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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 92/ मन्त्र 8
    ऋषिः - शार्यातो मानवः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    सूर॑श्चि॒दा ह॒रितो॑ अस्य रीरम॒दिन्द्रा॒दा कश्चि॑द्भयत॒ज तवी॑यसः । भी॒मस्य॒ वृष्णो॑ ज॒ठरा॑दभि॒श्वसो॑ दि॒वेदि॑वे॒ सहु॑रिः स्त॒न्नबा॑धितः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूरः॑ । चि॒त् । आ । ह॒रितः॑ । अ॒स्य॒ । री॒र॒म॒त् । इन्द्रा॑त् । आ । कः । चि॒त् । भ॒य॒ते॒ । तवी॑यसः । भी॒मस्य॑ । वृष्णः॑ । ज॒ठरा॑त् । अ॒भि॒ऽश्वसः॑ । दि॒वेऽदि॑वे । सहु॑रिः । स्त॒न् । अबा॑धितः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूरश्चिदा हरितो अस्य रीरमदिन्द्रादा कश्चिद्भयतज तवीयसः । भीमस्य वृष्णो जठरादभिश्वसो दिवेदिवे सहुरिः स्तन्नबाधितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूरः । चित् । आ । हरितः । अस्य । रीरमत् । इन्द्रात् । आ । कः । चित् । भयते । तवीयसः । भीमस्य । वृष्णः । जठरात् । अभिऽश्वसः । दिवेऽदिवे । सहुरिः । स्तन् । अबाधितः ॥ १०.९२.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 92; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सूरः-चित्) सूर्य भी (अस्य) इस परमात्मा के शासन में वर्त्तमान (हरितः-आ रीरमत्) दिशाओं में रमण करता है-प्रकाश करता है (कः-चित्) कोई अन्य भी बलवान् वायु आदि पदार्थ (तवीयसः-इन्द्रात्) अति बलवान् परमेश्वर से (भयते) भय करता है (भीमस्य वृष्णः) उस भयङ्कर बलवान् परमात्मा के (जठरात्) मध्य में वर्तमान अन्तरिक्ष से (दिवे दिवे) अवसर-अवसर पर (अभिश्वसः) श्वास ग्रहण करता हुआ सा मेघ (सहुरिः) सहनशील (अबाधित) बाधारहित (स्तन्) गर्जता है ॥८॥

    भावार्थ

    परमात्मा के शासन में-नियम में रहता हुआ सूर्य दिशाओं में प्रकाश करता है तथा वायु आदि वेगवान् पदार्थ भी उस अति बलवान् परमात्मा से भय करते हुए से चलते हैं, उस भयंकर बलवान् परमात्मा के शासन से मेघ गरजता हुआ बरसता है, उस ऐसे परमात्मा की स्तुति करनी चाहिए ॥८॥

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    विषय

    सूर्य व मेघ

    पदार्थ

    [१] (सूरः चित्) = सूर्य भी अस्य इस प्रभु की ही (हरितः) = इन किरणरूप अश्वों को (आरीरमत्) = चारों ओर क्रीड़ा कराता है । अर्थात् सूर्य की किरणें क्या हैं, ये तो प्रभु के प्रकाश की ही किरणें हैं। प्रभु के प्रकाश से ही तो ये प्रकाशित हो रही हैं । (इन्द्रात्) = उस परमैश्वर्यशाली (तवीयसः) = प्रवृद्ध शक्तिवाले प्रभु से ही (कश्चित्) = जो भी कोई है वह (आभयते) = समन्तात् भयभीत होता है ' भयादस्याग्निस्तपति, भयात्तपति सूर्य:, भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चमः ' । प्रभु के भय से ही 'अग्नि, सूर्य, इन्द्र, वायु व मृत्यु' अपना-अपना कार्य कर रहे हैं । [२] (भीमस्य) = उस अपनी तेजस्विता से भयंकर (वृष्णः) = शक्तिशाली, (अभिश्वसः) = चारों ओर जीवन का संचार करनेवाले प्रभु के (जठरात्) = विराट् शरीर के जठरभूत अन्तरिक्ष से (अबाधितः) = प्रबल वायु आदि से बाधित न हुआ हुआ छिन्न-भिन्न न किया गया, (सहुरिः) = अन्न आदि के उत्पादन से कष्टों का मर्षण व पराभव करनेवाला मेघ (दिवेदिवे) = समय-समय पर (स्तन्) = गर्जना करता है। 'दिवे-दिवे' का शब्दार्थ 'अनुदिन सदा' होता है, यहाँ 'समय-समय पर यह भाव व्यक्त किया गया है। जब-जब आवश्यकता होती है, तब-तब यह बरसता है और प्रजाओं के भूख के कष्ट को दूर करने का साधन बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्य में प्रभु के ही प्रकाश की किरणें हैं और मेघ में वृष्टि द्वारा अन्नोत्पत्ति से जीवन का संचार करने की शक्ति प्रभु ही स्थापित करते हैं ।

