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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 2/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    चित्ति॒मचि॑त्तिं चिनव॒द्वि वि॒द्वान्पृ॒ष्ठेव॑ वी॒ता वृ॑जि॒ना च॒ मर्ता॑न्। रा॒ये च॑ नः स्वप॒त्याय॑ देव॒ दितिं॑ च॒ रास्वादि॑तिमुरुष्य ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चित्ति॑म् । अचि॑त्तिम् । चि॒न॒व॒त् । वि । वि॒द्वान् । पृ॒ष्टाऽइ॑व । वी॒ता । वृ॒जि॒ना । च॒ । मर्ता॑न् । रा॒ये । च॒ । नः॒ । सु॒ऽअ॒प॒त्याय॑ । दे॒व॒ । दिति॑म् । च॒ । रास्व॑ । अदि॑तिम् । उ॒रु॒ष्य॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चित्तिमचित्तिं चिनवद्वि विद्वान्पृष्ठेव वीता वृजिना च मर्तान्। राये च नः स्वपत्याय देव दितिं च रास्वादितिमुरुष्य ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चित्तिम्। अचित्तिम्। चिनवत्। वि। विद्वान्। पृष्ठाऽइव। वीता। वृजिना। च। मर्तान्। राये। च। नः। सुऽअपत्याय। देव। दितिम्। च। रास्व। अदितिम्। उरुष्य॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे देव ! यो वि विद्वान् पृष्ठेव वीता वृजिना मर्त्तांश्च नः स्वपत्याय राये च चित्तिमचित्तिं चिनवत्तस्मै दितिं रास्व चाऽदितिमुरुष्य ॥११॥

    पदार्थः

    (चित्तिम्) कृतचयनां क्रियाम् (अचित्तिम्) अकृतचयनाम् (चिनवत्) चिनुयात् (वि) (विद्वान्) (पृष्ठेव) पृष्ठानीव (वीता) वीतानि प्राप्तानि (वृजिना) वृजिनानि बलानि (च) (मर्त्तान्) मनुष्यान् (राये) धनाय (च) (नः) अस्माकम् (स्वपत्याय) शोभनान्यपत्यानि यस्मात्तस्मै (देव) विद्वन् (दितिम्) खण्डितां क्रियाम् (च) (रास्व) देहि (अदितिम्) नाशरहिताम् (उरुष्य) सेवस्व ॥११॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथोष्ट्रादयः पृष्ठैर्भारं वहन्ति तथैव बलिष्ठा जनाः सर्वं व्यवहारभारं वहन्ति व्यवहारे यस्य खण्डनं यस्य च मण्डनं कर्त्तव्यं स्यात्तत्तस्य तथैव कार्य्यम् ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (देव) विद्वान् पुरुष ! जो (वि) विशेष करके (विद्वान्) विद्यायुक्त पुरुष (पृष्ठेव) पीठों के सदृश (वीता) प्राप्त (वृजिना) पराक्रमों को (मर्त्तान्) मनुष्यों को (च) भी (नः) हम लोगों के (स्वपत्याय) उत्तम सन्तान जिससे उस (राये) धन के लिये (च) और (चित्तिम्) किया संग्रह जिसमें उस क्रिया और (अचित्तिम्) जिसमें संग्रह नहीं किया उसका (चिनवत्) संग्रह करे, उसके लिये (दितिम्) खण्डित क्रिया को (रास्व) दीजिये (च) और (अदितिम्) अखण्डित क्रिया का (उरुष्य) सेवन कीजिये ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे ऊँट आदि पीठों से भार को ले चलते हैं, वैसे ही बलवान् पुरुष सब व्यवहार के भार को धारण करते हैं और व्यवहार में जिसका खण्डन और जिसका मण्डन करने योग्य होवे, वह उसका वैसा ही करना चाहिये ॥११॥

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    विषय

    चित्ति-अचित्ति

    पदार्थ

    [१] (विद्वान्) = वे ज्ञानी प्रभु हमारे लिये (चित्तिम्) = विद्या तथा (अचित्तिम्) = अविद्या को, पराविद्या तथा अपराविद्या को, (चिनवत्) = संचित करें। हमें प्रभु कृपा से प्रकृति का विज्ञान भी प्राप्त हो और आत्मा का ज्ञान भी। (इव) = जैसे (मर्तान्) = रणांगण में योद्धा मनुष्यों को (वीता) = कान्त (च) = और (वृजिना) = [leaning] झुकी हुई (पृष्ठा) = घोड़ों की पीठें [वि चिनवत्] अलग-अलग करके प्राप्त करायी जाती हैं । झुकी हुई पीठवाले घोड़े बोझ आदि के उठाने के लिये प्रयुक्त होते हैं और कान्त पृष्ठवाले योद्धा के लिये । [२] हे (देव) = सर्वप्रद प्रभो! आप (नः) = हमें राये धन के लिये (च) = और (स्वपत्याय) = उत्तम सन्तान के लिये (दितिम्) = दान की वृत्ति को (रास) = दीजिये। दान देते हुए हम अपने धनों का वर्धन भी करें [दक्षिणां दुहते सप्त मातरम्] और उत्तम सन्तान को भी प्राप्त करें [आशीर्दा दम्पती वाममश्रुतः] । हे प्रभो! आप हमारे (अदितिम्) = स्वास्थ्य [अदिति खण्डन] (उरुष्य) = रक्षित करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमें अपरा व परा दोनों विद्याओं की प्राप्ति हो। हमें दानवृत्ति के द्वारा धन तथा उत्तम सन्तान प्राप्त हो । हमारा स्वास्थ्य सुरक्षित रहे ।

