ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 162/ मन्त्र 2
ऋषिः - रक्षोहा ब्राह्मः
देवता - गर्भसंस्त्रावे प्रायश्चित्तम्
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यस्ते॒ गर्भ॒ममी॑वा दु॒र्णामा॒ योनि॑मा॒शये॑ । अ॒ग्निष्टं ब्रह्म॑णा स॒ह निष्क्र॒व्याद॑मनीनशत् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । ते॒ । गर्भ॑म् । अमी॑वा । दुः॒ऽनामा॑ । योनि॑म् । आ॒ऽशये॑ । अ॒ग्निः । तम् । ब्रह्म॑णा । स॒ह । निः । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् । अ॒नी॒न॒श॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्ते गर्भममीवा दुर्णामा योनिमाशये । अग्निष्टं ब्रह्मणा सह निष्क्रव्यादमनीनशत् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । ते । गर्भम् । अमीवा । दुःऽनामा । योनिम् । आऽशये । अग्निः । तम् । ब्रह्मणा । सह । निः । क्रव्यऽअदम् । अनीनशत् ॥ १०.१६२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 162; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यः) जो (अमीवा) रोगभूत (दुर्णामा) पापरूप कृमि (ते गर्भम्) तेरे गर्भ को (योनिम्) योनि को (आशये) प्राप्त हुआ है, (तं क्रव्यादम्) उस मांसभक्षक को (ब्रह्मणा सह) उदुम्बर के योग से (निर्-अनीनशत्) चित्रक नितान्त नष्ट कर देता है ॥२॥
भावार्थ
स्त्री के योनि व गर्भ के क्रिमिरोग के नष्ट करने का एकमात्र साधन उदुम्बर के साथ चित्रक ही है ॥२॥
विषय
क्रव्याद- क्रिमि-संहार
पदार्थ
[१] (यः) = जो (अमीवा) = रोग (ते) = तेरे (गर्भम्) = गर्भ - स्थान में (आशये) = निवास करता है और जो (दुर्णामा) = अशुभ नामवाला (अर्शस्) = नामक रोग [बवासीर] (योनिम्) = रेतस् के आधान स्थान में निवास करता है (तम्) = उसको (अग्निः) = यह कुशल ज्ञानी वैद्य (नि: अनीनशत्) = बाहर करके नष्ट कर दे। [२] यह ज्ञानी वैद्य (ब्रह्मणा सह) = ज्ञान के साथ रोग को पूरी तरह समझकर नष्ट करनेवाला हो। (क्रव्यादम्) = इस मांस को खानेवाले [मांसाशिनं सा० ] क्रिमि को यह वैद्य नष्ट कर दे। इन क्रव्याद क्रिमियों को नष्ट करने से ही रोग का उन्मूलन होता है।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञानी वैद्य मांस को खा जानेवाले क्रिमियों को नष्ट करके गर्भगत व योनिगत विकारों को नष्ट करता है ।
विषय
गर्भ संस्राव में प्रायश्चित्त सूक्त। गर्भनाशक कारणों के नाश करने के उपायों का उपदेश।
भावार्थ
(यः) जो (दुर्नामा) बुरे रूप वाला (अमीवा) रोग (ते गर्भम् योनिम् आशये) तेरे गर्भ और योनि भाग में गुप्त रूप से है (अग्निः) ज्ञानी पुरुष वा अग्नि नाम ओषधि (तं क्रव्यादम्) उस मांस खाने वाले [ पेराज़ाईट् ] रोगकारक कीटाणु को (ब्रह्मणा सह) ज्ञान पूर्वक वा बल से (निः अनीनशत्) सर्वथा नष्ट करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषीरक्षोदा ब्राह्मः॥ देवता—गर्भसंस्रावे प्रायश्चित्तम्॥ छन्द:- १, २, निचृदनुष्टुप्। ३, ५, ६ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यः-ते गर्भम्) यः खलु तव गर्भम् (अमीवा दुर्णामा) रोगभूतो दुर्णामा कृमिः (योनिम्-आशये) योनिं प्राप्नोति-आक्रान्तो भवति (तं क्रव्यादम्) तं मांसभक्षकम् (ब्रह्मणा सह) ब्रह्मवृक्षेण-उदुम्बरेण तद्योगेन सह (निर्-अनीनशत्) नितान्तं नाशयति ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The acute infection that has entered your womb in the reproductive system and consumes your foetus, let Agni, ‘chitraka’, in combination with Brahma, ‘udumbara’, according to the specific formula, destroy and eliminate.
मराठी (1)
भावार्थ
स्त्रीच्या योनी व गर्भात कृमीरोग नष्ट करण्याचे एक मात्र साधन औदुंबर व चित्रकच आहे. ॥२॥
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