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    विषय

    प्रभु के ऐश्वर्य, सामर्थ्य सर्वोपरि।

    भावार्थ

    (अस्य) इस परमेश्वर के (तवीयसः इन्द्रात्) बलवान्, शत्रुहन्ता, तेजस्वी और मेघ, जल के विदारक सामर्थ्य वा ऐश्वर्यसे (हरितः सूरः चित्) तेजोमय सूर्य भी (भयते) भय करता है। (अस्य तवीयसः) इस बलशाली से (कः चित् भयते) सभी कोई वा जल वायु भी भय करता है। (भीमस्य वृष्णः) इस भयानक बरसते मेघ के तुल्य बलशाली, (अभिश्वसः) सर्वत्र श्वासवत् प्राण लेने वाले वायुवत् व्यापक इस प्रभु के (जठरात्) मध्य में (दिवे दिवे) प्रति दिन (सहुरिः) सबको पराजित करने वाला मेघ (अबाधितः) बाधा रहित होकर (स्तन्) गर्जता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः शार्यातो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः— १, ६, १२, १४ निचृज्जगती। २, ५, ८, १०, ११, १५ जगती। ३, ४, ९, १३ विराड् जगती। ७ पादनिचृज्जगती। पञ्चदशर्चं सूकम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सूरः-चित्-अस्य-हरितः-आ रीरमत्) सूर्यः खल्वप्यस्य परमात्मनः शासने वर्तमानो दिशः-दिक्षु ‘हरितः-दिङ्नाम’ [निघ० १।६] रमते प्रकाशते (कः-चित्) कश्चिदन्योऽपि बलवान् वायुप्रभृतिपदार्थः (तवीयसः-इन्द्रात्-भयते) अति बलवतः परमेश्वरात् खलु बिभेति ‘भयादस्याग्निस्तपति भयात् तपति सूर्यः’ [कठोप० २।३।३] (भीमस्य वृष्णः-जठरात्) भयङ्करस्य मध्यादन्तरिक्षात् (दिवे-दिवे) अवसरेऽवसरे (अभिश्वसः) अभिश्वासं गृह्णन्निव गच्छन् मेघः (सहुरिः) सहनशीलः (अबाधितः) बाधारहितः (स्तन्) गर्जति ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Even the sun radiates its rays of light under the power and law of Indra, supreme omnipotent. Every powerful force obeys the law and power of Indra. Under the power of fertile and potent Indra, the whistling winds blow from its vault and the mighty cloud roars without obstruction day by day.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याच्या शासनात नियमात असल्यामुळे सूर्य सर्व दिशा प्रकाशित करतो व वायू इत्यादी वेगवान पदार्थही त्या अति बलवान परमात्म्याच्या भयाने चालतात. त्या भयंकर बलवान परमात्म्याच्या शासनात मेघ गर्जना करत बरसतो. अशा परमात्म्याची स्तुती केली पाहिजे. ॥८॥

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