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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 24
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒भी ष॒तस्तदा भ॒रेन्द्र॒ ज्यायः॒ कनी॑यसः। पु॒रु॒वसु॒र्हि म॑घवन्त्स॒नादसि॒ भरे॑भरे च॒ हव्यः॑ ॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । स॒तः । तत् । आ । भ॒र॒ । इन्द्र॑ । ज्यायः॑ । कनी॑यसः । पु॒रु॒ऽवसुः॑ । हि । म॒घ॒ऽव॒न् । स॒नात् । अ॒सि॒ । भरे॑ऽभरे । च॒ । हव्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभी षतस्तदा भरेन्द्र ज्यायः कनीयसः। पुरुवसुर्हि मघवन्त्सनादसि भरेभरे च हव्यः ॥२४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। सतः। तत्। आ। भर। इन्द्र। ज्यायः। कनीयसः। पुरुऽवसुः। हि। मघऽवन्। सनात्। असि। भरेऽभरे। च। हव्यः ॥२४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 24
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स परमेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मघवन्निन्द्र ! हि यतस्त्वं भरेभरे सनाद्धव्यः पुरुवसुरसि तस्मात्सतस्तत्कनीयसो ज्यायो ब्रह्म भरेभरे चाऽभि भर ॥२४॥

    पदार्थः

    (अभि) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सतः) विद्यमानस्य (तत्) चेतनं ब्रह्म (आ) (भर) (इन्द्र) ऐश्वर्ययुक्तजीव (ज्यायः) अतिशयेन ज्येष्ठम् (कनीयसः) अतिशयेन कनिष्ठात् (पुरुवसुः) पुरूणां बहूनां वासयिता (हि) यतः (मघवन्) सकलैश्वर्यधनयुक्त (सनात्) सनातन (असि) (भरेभरे) पालनीये व्यवहारे (च) (हव्यः) स्तोतुमर्हः ॥२४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यः परमात्मा अणोरणीयान् महतो महीयान् सनातनः सर्वाधारः सर्वव्यापकस्सर्वैरुपासनीयोऽस्ति तदाऽऽश्रयमेव सर्वे कुर्वन्तु ॥२४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मघवन्) सकलैश्वर्य और धनयुक्त (इन्द्र) साधारणतया ऐश्वर्ययुक्त ! (हि) जिससे आप (भरेभरे) पालना करने योग्य व्यवहार में (सनात्) सनातन (हव्यः) स्तुति करने योग्य (पुरुवसुः) बहुतों के वसानेवाले (असि) हैं इससे (सतः) विद्यमान (तत्) उस चेतन ब्रह्म (कनीयसः) अतीव कनिष्ठ के (ज्यायः) अत्यन्त ज्येष्ठ प्रशंसनीय ब्रह्म को (भरे) पालनीय व्यवहार में (च) भी (आ, अभि, भर) सब ओर से धारण करो ॥२४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो परमात्मा अणु से अणु, सूक्ष्म से सूक्ष्म, बड़े से बड़ा सनातन सर्वाधार सर्वव्यापक सब की उपासना करने योग्य है, उसी का आश्रय सब करें ॥२४॥

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    विषय

    अनुपम, अपूर्व सर्वातिशायी प्रभु ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्ययुक्त ! हे ( मघवन् ) पूजित धन के स्वामिन् ! तू ( पुरु-वसुः ) बहुतों को बसाने वाला, बहुत से ऐश्वर्यों का स्वामी और ( सनात् ) सनातन से ( भरे भरे च हव्यः ) प्रत्येक पालन करने योग्य, कार्य, यज्ञ, संग्रामादि में भी पुकारने और स्तुति करने योग्य ( असि ) है । तू ( सतः ) सत्स्वरूप, ( ज्यायः ) महान् और ( कनीयसः ) अति दीप्तियुक्त, अति सूक्ष्म उस परम तत्व का ज्ञान ( आ भर ) प्राप्त करा ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥

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    विषय

    ऐश्वर्यवान परमात्मा

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (इन्द्र) = ऐश्वर्ययुक्त! हे (मघवन्) = धन-स्वामिन् ! तू (पुरू वसुः) = बहुतों को बसानेवाला और (सनात्) = सनातन से भरे भरे (च हव्यः) = प्रत्येक पालन-योग्य कार्य में स्तुति-योग्य (असि) = है। तू (सतः) = सत्स्वरूप और (कनीयसः) = अति दीप्तियुक्त, परम तत्त्व का (ज्यायः) = महान् ज्ञान (आ भर) = प्राप्त करा।

    भावार्थ

    भावार्थ- समस्त ऐश्वर्यों के स्वामी परमेश्वर से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने हेतु प्रार्थना करे। उसकी आज्ञा में रहे तथा पूर्ण पुरुषार्थ द्वारा ईश्वर की आज्ञा का पालन करे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जो परमात्मा अणुहून अणू, सूक्ष्माहून सूक्ष्म, मोठ्याहून मोठा, सनातन, सर्वाधार, सर्व व्यापक, सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य आहे त्याचाच सर्वांनी आश्रय घ्यावा. ॥ २४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of honour, power and excellence, you are the eternal lord of universal wealth and shelter home of all existence, invoked and worshipped in all challenging situations. Pray bring us the knowledge and experience of that essence of ultimate reality which is smaller than the smallest and greater than the greatest.

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