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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 68/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अप॒ ज्योति॑षा॒ तमो॑ अ॒न्तरि॑क्षादु॒द्नः शीपा॑लमिव॒ वात॑ आजत् । बृह॒स्पति॑रनु॒मृश्या॑ व॒लस्या॒भ्रमि॑व॒ वात॒ आ च॑क्र॒ आ गाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । ज्योति॑षा । तमः॑ । अ॒न्तरि॑क्षात् । उ॒द्नः । शीपा॑लम्ऽइव । वातः॑ । आ॒ज॒त् । बृह॒स्पतिः॑ । अ॒नु॒ऽमृश्य॑ । व॒लस्य॑ । अ॒भ्रम्ऽइ॑व । वातः॑ । आ । च॒क्रे॒ । आ । गाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप ज्योतिषा तमो अन्तरिक्षादुद्नः शीपालमिव वात आजत् । बृहस्पतिरनुमृश्या वलस्याभ्रमिव वात आ चक्र आ गाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । ज्योतिषा । तमः । अन्तरिक्षात् । उद्नः । शीपालम्ऽइव । वातः । आजत् । बृहस्पतिः । अनुऽमृश्य । वलस्य । अभ्रम्ऽइव । वातः । आ । चक्रे । आ । गाः ॥ १०.६८.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 68; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ज्योतिषा-अन्तरिक्षात्-तमः-अप-आजत्) जैसे सूर्य अपने प्रकाश के द्वारा आकाश से अन्धकार को दूर हटाता है, तथा (वातः-उद्गः-शीपालम्-इव) प्रबल वायु जैसे पानी के शैवाल-काई को दूर हटाता है-पृथक् करता है, वैसे ही (बृहस्पतिः) महान् ब्रह्माण्ड का पालक वेद का स्वामी परमात्मा (वलस्य-अनुमृश्य) आवरक अज्ञान के भेदों-रहस्यों और स्थानों को विचार कर (वातः-अभ्रम्-इव-अप) प्रबल वायु जैसे बादलों के समूह को छिन्न-भिन्न कर देता है या नीचे की ओर प्रेरित करता है, वैसे ही (गाः-आ चक्रे) योग्य पात्रों में वेदवाणियों को विद्याओं को प्रकाशित करता है ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य आकाशस्थ अन्धकार को हटाता है, जैसे प्रबल वायु जल के ऊपर से शैवाल-काई को दूर करता है और मेघों से जल को बरसाता है, ऐसे ही परमात्मा तथा वेद का विद्वान् वेदज्ञान द्वारा लोगों के अज्ञान अन्धकार को हटाता है ॥५॥

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    विषय

    प्रकाश से अन्धकार के तुल्य वा वायु के झोके से सेवार के तुल्य अज्ञान के नाश का उपदेश।

    भावार्थ

    जिस प्रकार सूर्य (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमः) अन्धकार को (अप आजत्) दूर करता है और जिस प्रकार (वातः) तीव्र वायु (उद्नः) जल के पृष्ठ पर से (शीपालम् इव) सेवार या काई के आवरण को दूर करता है और जिस प्रकार (वातः) वेग वाला वायु (अभ्रम् इव अप) मेघ को दूर करता है उसी प्रकार (ज्योतिषा) ज्ञान के प्रकाश से (अन्तरिक्षात्) अपने शासन में स्थित शिष्य से (तमः) अज्ञान अन्धकार को (अप आजत्) दूर करता है। और (बृहस्पतिः) ज्ञानवाणी का पालक गुरु (वलस्य) आवरणकारी अज्ञान की मात्रा का (अनु-मृश्य) बलाबल विचार कर तदनुसार वह (आ चक्रे) वेदवाणियों का उपदेश करता है। (२) इसी प्रकार प्रभु साधक के अन्तःकरण से अज्ञान का आवरण दूर करता है। (३) इसी प्रकार प्रजा को घेरने वाले शत्रु को भी राजा दूर करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अयास्य ऋषिः॥ बृहस्पतिर्देवता। छन्दः— १, १२ विराट् त्रिष्टुप्। २, ८—११ त्रिष्टुप्। ३–७ निचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    अज्ञान के नाश का उपदेश

    पदार्थ

    जिस प्रकार सूर्य (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्ष से (ज्योतिषा) = प्रकाश द्वारा (तमः) = अन्धकार को (अप आजत्) = दूर करता है और जिस प्रकार (वातः) = तीव्र वायु (उद्नः) = जल के पृष्ठ पर से (शीपालम् इव) = सेवार या काई के आवरण को दूर करता है और जिस प्रकार (वातः) = वेगवाला वायु (अभ्रम् इव अप) = मेघ को दूर करता है, उसी प्रकार गुरु (ज्योतिषा) = ज्ञान के प्रकाश से (अन्तरिक्षात्) = अपने शासन में स्थित शिष्य से (तमः) = अज्ञानान्धकार को (अप आजत्) = दूर करता है और (बृहस्पतिः) = ज्ञानवाणी का पालक गुरु बलस्य आवरणकारी अज्ञान की मात्रा का (अनु-मृश्य) = बलाबल विचार कर तदनुसार (आ चक्रे) = वेदवाणियों का उपदेश करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- गुरु शिष्य के अज्ञानावरण को हटाकर ज्ञान से प्रकाशित करता है ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ज्योतिषा-अन्तरिक्षात्-तमः-अप-आजत्) यथा सूर्यः ‘लुप्तोपमालङ्कारः’ स्वप्रकाशेन आकाशादन्धकारमपगमयति “अज गतिक्षेपणयोः” [भ्वादिः] (वातः-उद्गः-शीपालम्-इव-‘अप-आजत्’) प्रबलो वायुः उदकस्य जलाशयस्य शीपालं शेवालं दूरीकरोति “शेवालं शेपालम्” [उणा० ४।३८] ‘शीङ् धातोश्छान्दसः पालन् प्रत्ययः’ तथैव (बृहस्पतिः) महतो ब्रह्माण्डस्य पालकः वेदस्य स्वामी परमात्मा (वलस्य-अनुमृश्य) आवरकस्याज्ञानस्य भेदान् स्थानानि वा विचार्य (वातः-अभ्रम्-इव-अप) प्रबलवायुर्यथा मेघमपगमयति नीचैः प्रेरयति तद्वत् (गाः-आ चक्रे) योग्येषु मन्त्रवाचो विद्याः-वा प्रकाशयति ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    As the sun removes darkness with light from the middle regions, as the wind removes the cover of moss and grass from the surface of water, so does Brhaspati, lord of the expansive universe, with deep thought, remove the cover of the darkness of nescience and sets in motion the dynamics of nature’s creativity in circuits of energy as the motions of the wind.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य आकाशातील अंधकार दूर करतो. जसा बलवान वायू जलावरील शेवाळ दूर करतो व मेघांद्वारे जलाचा वर्षाव करतो, तसाच परमात्मा व वेदाचा विद्वान वेदाद्वारे लोकांच्या अज्ञानांधकाराला दूर करतो. ॥५॥

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