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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 32/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - राका छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    रा॒काम॒हं सु॒हवां॑ सुष्टु॒ती हु॑वे शृ॒णोतु॑ नः सु॒भगा॒ बोध॑तु॒ त्मना॑। सीव्य॒त्वपः॑ सू॒च्याच्छि॑द्यमानया॒ ददा॑तु वी॒रं श॒तदा॑यमु॒क्थ्य॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रा॒काम् । अ॒हम् । सु॒ऽहवा॑म् । सु॒ऽस्तु॒ती । हु॒वे॒ । शृ॒णोतु॑ । नः॒ । सु॒ऽभगा॑ । बोध॑तु । त्मना॑ । सीव्य॑तु । अपः॑ । सू॒च्या । अच्छि॑द्यमानया । ददा॑तु । वी॒रम् । श॒तऽदा॑यम् । उ॒क्थ्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    राकामहं सुहवां सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना। सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    राकाम्। अहम्। सुऽहवाम्। सुऽस्तुती। हुवे। शृणोतु। नः। सुऽभगा। बोधतु। त्मना। सीव्यतु। अपः। सूच्या। अच्छिद्यमानया। ददातु। वीरम्। शतऽदायम्। उक्थ्यम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 32; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ स्त्रीणां गुणानाह।

    अन्वयः

    अहं त्मना राकामिव वर्त्तमाना सुहवां यां स्त्रियं सुष्टुती हुवे सा सुभगा नोऽस्मान् शृणोतु बोधतु। अच्छिद्यमानया सूच्याऽपस्सीव्यतु शतदायं सीव्यतूक्थ्यं शतदायं वीरं ददातु ॥४॥

    पदार्थः

    (राकाम्) पूर्णप्रकाशयुक्तेन चन्द्रेण युक्तां रात्रीम् (अहम्) (सुहवाम्) सुष्ठु स्पर्द्धनीयाम् (सुष्टुती) शोभनया स्तुत्या (हुवे) स्पर्द्धे (शृणोतु) (नः) अस्मान् (सुभगा) उत्तमैश्वर्य्यप्रापिका (बोधतु) जानातु (त्मना) आत्मना (सीव्यतु) सूत्राणि सन्तानयतु (अपः) कर्म (सूच्या) सीवनसाधनया (अच्छिद्यमानया) छेत्तुमनर्हया (ददातु) (वीरम्) उत्तमसन्तानम् (शतदायम्) असङ्ख्यदायभागिनम् (उक्थ्यम्) प्रशंसितुमर्हम् ॥४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। तस्य जनस्य स्त्रिया वाऽहोभाग्यं भवति यामभीष्टः पतिः प्राप्नुयादभीष्टा स्त्री वा यं यथा गुणकर्मस्वभावः पुरुषो भवेत्तथा पत्न्यपि स्याद्यदि द्वौ विद्वांसौ यथर्त्तुप्रेम्णा सन्तानमुत्पादयेतां तर्हि तदपत्यं प्रशंसितं कथं न स्याद्यथा छिन्नं वस्त्रं सूच्या सन्धीयते तथा ययोर्मनसि परस्परं प्रीतिः स्यात्तत्कुलं सर्वमान्यं भवति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब स्त्रियों के गुणों को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    मैं (त्मना) आत्मा से (राकाम्) उस रात्रि के जो पूर्ण प्रकाशित चन्द्रमा से युक्त है समान वर्त्तमान (सुहवाम्) सुन्दर स्पर्द्धा करने योग्य जिस स्त्री की (सुष्टुती) शोभन स्तुति के साथ (हुवे) स्पर्द्धा करता हूँ वह (सुभगा) उत्तम ऐश्वर्य को प्राप्त करनेवाली (नः) हम लोगों को (शृणोतु) सुनें और (जानातु) जाने (अच्छिद्यमानया) न छेदन करने योग्य (सूच्या) सुई से (अपः) कर्म (सीव्यतु) सीने का करे (शतदायम्) असंख्य दाय भागवाले को सीवें (उक्थ्यम्) और प्रशंसा के योग्य असंख्य दायभागी (वीरम्) उत्तम सन्तान को (ददातु) देवे ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। उस मनुष्य वा स्त्री का अहोभाग्य होता है, जिसको अभीष्ट स्त्री वा पुरुष प्राप्त हो, जैसे गुण-कर्म-स्वभाववाला पुरुष हो वैसी पत्नी भी हो, यदि दोनों विद्वान् स्त्री-पुरुष तु समय को न उल्लंघन कर अर्थात् तु समय के अनुकूल प्रेम से सन्तानोत्पत्ति करें, तो उनकी सन्तान प्रशंसित क्यों न हो, जैसे छिन्न-भिन्न वस्त्र सुई से सिया जाता है, वैसे जिनके मन में परस्पर प्रीति हो, उनका कुल सबका मान्य होता है ॥४॥