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    विषय

    दाता राजा, स्वामी के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष ( वीता पृष्ठा इव ) जिस प्रकार अपने पास आयी भार उठाने में समर्थ पृष्ठों को वा, सेचन, पालन पोषण करने वाले अन्न जलादि पदार्थों को ( वि चिनवत् ) विशेष रूप से संग्रह करता है उसी प्रकार ( विद्वान् ) विद्वान् राजा ( चित्तिम् अचित्तिम् ) संगृहीत और असंगृहीत सञ्चित और असञ्चित शक्तियों को ( वि चिनवत् ) विशेष रूप से सञ्चय करे । उनको पृथक् २ रक्खे । इसी प्रकार ( वृजिना च ) अपने शत्रुवारक बलों या सैन्यों को और ( मर्त्तान् च ) साधारण मनुष्यों को भी विविध रूप से रक्खे । हे (देव) दानशील पुरुष ! ( नः ) हमें ( स्वपत्याय ) उत्तम संतान से युक्त ( राये ) ऐश्वर्य को प्रयोग में लाने के लिये ( दितिं च रास्व ) दानशीलता या दान देने योग्य पदार्थ या खण्डित होने वाले नश्वर पदार्थ भौतिक ऐश्वर्य प्रदान कर और साथ ही ( अदितिम् ) न नाश होने वाले या न दान देने योग्य पदार्थों की ( उरुष्य ) रक्षा कर । राजा के लिये पुण्य का धन चित्ति और अपुण्य पाप से प्राप्त धन अचित्ति है, सैन्य बल चित्ति है, साधारण प्रजाजन अचित्ति है। इसी प्रकार भौतिक नश्वर धन देय होने से वा खण्डित हो जाने से या रुपये पैसे अन्नी दुअन्नी आदि परिमाण में टूटने से ‘दिति’ रत्न, आदि वा भूमि भवन आदि शामिलात के द्रव्य अखण्डनीय, अविभाज्य धन ‘अदिति’ है । विभाज्य धन और अविभाज्य धन दोनों ही उत्तम सन्तान पालनार्थं धन वृद्धि के लिये आवश्यक हैं। अथवा—विद्वान् पुरुष ( चित्तिम् अचित्तिम् ) चेतनायुक्त और जड़, विज्ञान और अज्ञान को पृथक २ करे । जिस प्रकार रक्षक ( वीता पृष्ठा इव ) दृढ़ पीठ वाले और गये वीतों को पृथक् २ करता है इसी प्रकार राजा सैन्यों और साधारण मनुष्यों को भी पृथक् २ रक्खे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ अग्निदेवता ॥ छन्दः- १, १९ पंक्तिः । १२ निचृत्पंक्तिः । १४ स्वराट् पंक्तिः । २, ४–७, ९, १३, १५, १७, १८, २० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, १६ त्रिष्टुप् । ८, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे उंट पाठीवर भार घेऊन चालतात. तसेच बलवान पुरुष सर्व व्यवहाराचा भार वहन करतात व्यवहारात ज्याचे खंडन व ज्याचे मंडन करण्यायोग्य आहे ते करावे. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Let the man of knowledge and discrimination distinguish between sense and wisdom on the one hand and non-sense and ignorance on the other, between the broad open paths of right living and the covert ways of wickedness, and between mortals and mortals. And O giver of knowledge and light of discrimination, Agni, for the sake of honour and well being and for our children give us worldly wealth and liquid assets and protect our immortal merit of rectitude.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of ideal persons are reinforced.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! give happiness to all the men who are good and solid (real Ed.) scholars like the back of a camel, who are mighty and who are not, who are ordinary men and who are enlightened. Distinguish between them properly and give wealth and good progeny to good men. Condemn the evil acts and support the deserving.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As camels and other animals carry load on their backs, likewise powerful men carry the load (responsibilities) of all dealings. In such dealings with others, the right cause and persons are and should be supported and the unjust are to be condemned.

    Foot Notes

    (वीता) वीतानि, प्राप्तानि। = Attained. (वृजिना) वृजिनानि बलानि । वृजनमिति बलनाम (NG 2, 9) वृजिनमत्र तत्पर्यायरूपत्वेन गृहीतं भववर्ज कत्वात् । (दितिम्) खण्डितां क्रियाम् । = Condemnation (अदितिम् ) नाशरहिताम् । = Inviolable.

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