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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 82/ मन्त्र 7
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - सविता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ वि॒श्वदे॑वं॒ सत्प॑तिं सू॒क्तैर॒द्या वृ॑णीमहे। स॒त्यस॑वं सवि॒तार॑म् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वि॒श्वऽदे॑वम् । सत्ऽप॑तिम् । सु॒ऽउ॒क्तैः । अ॒द्य । वृ॒णी॒म॒हे॒ । स॒त्यऽस॑वम् । स॒वि॒तार॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ विश्वदेवं सत्पतिं सूक्तैरद्या वृणीमहे। सत्यसवं सवितारम् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। विश्वऽदेवम्। सत्ऽपतिम्। सुऽउक्तैः। अद्य। वृणीमहे। सत्यऽसवम्। सवितारम् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 82; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथा वयमद्या सूक्तैर्विश्वदेवं सत्पतिं सत्यसवं सवितारं परमात्मानमाऽऽवृणीमहे तथा यूयमपि वृणुत ॥७॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (विश्वदेवम्) विश्वस्य प्रकाशकम् (सत्पतिम्) सतां प्रकृत्यादीनां सत्पुरुषाणां पतिं पालकम् (सूक्तैः) सुष्ठु सत्यैर्वचनैर्वेदोक्तैर्वा (अद्या) अद्य। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वृणीमहे) स्वीकुर्महे (सत्यसवम्) सत्योऽविनाशी सवः सामर्थ्ययोगो यस्य तम् (सवितारम्) सकलपदार्थनिर्मातारम् ॥७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्यैः परमेश्वरं विहाय कस्याप्यन्यस्याश्रयो नैव कर्त्तव्यः ॥७॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (अद्या) आज (सूक्तैः) उत्तम प्रकार कहे गये सत्य वचनों वा वेदोक्त वचनों से (विश्वदेवम्) संसार के प्रकाश करने और (सत्पतिम्) प्रकृति आदि पदार्थ और सत्पुरुषों के पालन करनेवाले (सत्यसवम्) नहीं नाश होनेवाला सामर्थ्ययोग्य जिसका उस (सवितारम्) सम्पूर्ण पदार्थों के बनानेवाले परमात्मा का (आ, वृणीमहे) स्वीकार करते हैं, वैसे आप लोग भी स्वीकार कीजिये ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य का आश्रय नहीं करें ॥७॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( अद्य ) = आज ( विश्वदेवम् ) = सबके उपास्यदेव ( सत्यसवम् ) = सत्य के पक्षपाती ( सवितारम् ) = जगत् के उत्पादक प्रभु को ( सूक्तैः ) = सुन्दर स्तुति वचनों से ( आ वृणीमहे ) = भजते हैं।

     

     

    भावार्थ

    भावार्थ = जगत् का उपास्य देव जो श्रेष्ठ सन्त जनों का रक्षक वा पालक, सच्चाई का पक्षपाती, जिसकी आज्ञा सच्ची है, और जो सारे जगतों का उत्पन्न करनेवाला है, आज हम अनेक वेद के पवित्र मन्त्रों से उस जगत्पिता की स्तुति करते हैं, वह जगत्पिता परमात्मा, हम पर प्रसन्न होकर हमें सच्चा भक्त बनाये ।

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    विषय

    सर्वपाल सविता प्रभु का वरण

    भावार्थ

    भा०—हम लोग ( विश्वदेवं ) विश्व के प्रकाशक, सबके दाता और सर्वोपास्य, समस्त शुभ गुणों के धारक, सर्वकाम्य, सर्वविजयी, सर्वव्यवहारकुशल, ( सत्पतिं ) समस्त सज्जनों और सत्पदार्थों के पालक ( सत्यसवं ) सत्यैश्वर्य युक्त, ( सवितारम् ) सर्वोत्पादक, पिता परमेश्वर की ( आ वृणीमहे ) सब प्रकार से भक्ति करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः । सविता देवता ॥ छन्दः – १ निचृदनुष्टुप् । २, ४, ९ निचृद् गायत्री । ३, ५, ६, ७ गायत्री । ८ विराड् गायत्री ।। नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सत्यसव सविता

