ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 22/ मन्त्र 13
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒स्मे ता त॑ इन्द्र सन्तु स॒त्याहिं॑सन्तीरुप॒स्पृश॑: । वि॒द्याम॒ यासां॒ भुजो॑ धेनू॒नां न व॑ज्रिवः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मे इति॑ । ता । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । स॒न्तु॒ । स॒त्या । अहिं॑सन्तीः । उ॒प॒ऽस्पृषः॑ । वि॒द्याम॑ । यासा॑म् । भुजः॑ । धे॒नू॒नाम् । न । व॒ज्रि॒ऽवः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मे ता त इन्द्र सन्तु सत्याहिंसन्तीरुपस्पृश: । विद्याम यासां भुजो धेनूनां न वज्रिवः ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मे इति । ता । ते । इन्द्र । सन्तु । सत्या । अहिंसन्तीः । उपऽस्पृषः । विद्याम । यासाम् । भुजः । धेनूनाम् । न । वज्रिऽवः ॥ १०.२२.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 22; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वज्रिवः इन्द्र) हे ओजस्वी परमात्मन् या राजन् ! (ते) तेरे (उपस्पृशः) दयास्पर्श-दयादृष्टियाँ (अहिंसन्तीः) न दुःख देनेवाली कल्याणकारी हैं (ताः अस्मे सत्याः सन्तु) वे हमारे लिए सफल हों (यासां भुजः) जिसके भोग (विद्याम) हम प्राप्त करें (धेनूनां न) गौवों की दुग्धधारा के समान ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा या राजा के दयासम्पर्क या दयादृष्टियाँ उपासकों या प्रजाओं के लिए कल्याणकारी हुआ करती हैं। वे जीवन में सफलता को लाती हैं और गौवों से प्राप्त होनेवाले दूध की भाँति हैं ॥१३॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1129
ओ३म् अ॒स्मे ता त॑ इन्द्र सन्तु स॒त्याहिं॑सन्तीरुप॒स्पृश॑: ।
वि॒द्याम॒ यासां॒ भुजो॑ धेनू॒नां न व॑ज्रिवः ॥
ऋग्वेद 10/22/13
प्रार्थना अपने अभीष्ट की
प्रभु तुमसे करते रहें
हिन्सा रहित कल्याण के पथ पर
सदा ही चलते रहें
स्वार्थ रहित निष्काम कर्म की
प्रार्थना तुमसे हम करते
अन्त:करण की प्रणत प्रार्थना
तुम्हरे हृदय तक पहुँच सके
ऐसी कृपा करो सत्य प्रार्थना
भी क्रियान्वित होती रहे
हिन्सा रहित कल्याण के पथ पर
सदा ही चलते रहें
जैसे गोस्वामी धेनु से
अमृत दुग्ध को प्राप्त करें
प्रमित प्रार्थनाएँ धेनु सम
हमें अभीष्ट को दिया करें
करें ना हम कोई अनिष्ट
अनैतिक स्वार्थ लिए
हिन्सा रहित कल्याण के पथ पर
सदा ही चलते रहें
प्रार्थना प्रशस्त करते करते
कर्म प्रशस्त भी किया करें
सात्विक भोग मिले जो तुमसे
याज्ञिक दान भी किया करें
वज्रवाले इन्द्र हरि !
हमें हिन्सा रहित करें
हिन्सा रहित कल्याण के पथ पर
सदा ही चलते रहें
प्रार्थना अपने अभीष्ट की
प्रभु तुमसे करते रहें
हिन्सा रहित कल्याण के पथ पर
सदा ही चलते रहें
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :- १२.९.२०२१ २३.३० रात्रि
राग :- आसावरी
गायनसमय दिनका द्वितीय प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
शीर्षक :- हे शक्तिमय ! 🎧भजन 708 वां
*तर्ज :- *
726-00127
अभीष्ट = चाहा हुआ, अभिप्रेत, अभिलषित वस्तु, मनोरथ
प्रणत = विनम्र,
गोस्वामी = ग्वाला
धेनु = गाय
अनिष्ट = अवांछित, अशुभ, अहित, अमङ्गल
प्रशस्त = श्रेष्ठ
वसु = बसाने वाले
Vyakhya
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
हे शक्तिमय !
