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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 162 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 162/ मन्त्र 6
    ऋषिः - रक्षोहा ब्राह्मः देवता - गर्भसंस्त्रावे प्रायश्चित्तम् छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यस्त्वा॒ स्वप्ने॑न॒ तम॑सा मोहयि॒त्वा नि॒पद्य॑ते । प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । त्वा॒ । स्वप्ने॑न । तम॑सा । मो॒ह॒यि॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते । प्र॒ऽजाम् । यः । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒तः । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते । प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । त्वा । स्वप्नेन । तमसा । मोहयित्वा । निऽपद्यते । प्रऽजाम् । यः । ते । जिघांसति । तम् । इतः । नाशयामसि ॥ १०.१६२.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 162; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः-त्वा) हे रुग्णा देवी ! जो रोगकृमि तुझे (तमसा स्वप्नेन) अन्धकार-रूप स्वप्नसदृश मूर्च्छाप्रकार से (मोहयित्वा) मूर्छित करके स्मृतिरहित करके (निपद्यते) प्राप्त होता है (यः) जो (ते) तेरी (प्रजाम्) सन्तति को (जिघांसति) मारना चाहता है, (तम्) उसे (इतः) इस रोगी स्त्री से पृथक् कर (नाशयामसि) नष्ट करते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    स्त्री को अपस्मार हिस्टीरिया आदि करनेवाला रोगकृमि आक्रान्ता है, जो गर्भाशय में गर्भशिशु को मार देता है, उसे चिकित्सा से नष्ट करना चाहिए ॥६॥

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    विषय

    अचेतनावस्था में भोग निषेध

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (त्वा) = तुझे (स्वप्नेन तमसा) = स्वप्नावस्था में ले जाने वाले तमोगुणी पदार्थों के प्रयोग से (मोहयित्वा) = मूढ व अचेतन बनाकर (निपद्यते) = भोग के लिये प्राप्त होता है और इस प्रकार (य:) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = प्रजा को, गर्भस्थ सन्तान को (जिघांसति) = नष्ट करना चाहता है, (तम्) = उसको (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम दूर करते हैं । [२] गर्भिणी को अचेतनावस्था में ले जाकर भोग-प्रवृत्त होना गर्भस्थ बालक के उन्माद या विनाश का कारण हो सकता है। सो वह सर्वथा हेय है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- पत्नी को अचेतनावस्था में उपयुक्त करना गर्भस्थ बालक के लिये अत्यन्त घातक होता है । सम्पूर्ण सूक्त उत्तम सन्तति को प्राप्त करने के लिये आवश्यक बातों का निर्देश करता है। अगले सूक्त में अंग-प्रत्यंग से रोगों के उद्धर्हण करनेवाले का उल्लेख है। रोगों के उद्धर्हण को करनेवाला यह 'विवृहा' है । ज्ञानी होने से यह 'काश्यप' है। यह कहता है कि-

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    विषय

    गर्भ संस्राव में प्रायश्चित्त सूक्त। गर्भनाशक कारणों के नाश करने के उपायों का उपदेश।

    भावार्थ

    (यः) जो (त्वा) तुझे (स्वप्नेन) निद्रा से वा अन्धकार से, वा शोक से (मोहयित्वा) मोह कर (निपद्यते) तेरे पास आता है, (यः ते प्रजां जिघांसति) जो तेरी प्रजा को नष्ट करना चाहता है (तम् इतः नाशयामसि) उसको हम यहां से नष्ट करें। इति विंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषीरक्षोदा ब्राह्मः॥ देवता—गर्भसंस्रावे प्रायश्चित्तम्॥ छन्द:- १, २, निचृदनुष्टुप्। ३, ५, ६ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः-त्वा) हे रुग्णे ! यो रोगकृमिस्त्वाम् (तमसा स्वप्नेन) अन्धकाररूपेण स्वप्नेनेव मूर्च्छनेन (मोहयित्वा निपद्यते) मूर्च्छितः स्मृतिरहितः कृत्वा प्राप्नोति (यः ते प्रजाम्) यश्च तव सन्ततिम् (जिघांसति) हन्तुमिच्छति (तम्-इतः-नाशयामसि) तं खल्वस्या रुग्णाया नाशयामः ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whoever or whatever approaches you either by creating dreams of reality or in the state of sleep or under veil of darkness or by hypnosis, and hurts or destroys your progeny, that we eliminate from here.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    स्त्रीला अपस्मार, हिस्टोरिया इत्यादी करणारा रोगकृमी आक्रान्ता आहे. जो गर्भाशयात शिशुगर्भाला मारतो. त्याला चिकित्सेने नष्ट केले पाहिजे. ॥६॥

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