    पदार्थ

    [१] (अद्या) = आज हम (सूक्तैः) = [सु-उक्तैः] सदा उत्तम वचनों के द्वारा उस प्रभु का (आवृणीयहे) = सर्वथा वरण करते हैं। जो प्रभु (विश्वदेवम्) = सब दिव्य गुणोंवाले हैं व (सत्पतिम्) = श्रेष्ठता के रक्षक हैं । वस्तुत: जैसे वचन हमारे मुख से उच्चरित होते रहते हैं, वैसी ही बातें हमारे जीवन में आचरण के रूप में परिवर्तित होती हैं। सदा उत्तम शब्द ही मुख से निकलेंगे तो उत्तम ही हमारे आचरण होंगे। और यही प्रभु के चरण का मार्ग है। प्रकृति में आसक्ति व प्रभु की विस्मृति ही हमें पापों की ओर ले जाती है। [२] प्रभु (सत्यसवम्) = सदा सत्य की प्रेरणा देनेवाले हैं, 'सत्यस्य सूनु' हैं। (सवितारम्) = इस सत्य के द्वारा वे हमारे जीवनों में ऐश्वर्यों को जन्म देनेवाले हैं। प्रभु की ओर झुकेंगे तो निष्पाप जीवन बिताते हुए सदा उत्तम योगक्षेम को प्राप्त करेंगे। प्रकृति की ओर गये, तो विलास में फँसकर विनष्ट हो जाएँगे ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूक्तों द्वारा हम सदा प्रभु का वरण करें। वे हमें दिव्यगुण सम्पन्न जीवनवाला बनावेंगे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी परमेश्वराला सोडून दुसऱ्या कुणाचाही आश्रय घेऊ नये. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    With songs of adoration we worship and celebrate lord Savita, cosmic yajaka of eternity, self- refulgent generous father inviolable protector and sustainer of the world of existence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The men's duties are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! from all sides we today accept God, who is the Illuminator of the world. and nourisher. He is protector of the matter etc. and good persons, with the Vedic hymns or with true and good words. Same way you should also do. He is the creator of all objects and His Power is eternally true and Indestructible.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should not take shelter or refuge not in any one except in God.

    Foot Notes

    (विश्वदेवम् ) विश्व प्रकाशकम् = The Illuminator of the world. (सत्यतिम्) सतां प्रकृत्यादीनां सत्पुरुषाणां पतिः पालकम् । = Protector and nourisher of the matter and good men. ( सत्यसवम् ) सत्योऽविनाशी सव: सामर्थ्ययोगो यस्य तम्। = Whose power is eternally pure and Indestructible.

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    আ বিশ্বেদেবং সৎপতিং সুক্তৈরদ্যা বৃণীমহে।

    সত্যসবং সবিতারম্।।১৫।।

    (ঋগ্বেদ ৫।৮২।৭)

     

    পদার্থঃ (অদ্য) আজ (বিশ্বেদেবম্) সকলের উপাস্য দেব, (সৎপতিম্) প্রকৃতি আদি পদার্থ ও সকল জীবের পালনকর্তা, (সত্যসবম্) সত্যের পক্ষে অবস্থানকারী, (সবিতারম্) জগতের উৎপাদক প্রভুকে (সুক্তৈঃ) সুন্দর স্তুতি বচন [বেদসূক্ত] দ্বারা (আ বৃণীমহে) ভজনা করি।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ জগতের উপাস্য দেব যিনি শ্রেষ্ঠ এবং তাঁর ভক্তদের রক্ষক বা পালক, সত্যের পক্ষে অবিচল, যাঁর আজ্ঞা সত্য, যিনি সমস্ত জগতের উৎপন্নকারী, আজ আমরা বেদের পবিত্র মন্ত্র দ্বারা সেই জগৎপিতার স্তুতি করি।  জগৎপতি পরমাত্মা আমাদের উপর প্রসন্ন হয়ে আমাদের কল্যাণ করুন।। ১৫।।

     

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