ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 68/ मन्त्र 7
बृह॒स्पति॒रम॑त॒ हि त्यदा॑सां॒ नाम॑ स्व॒रीणां॒ सद॑ने॒ गुहा॒ यत् । आ॒ण्डेव॑ भि॒त्त्वा श॑कु॒नस्य॒ गर्भ॒मुदु॒स्रिया॒: पर्व॑तस्य॒ त्मना॑जत् ॥
स्वर सहित पद पाठबृह॒स्पतिः॑ । अम॑त । हि । त्यत् । आ॒सा॒म् । नाम॑ । स्व॒रीणा॑म् । सद॑ने । गुहा॑ । यत् । आ॒ण्डाऽइ॑व । भि॒त्त्वा । श॒कु॒नस्य॑ । गर्भ॑म् । उत् । उ॒स्रियाः॑ । पर्व॑तस्य । त्मना॑ । आ॒ज॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहस्पतिरमत हि त्यदासां नाम स्वरीणां सदने गुहा यत् । आण्डेव भित्त्वा शकुनस्य गर्भमुदुस्रिया: पर्वतस्य त्मनाजत् ॥
स्वर रहित पद पाठबृहस्पतिः । अमत । हि । त्यत् । आसाम् । नाम । स्वरीणाम् । सदने । गुहा । यत् । आण्डाऽइव । भित्त्वा । शकुनस्य । गर्भम् । उत् । उस्रियाः । पर्वतस्य । त्मना । आजत् ॥ १०.६८.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 68; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(बृहस्पतिः) महान् ब्रह्माण्ड या वेदवाणी का स्वामी परमात्मा (आसां-स्वरीणां) इन स्वरवाली वाणियों का (त्यत्-नाम-अमृतं हि गुहा सदने) वह ज्ञान जो बुद्धिरूप स्थान में या गृह में निहित है, उसे निश्चितरूप से जानता है (शकुनस्य-आण्डा इव भित्त्वा गर्भम्) पक्षी अण्डे को तोड़कर उसके मध्य से जैसे बच्चे को निकालते हैं, ऐसे ही (त्मना) परमात्मा स्वयं (पर्वतस्य) विद्याओं से पूर्ण वेद की (उस्रियाः) ज्ञानधाराओं को (उदाजत्) उद्घाटित करता है ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा वेदवाणियों के ज्ञान को आदि ऋषियों के अन्तःकरण में प्रकाशित और उनके मुख द्वारा उच्चारित कराता है। जैसे पक्षी अपने अण्डे में अपने बच्चे को प्रकट करता है, ऐसे वेद में से वह ज्ञान को प्रकट करता है ॥७॥
विषय
वेदवाणियों से गुह्य ज्ञान करने का उपाय। वेद से समस्त ब्रह्माण्डों के ज्ञान करने का उपदेश।
भावार्थ
(बृहस्पतिः) वेदवाणियों का पालक गुरु, विद्वान् एवं प्रभु (स्वरीणां) स्वरपूर्वक शब्दोच्चारण से गाने योग्य (आसां) इन वाणियों के (त्यत् नाम अमत) उस स्वरूप को भी जान लेता है, (यत् गुहा) जो कि गुहा अर्थात् बुद्धि के भीतर चिन्तनीय रूप से होता है। (यत्) जिस प्रकार (शकुनस्य आण्डा इव भित्वा) पक्षी के अण्डों को फोड़ कर गर्भरूप बच्चों को प्रकट करता है उसी प्रकार (बृहस्पतिः) वेद का विद्वान् के पुरुष, (त्मना) अपने आत्म सामर्थ्य से (शकुनस्य) महान् शक्तिशाली सब जगत् को उठा कर सञ्चालित करने वाले प्रभु के (आण्डा भित्त्वा) अनेक ब्रह्माण्डों का अवयवशः ज्ञान करके (पर्वतस्य) सब के पालक प्रभु के (गर्भम्) जगत् के ग्रहण या वश करने के सामर्थ्य को जाने, (उस्त्रिया) जलधाराओं के तुल्य वा गौओं के तुल्य ज्ञान-रसधारा प्रदान करने वाली वाणियों को (उत् आजत्) प्राप्त करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अयास्य ऋषिः॥ बृहस्पतिर्देवता। छन्दः— १, १२ विराट् त्रिष्टुप्। २, ८—११ त्रिष्टुप्। ३–७ निचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वेदवाणियों से गुह्य ज्ञान करने का उपाय
पदार्थ
(बृहस्पतिः) = वेदवाणियों का पालक विद्वान् (स्वरीणां) = स्वरपूर्वक शब्दोचारण से गाने योग्य (आसां) = इन वेदवाणियों के (त्यत् नाम अमत) = उस स्वरूप को भी जान लेता है, (यत् गुहा) = जो कि गुहा अर्थात् बुद्धि के भीतर चिन्तनीय रूप से होता है । (यत्) = जिस प्रकार (शकुनस्य आण्डा इव भित्वा) = पक्षी के अण्डों को फोड़कर गर्भरूप बच्चा प्रकट होता है उसी प्रकार (बृहस्पतिः) = वेद का विद्वान् (त्मना) = अपने आत्मसामर्थ्य से (शकुनस्य) = शक्तिशाली प्रभु के (आण्डा भित्त्वा) = अनेक ब्रह्माण्डों का (अवयवशः) = ज्ञान करके, (पर्वतस्य) = सबके पालक प्रभु के (गर्भम्) = जगत् के ग्रहण करने के सामर्थ्य को जाने और (उस्त्रिया) = जलधाराओं के तुल्य वा गौओं के तुल्य ज्ञान - रसधारा प्रदान करनेवाली वाणियों को (उत् आजत्) = प्राप्त करे ।
भावार्थ
भावार्थ - वेदज्ञ रहस्यमयी विद्या को बुद्धि से जाने ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(बृहस्पतिः) महतो ब्रह्माण्डस्य वेदवाचो वा पतिः परमात्मा (आसाम्-स्वरीणां त्यत्-नाम-अमृतं हि गुहा सदने) आसां स्वरवतीनां वाचां तत्तज्ज्ञानं यद् बुद्धिरूपे सदने वर्तते तज्जानाति हि (शकुनस्य आण्डा-इव भित्त्वा गर्भम्) पक्षिणोऽण्डे भवं गर्भं पक्षी भित्त्वा यथा निष्काषयति, तद्वत् (त्मना) स्वात्मना स्वयं (पर्वतस्य) विद्यापूर्णस्य वेदस्य (उस्रियाः) ज्ञानधाराः (उदाजत्) उद्घाटयति ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Brhaspati knows the name and identity of these voluble facts and processes of existence which are present but hidden in the deep womb of nature and which, radiating like rays of light and flowing like streams, grow and come into being as chicks on maturity break the bird’s egg and spring into full life.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा वेदवाणीचे ज्ञान ऋषींच्या अंत:करणात प्रकाशित करून त्यांच्या मुखाद्वारे उच्चारित करवितो. जसा पक्षी आपल्या अंड्यातून आपले पिलू बाहेर काढतो. तसे वेदाद्वारे तो ज्ञान प्रकट करतो. ॥७॥
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