हे प्रभु !हम तुमसे शुभ ही प्रार्थना कर रहे हैं। हम तुमसे जो प्रार्थनाएं कर रहे हैं वह सर्वथा हिंसा रहित हैं।वह किसी का अनिष्ट चाहने वाली नहीं हैं। वह सदा सबके सब प्रकार से भले की ही कामना करने वाली हैं। और यह प्रार्थना है हमारे सच्चे दिल से निकली हैं। निर्मल अंतः करण से निकली हैं। अतः यह अवश्य तुम्हें समीपता से स्पर्श करनेवाली हैं।तुम्हारे हृदय तक पहुंचने वाली हैं। हे परमेश्वर! हमारी ऐसी प्रार्थनाओं को तुम अवश्य सत्य करो।क्रियान्वित करो। जैसे दूध देने वाली 'धेनु' (गाय)से गोस्वामी दूध आदि नाना भोगों को प्राप्त करता है। उसी प्रकार हमारी यह प्रार्थना है ,धेनु होकर हमें भोगों से अभीष्ट फलों से परिपूरित कर दें। अपनी इन प्रार्थना शओं से हम जो जो क्रिया व फल रूप भोग चाह रहे हैं, उन्हें हम अवश्य प्राप्त कर लें, उसके हे वज्रवाले !हे शक्तिमय! तुमसे की गई और तुम से हिंसाहीन तथा हृदय स्पर्शी रूप से की गई यह हमारी प्रार्थनाएं कैसे निष्फल हो सकती हैं ?कैसे असत्य या अपूर्ण रह सकती हैं?
विषय
सत्य व अहिंसा
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (ताः) = वे (ते) = तेरी (उपस्पृशः) = उपासनाएँ (अस्मे) = हमारे लिये (सत्याः अहिंसन्ती:) = सत्य व अहिंसा वाली हों। आपकी उपासना से मेरे जीवन में सत्य व अहिंसा का वर्धन हो । दूसरे शब्दों में, प्रभु का उपासक सत्य व अहिंसा के व्रतवाला होता है । उसके जीवन में असत्य व हिंसा के लिये स्थान नहीं रहता । सत्य व अहिंसा ही उसके साध्य होते हैं। सत्य व अहिंसा को छोड़कर वह संसार की बड़ी से बड़ी वस्तु को लेने का विचार नहीं करता । [२] ये उपासनाएँ वे हैं (यासाम्) = जिनके (भुजः) = पालनों को (विद्याम) = हम उसी प्रकार प्राप्त करें, हे (वज्रिव:) = वज्रयुक्त हाथों वाले प्रभो ! (न) = जैसे (धेनूनाम्) = दुधार गौवों के (भुजः) = उपभोगों को हम प्राप्त करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - उपासना एक दुधार गौ के समान है, जिसका दूध हमारा उत्तम पालन करते हैं और हमारे जीवनों को सत्य व अहिंसा वाला बनाते हैं ।
विषय
उत्तम कर्मों के लक्षण।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (अस्मे ता) हमारी वे नाना स्तुतियें, प्रार्थनाएं अभिलाषा और यज्ञ-याग आदि क्रियाएं (ते उपस्पृशः) तेरे तक पहुंचने वाली होकर भी (सत्या) सत्य फलजनक, निश्छल, सज्जनों का कल्याण करने वाली और (अहिंसन्ती) किसी की हिंसा,पीड़ा, वध, आदि न करने वाली (सन्तु) हों। हे (वज्रिवः) शक्ति-शालिन ! (यासां) जिनके फलरूप (धेनूनां न) वाणियों वा गौओं के समान (भुजः विद्याम) नानां सुखजनक भोग्य पदार्थों को जानें और प्राप्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्रजापत्यो वा वसुकृद् वा वासुक्रः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १,४,८, १०, १४ पादनिचृद् बृहती। ३, ११ विराड् बृहती। २, निचृत् त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृत् त्रिष्टुष्। ७ आर्च्यनुष्टुप्। १५ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पन्चदशर्चं सूक्तम् ॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वज्रिवः-इन्द्र) हे ओजस्विन् परमात्मन् राजन् वा ! (ते) तव (उपस्पृशः) ता दयास्पर्शाः-दयादृष्टयः (अहिंसन्तीः) हिंसां न कुर्वन्त्यः कल्याणकारिण्यः (ताः-अस्मे सत्याः सन्तु) अस्मभ्यं सफला भवन्तु (यासां भुजः) यासां भागान् (विद्याम) प्राप्नुयाम (धेनूनां न) गवां दुग्धधारा इव ॥१३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, wielder of thunderbolt and justice, may all our prayers, adorations and yajakas, full of love and faith without violence, reaching you in service and worship, be true and fruitful, and may we be blest with pleasing fruits of these like delicious cow’s milk and delicacies.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा किंवा राजाची दया किंवा दयादृष्टी उपासक किंवा प्रजा यांच्यासाठी कल्याणकारी असते. ती जीवनात सफलता आणते व गायीपासून प्राप्त होणाऱ्या दुधाप्रमाणे भोग देते. ॥१३॥
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