help of group of missiles working through thunder and do evil deeds, you should get attained all my wishes, that is, fulfill them.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
Humans should daily fulfill their desires by attaining knowledge through mutual love and efforts and by removing evil nature and evil-doing people
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