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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    गम॒द्वाजं॑ वा॒जय॑न्निन्द्र॒ मर्त्यो॒ यस्य॒ त्वम॑वि॒ता भुवः॑। अ॒स्माकं॑ बोध्यवि॒ता रथा॑नाम॒स्माकं॑ शूर नृ॒णाम् ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गम॑त् । वाज॑म् । वा॒जय॑न् । इ॒न्द्र॒ । मर्त्यः॑ । यस्य॑ । त्वम् । अ॒वि॒ता । भुवः॑ । अ॒स्माक॑म् । बो॒धि॒ । अ॒वि॒ता । रथा॑नाम् । अ॒स्माक॑म् । शू॒र॒ । नृ॒णाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गमद्वाजं वाजयन्निन्द्र मर्त्यो यस्य त्वमविता भुवः। अस्माकं बोध्यविता रथानामस्माकं शूर नृणाम् ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गमत्। वाजम्। वाजयन्। इन्द्र। मर्त्यः। यस्य। त्वम्। अविता। भुवः। अस्माकम्। बोधि। अविता। रथानाम्। अस्माकम्। शूर। नृणाम् ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजप्रजाजनाः परस्परं किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे शूरेन्द्र ! यस्य त्वमविता भुवः स मर्त्यो वाजयन् सन् वाजं गमद्येषामस्माकं रथानामेषामस्माकं नृणां चाऽविता संस्त्वं बोधि ते वयं वाजं प्राप्नुयाम ॥११॥

    पदार्थः

    (गमत्) प्राप्नोति (वाजम्) विज्ञानमन्नादिकं वा (वाजयन्) प्राप्तुमिच्छन् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजन् (मर्त्यः) मनुष्यः (यस्य) (त्वम्) (अविता) रक्षकः (भुवः) भवेः (अस्माकम्) (बोधि) बुध्यस्व (अविता) रक्षकः (रथानाम्) यानादीनाम् (अस्माकम्) (शूर) निर्भयः (नृणाम्) मनुष्याणाम् ॥११॥

    भावार्थः

    यदा राजा प्रजाः प्रजा राजानञ्च रक्षेत्तदा सर्वेषां यथावद्रक्षा संभवेत् ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा और प्रजाजन परस्पर क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (शूर) निर्भय (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजा ! (यस्य) जिसके आप (अविता) रक्षक (भुवः) हों वह (मर्त्यः) मनुष्य (वाजयन्) पाने की इच्छा करता हुआ (वाजम्) विज्ञान वा अन्नादि को (गमत्) प्राप्त होता है जिन (अस्माकम्) हम लोगों के (रथानाम्) रथ आदि के तथा जिन (अस्माकम्) हम लोगों के (नृणाम्) मनुष्यों के भी (अविता) रक्षा करनेवाले (त्वम्) आप (बोधि) समझें वे हम लोग विज्ञान वा अन्न आदि को प्राप्त हों ॥११॥

    भावार्थ

    जब राजा प्रजाओं की और प्रजाजन राजाओं की रक्षा करें, तब सब की यथावत् रक्षा का संभव हो ॥११॥

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    विषय

    प्रभुरक्षित का अपार बल ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! राजन् ! प्रभो ! ( यस्य भुवः ) जिसकी भूमि की ( त्वम् अविता ) तू रक्षा करता ( वाजयन् ) ऐश्वर्य अन्न आदि की कामना करता रहता है वह (मर्त्यः) मनुष्य ( वाजं गमत् ) ऐश्वर्य अन्नादि ( गमत् ) प्राप्त करता है इसी प्रकार हे ( इन्द्र ) परमेश्वर ! (यस्य भुवः) जिस उत्पन्न हुए के प्राणों का तू रक्षक है वह ( वाजयन् मत्यः ) मनुष्य बल, अन्न और ज्ञान की कामना करता हुआ अवश्य ( वाजं गमत् ) बल, अन्न और ज्ञान प्राप्त करता है । हे ( शूर ) शत्रुनाशक ! वीर स्वामिन् ! तू (अस्माकम् ) हमारा और हमारे (नृणाम् ) मनुष्यों और ( रथानाम् ) रथों का और हे प्रभो ! ( अस्माकं नृणाम् रथानाम् ) हमारी इन्द्रियों और रमण योग्य देहों का भी (अविता) रक्षक होकर ( अस्माकं बोधि ) हमें ज्ञान दे और हमारा विचार रख ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥

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    विषय

    भूमि रक्षक राजा

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यवन् प्रभो ! (यस्य भुवः) = जिसकी भूमि वा प्राणों की (त्वम् अविता) = तू रक्षा करता, (वाजयन्) = ऐश्वर्य, अन्न आदि की कामना करता है वह (मर्त्यः) = मनुष्य (वाजं) = ऐश्वर्य, अन्नादि (गमत्) = प्राप्त करता है । हे (शूर) = शत्रुनाशक! तू (अस्माकम्) = हमारा और हमारे (नृणाम्) = मनुष्यों और (रथानाम्) = रथों, रमण-योग्य देहों का भी (अविता) = रक्षक होकर (अस्माकं बोधि) = हमें ज्ञान दे।

    भावार्थ

    भावार्थ - राष्ट्र नायक को ऐसी नीति का निर्धारण करना चाहिए, जिससे उसकी पराक्रमी सेना राष्ट्र की सीमा की रक्षा प्राणपण से करे। जो राजा अपनी मातृभूमि की सीमाओं की रक्षा करने में समर्थ न हो विद्वानों के सहयोग से प्रजा उसे राजसिंहासन से अलग कर देवे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा राजा प्रजेचे रक्षण करतो व प्रजा राजाचे रक्षण करते तेव्हा सर्वांचे यथायोग्य रक्षण शक्य होते. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of light and life, the mortal whose guardian protector you are runs the race and reaches the victory post of enlightenment. O lord of might and fearlessness, take care of us too, enlighten us and be the guardian protector of our chariots and our people.

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