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    विषय

    राका

    पदार्थ

    १. जीवनयात्रा में सफलता बहुत कुछ पत्नी पर निर्भर है। यहाँ मन्त्र में कहते हैं कि (अहम्) = मैं (राकाम्) = पूर्णचन्द्रवाली रात्रि के समान रमयित्री इस नवयुवति को [राका - A girl in whom menstruation has just commenced] (सुष्टुती) = उत्तम स्तुतिवचनों से हुवे पुकारता हूँ। प्रभु से आराधना करता हूँ कि मुझे राका के समान जीवनसाथी की प्राप्ति हो । जो (सुहवाम्) = आसानी से पुकारी जा सकती है, अर्थात् जिसको आवाजें लगाते-लगाते ही पुरुष थक नहीं जाता। यह (सुभगा) = घर के सौभाग्य की कारणभूत पत्नी (नः) = हमारी बात को शृणोतु-सुने। त्मना बोधतु स्वयं सब कार्यों को समझती हो । क्या कार्य कैसे करना है कैसे नहीं", इस बात को स्वयं समझती हो। २. जो अच्छिद्यमानया (सूच्या) = न टूटती हुई सुई से (अपः) = कर्मरूप वस्त्रों को सीव्यतु सीनेवाली हो । निरन्तर कर्मों को करनेवाली हो। ऐसी यह पत्नी हमारे लिए वी(रम्) = वीरसन्तान को ददातु दे । जो सन्तान (शतदायम्) = सैकड़ों ही दान देनेवाला हो तथा (उक्थ्यम्) = सब प्रकार से प्रशंसनीय जीवनवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - पत्नी पूर्णचन्द्र निशा के समान रमयित्री, सुहवा तथा सुभगा हो। समझदार, निरन्तर क्रियाशील व वीर सन्तान को जन्म देनेवाली हो ।

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    विषय

    राका, सिनीवाली, गुड्डू, सरस्वती नाम उत्तम महिलाओं का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( अहम् ) मैं ( सुहवां ) उत्तम नाम वाली और उत्तम रीति से स्पर्धा करने योग्य ( राकाम् ) सुख देनेवाली, पूर्ण प्रकाशवान् चन्द्रमा से युक्त, चांदनी रात्रि के समान मनोरम, स्त्री की ( सुष्टुती ) उत्तम गुण स्तुति द्वारा ( हुवे ) प्रशंसा करूं और उसे अपने समीप आदर से बुलाऊं । वह ( नः ) हमारे वचन ( शृणोतु ) सुने । वह ( सुभगा ) उत्तम भाग्यवती होकर ( त्मना ) स्वयं ( बोधतु ) हमारे वचनों को समझे, हमारा अभिप्राय जाने। वह ( अच्छिद्यमानया ) कभी न टूटने वाली ( सूच्या ) सूई से जिस प्रकार वस्त्र सिये जाते हैं उसी प्रकार वह अटूट सूई या सी देने वाले साधन से ( अपः ) उत्तम कर्म और संकल्प या प्राप्त पति को ( सीव्यतु ) उत्तम वस्त्र के समान अपने साथ जोड़ती रहा करे। अर्थात् वह उत्तम २ कर्मों का तांता लगाये रखे। और वह ही ( उक्थ्यम् ) प्रशंसा योग्य ( शतदायम् ) बहुत ऐश्वर्य देने वाले और बहुत से धनों का स्वामी ( वीरं ) वीर्यवान् पुत्र को ( ददातु ) दे, उत्पन्न करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ १, द्यावापृथिव्यौ । २, ३ इन्द्रस्त्वष्टा वा । ४,५ राका । ६,७ सिनीवाली । ८ लिङ्कोत्का देवता ॥ छन्दः– १ जगती । ३ निचृज्जगती । ४,५ विराड् जगती । २ त्रिष्टुप् ६ अनुष्टुप् । ७ विराडनुष्टुप् । ८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याला इच्छानुकूल स्त्री किंवा पुरुष मिळतो त्या माणसाचे किंवा स्त्रीचे सौभाग्य असते. ज्या गुण, कर्म स्वभावाचा पुरुष असेल तशी पत्नीही असावी. जर स्त्री-पुरुष दोघेही ऋतूसमयी अनुकूल प्रेमाने संतानोत्पत्ती करतील तर त्यांची संताने प्रशंसित का होणार नाहीत? जसे जीर्ण वस्त्र सुईने शिवले जाते तसे ज्यांच्या मनात परस्पर प्रेम असेल तर त्यांचे कुल मान्यता पावते. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I call upon the beauteous moon-lit night, soothing and generous, with words of adoration. May she, luxuriously gracious, listen to us and, with her mind and soul, acknowledge and yield to our wish and desire. May she, with an uninterruptible needle, sew on our garments of action. May she bless us with praise-worthy progeny who may produce a hundredfold wealth of life for us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of women are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    I aspire to have closeness and attention of a woman with my nice praises. She is enviable and is beautiful in her heart like a full moon. As the needle sews two pieces of clothes, the same way a woman should make unison with her husband and give a nice progeny or lineage to her husband.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A woman and a man are fortunate if she or he gets a matching partner of the same virtue, action and nature. If they, procreate with love and amity then their next generation is always praiseworthy. The main quality of woman should be to unite her heart with her husband like sewing of cloth with a needle.

    Foot Notes

    (राकाम्) पूर्णप्रकाशयुक्तोन चन्द्रोण युक्तां रात्रीम् । = In the full moon night. (सुभगा) उत्तमैश्वयंप्रापिका | = A woman who provides nice prosperity. (सूच्या) सीवनसाधनया। = By the needle. (अच्छिद्यमानया) छेत्त मनर्हया । = In a manner which can not be broken off. (शतदायम्) असङ्ख्यदायभागिनम् = A large size of progeny sons and daughters.

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