ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 7
वि नो॑ वाजा ऋभुक्षणः प॒थश्चि॑तन॒ यष्ट॑वे। अ॒स्मभ्यं॑ सूरयः स्तु॒ता विश्वा॒ आशा॑स्तरी॒षणि॑ ॥७॥
स्वर सहित पद पाठवि । नः॒ । वा॒जाः॒ । ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒ । प॒थः । चि॒त॒न॒ । यष्ट॑वे । अ॒स्मभ्य॑म् । सू॒र॒यः॒ । स्तु॒ताः । विश्वाः॑ । आशाः॑ । त॒री॒षणि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि नो वाजा ऋभुक्षणः पथश्चितन यष्टवे। अस्मभ्यं सूरयः स्तुता विश्वा आशास्तरीषणि ॥७॥
स्वर रहित पद पाठवि। नः। वाजाः। ऋभुक्षणः। पथः। चितन। यष्टवे। अस्मभ्यम्। सूरयः। स्तुताः। विश्वाः। आशाः। तरीषणि ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 37; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे वाजा ऋभुक्षणः स्तुताः सूरयो ! यूयमस्मभ्यं यष्टवे पथो विचितन यतो तरीषणि प्राप्य नोऽस्माकं विश्वा आशाः पूर्णाः स्युः ॥७॥
पदार्थः
(वि) (नः) अस्माकम् (वाजाः) (ऋभुक्षणः) महान्तः (पथः) मार्गान् (चितन) ज्ञापयत (यष्टवे) सङ्गन्तुम् (अस्मभ्यम्) (सूरयः) विद्वांसः (स्तुताः) (विश्वाः) अखिलाः (आशाः) इच्छाः (तरीषणि) दुःखं तरितुं सामर्थ्यम् ॥७॥
भावार्थः
ये मनुष्या बाल्यावस्थामारभ्य विद्वच्छिक्षां गृह्णीयुस्तेषां सकला इच्छाः पूर्णाः स्युः ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वाजाः) प्रशंसित (ऋभुक्षणः) बड़े (स्तुताः) स्तुति किये गये (सूरयः) विद्वानो ! आप लोग (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (यष्टवे) मिलने को (पथः) मार्ग (वि, चितन) जनाइये जिससे (तरीषणि) दुःख के पार उतरने के सामर्थ्य को प्राप्त होकर (नः) हम लोगों की (विश्वाः) सम्पूर्ण (आशाः) इच्छाएँ पूर्ण होवें ॥७॥
भावार्थ
जो मनुष्य बाल्यावस्था से लेकर विद्वानों की शिक्षा का ग्रहण करें, उनकी सम्पूर्ण इच्छा पूर्ण होवें ॥७॥
विषय
यज्ञमार्ग
पदार्थ
[१] हे (वाजाः) शक्तिशाली पुरुषो! (ऋभुक्षण:) = ज्ञानदीप्ति में निवास करनेवाले पुरुषो ! (नः) = हमें यष्टवे यज्ञादि उत्तम कर्म करने के लिए (पथ: विचितन) = मार्गों का विशेषरूप से ज्ञान दीजिए। [२] हे (सूरयः) = ज्ञानी (स्तुता:) = [स्तुतमस्यास्तीति] प्रभुभक्त पुरुषो! (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (विश्वाः आशा:) = सब दिशाओं को व इच्छाओं को (तरीषणि) = तैरने के लिए [पथ: विचितन] मार्गों का ठीक ज्ञान दीजिए। आप से दत्त ज्ञान के अनुसार मार्गों का आक्रमण करते हुए हम सब इच्छाओं को तैर जाएँ।
भावार्थ
भावार्थ- ज्ञानियों से ज्ञान प्राप्त करके मार्गों का अनुसरण करते हुए हम यज्ञशील हों और इच्छाओं से ऊपर उठ जाएँ ।
विषय
उत्तम सुवर्ण रत्नादि के आभूषण धारण करने का उपदेश।
भावार्थ
हे (वाजाः) ज्ञान और बल से युक्त (ऋभुक्षणः) गुणों में महान् और (स्तुताः सूरयः) प्रशंसित विद्वान् पुरुषो! आप लोग महान् (यष्टवे) दान, मैत्री, सत्संग, देवपूजन आदि सत्कर्म करने के लिये उत्तम २ (पथः चितन) मार्गों का उपदेश करो, जानो। और (अस्मभ्यं) हम में (तरीषणि) संसार-सागर से पार उतरने का सामर्थ्य और (विश्वा आशाः) हमारी समस्त उत्तम आकांक्षाओं को पूर्ण करो। अथवा—सब दिशाओं को बलपूर्वक पार कर जाने के सामर्थ्य का उपदेश करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप। २ त्रिष्टुप। ३, ८ निचृत् त्रिष्टुप । ४ पंक्तिः ॥ ५, ७ अनुष्टुप ॥ ६ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे बाल्यावस्थेपासून विद्वानांकडून शिक्षण घेतात त्यांच्या संपूर्ण इच्छा पूर्ण होतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Rbhus, visionaries and craftsmen of the art and science of life, leaders of the speed of winds, teachers and pioneers bright and brave, open and reveal for us our paths of progress in our yajna of corporate living. We rightfully admire you and humbly pray to you so that we may realise all our hopes and ambitions and ultimately cross the ocean of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The theme of duties is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O great scholar, being glorified by us enlighten us about the direct path of truth for unification, so that all our noble desires be fulfilled by the obtaining the power of crossing over all the miseries.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The noble desires of those are fulfilled, who receive good education from the enlightened persons since their childhood.
Foot Notes
(आशाः ) इच्छाः । = Desires.(तरीषणि) दुःखं तरितुं सामर्थ्यंम् । = The power to get over miseries.
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